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मूल :
सम्यक् सिद्धरसे सान्द्र- निर्यास घनसारयोः । घनसारोवृक्षभेदे दक्षिणावर्तपारदे ॥ ५३१ ॥
कर्पूरे सलिलेचाऽथ वर्षु काब्दे घनाघनः । अन्योन्यघट्टने शक्र े घातुकोन्मत्तकुञ्जरे ।। ५३२ ।।
हिन्दी टोका - घनरस शब्द के और भी तीन माने जाते हैं - १. सम्यक् सिद्धरस (परिपक्व सिद्धरस विशेष ) २. सान्द्र निर्यास ( सघन गोंद, निविडलस्सा) और ३ घनसार (कर्पूर, कपूर ) इस तरह घनरस शब्द के कुल मिलाकर छह अर्थ जानना चाहिये। घनसार शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-वृक्षभेद (वृक्ष विशेष, जिसके सार का कर्पूर बनता है उस वृक्ष विशेष को घनसार कहा जाता है) और २. दक्षिणावर्तपारद (दक्षिणावर्तपारद, अत्यन्त विशिष्टपारद - पाड़ा विशेष) एवं ३. कर्पूर (कपूर को भी घनसार कहते हैं) और ४. सलिल (जल, पानी को भी घनसार शब्द से व्यवहार करते हैं। । घनाघन शब्द पुल्लिंग है और उसका अर्थ १. वर्षा काब्द ( अत्यन्त जल बरसाने वाला बादल) है एवं घनाघन शब्द का २. अन्योन्यघट्टन ( परस्पर टकराना भी) अर्थ होता है । इसी प्रकार ३. शक्र (इन्द्र) और ४. घातुक उन्मत्त कुञ्जर (अत्यन्त भयानक - हिंसक ) मतवाला हाथी भी घनाघन शब्द का अर्थ जानना चाहिये ।
मूल :
नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - घनरस शब्द | हε
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त्रिषु स्यादु घातुके सान्द्रे काकमाच्यां घनाघना | घरट्टः
घर्घरः
पुंसिपेषण्यां घटस्तु झषान्तरे ।। ५३३ ॥ पर्वतद्वारे द्वारमात्रे उलूकध्वनि हास्येषु स्वरभेदे
तुषा । नदान्तरे ॥ ५३४ ॥
हिन्दी टीका - घनाघन शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. धातुक ( अत्यन्त घातक हिंसक प्राणी और २. सान्द्र (सघन, निविड, गाढ़ा ) किन्तु स्त्रीलिंग घनाघन शब्द का अर्थ - १. काक माची (मकोय, काकप्रिया) होता है । घरट्ट शब्द पुल्लिंग है और उसका अर्थ - १. पेषणी (चक्की) होता है । घर्घट शब्द भी पुल्लिंग ही माना जाता है किन्तु उसका अर्थ -- १. झषान्तर (मछली विशेष) होता है जिसको गगरी या गागर मछली कहते हैं उसी का नाम घर्घट है । घर्घट शब्द के और भी सात अर्थ माने जाते हैं - १. पर्वतद्वार (पहाड़ का द्वार भाग - प्रवेश मार्ग ) २. द्वार मात्र (द्वार सामान्य को भी) घर्घट कहते हैं । और ३. तुषानल (बुस्से की आग ) एवं ४. उलूक ध्वनि (उल्लू-घूक पक्षी की ध्वनि आवाज) और ५. हास्य (हास, हँसी) को भी घर्घट शब्द से व्यवहार किया जाता है । और ६. स्वरभेद (स्वर विशेष को भी) घर्घट कहते हैं, इसी प्रकार ७ नदान्तर (नद झील विशेष, महाहद) को भी घर्घट शब्द से व्यवहार किया जाता है ।
मूल :
स्त्रियांघर्घरिका क्षुद्रघण्टिका भृष्टधान्ययोः । नदी विशेषे वादित्रदण्ड वाद्यप्रभेदयोः ॥ ५३५ ।।
धर्मः स्वेदाम्भसि ग्रीष्म आतपेऽप्यष्मणि स्मृतः । घर्षणालः शिलापुत्रे संघर्षेघर्षणं स्मृतम् ।। ५३६ ।।
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