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नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-गोपी शब्द | ६३ गोपुरं नगरद्वारे द्वारमात्रेऽपि कीर्तितम् ।
कैवर्तीमुस्तके दुर्गपुरद्वारे नपुंसकम् ॥ ४६७ ॥ हिन्दी टोका-गोपो शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. प्रकृति (माया, प्रधानपद वाच्य) २. गोप स्त्री (गोर को स्त्रो) ३ रक्षिका (रक्षा करने वाली) और ४ शारिवा (ग्वार) गुली सर शब्द से प्रसिद्ध । गोपालक शब्द पुलिं नग है और उसके भो चार अर्थ माने जाते हैं-१. शिव (शंकर महादेव) २. कृष्ण (भगवान् कृष्ण) ३ गोप (यादव ग्वाला) और ४. गोरक्षक (गाय की रखवाली करने वाला) । गोपुर शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं -नगरद्वार (नगर का द्वार भाग, दरवाजा) २. द्वार मात्र (द्वार सामान्य) ३. कैवर्तीमुस्तक (छोटा नागरमोथा. जलमोथा) और ४. दुर्गपुर द्वार (किला-परकोटा का द्वार या चारदोवारी का तथा पुर का द्वार दरवाजा को भी) गोपुर कहते हैं। मूल :
गोमुखं कुटिलागारे वाद्यभाण्डे विलेपने । चौर - कार्य - सुरंगायां वस्त्रनिर्मितयन्त्रके ।। ४६८ ॥ पुमान् यक्षान्तरे नक्र स्त्री तु स्यात् सरिदन्तरे ।
हिमाद्रि गंगापतनगोमुखाकार गह्वरे ।। ४६६ ॥ हिन्दी टीका-गोमुख शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. कुटिलागार (तिरछा घर विशेष) २. वाद्य माण्ड (पखाउज) ३. विलेपन (चन्दन विशेष, गोपी चन्दन) ४. चोर कार्य सुरङ्गा (चोरी करने के लिए खोदा हुआ भूगर्भ भाग सुरंग) और ५. वस्त्रनिर्मित यन्त्र (कपड़े का बनाया हुआ यन्त्र विशेष को भी) गोमुख कहते हैं। किन्तु पुल्लिग गोमुख शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं१. यक्षान्तर (यक्ष विशेष) २. नक (मगर, गोह) एवं स्त्रीलिंग गोमुख शब्द के दो अर्थ होते हैं१. सरिदन्तर (नदी विशेष) और २. हिमाद्रि गंगापतन गोमुखाकार गह्वर (हिमालय से निकली गंगा नदी के पतन का गोमुख आकार वाली गुफा विशेष को भी) गोमुख कहते हैं। मूल : गोरसो दघ्नि दुग्धे च छच्छिकायामपि स्मृतः ।
गोल: खगोले भूगोले सर्ववतु ल-बोलयोः ॥ ५०० ॥ मुचुकुन्दतरौ जाराविधवायाः सुतेऽपि च ।
गोलकोऽलिजरे पिण्डे मृते भर्तरि जारजे ॥ ५०१ ।। हिन्दी टीका-गोरस शब्द पुल्लिग है और उसके तोन अर्थ माने जाते हैं - १. दधि (दही) २. दग्ध (दूध) और ३. छच्छिकका (मक्खन, छालो) इस तरह गोरस शब्द के तीन अर्थ हैं। गोल शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. खगोल (आकाश) २. भूगोल (पृथिवी) ३. सर्ववतुल (सभी गोलाकार वस्तु को भी गोल कहते हैं) ४. बोल (गन्धरस, बोर, गोपरस) और ५. मुचुकुन्दतरु (मुचुकुन्द नाम वृक्ष विशेष) और ६. जाराद्विधवायाः सुत (जार-परपुरुष से विधवा स्त्री का पुत्र) को भी गोल कहते हैं। गोलक शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं- १. अलिजर (कुण्डी, भांड) २. पिण्ड, ३. मृतेभर्तरि जारजः (पति के मर जाने पर भी जार-परपुरुष से उत्पन्न सन्तान को भी) गोलक कहते हैं, ४. कलाय (मटर, वटाना) और ५. गुड (गोड) तथा ६. गन्धरस (बोल, गोपरस) को भी गोलक कहते हैं।
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