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नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-घोटक शब्द | १०१ घोष आभीर पल्ल्यां स्याद् गोपाले ध्वनि कांस्ययोः ।
मशके स्तनिते धामार्गवे कायस्थ पद्धतौ ॥ ५४२ ॥ हिन्दी टीका-घोटक शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-१. तुरग (घोड़ा) होता है किन्तु स्त्रीलिंग घोटिका शब्द का अर्थ-१. तुरङ्गी पादप (तुरङ्गी नाम का वृक्ष विशेष)। घोण्टा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं -१. गुवाक वृक्ष (सुपारी का वृक्ष) और–२. हस्तिकोलितरु (वृक्ष विशेष) । घोष शब्द पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं-१. आभीरपल्ली (झौंपड़ी) २. गोपाल, ३. ध्वनि (आवाज, शब्द विशेष) और ४. कांस्य (कांसा का बर्तन) एवं ५. मशक (चरस या मच्छर) तथा ६. स्तनित (शब्द गर्जन) ७. धामार्गव (अपामार्ग, चिरचोरी) और ८. कायस्थपद्धति (कायस्थ का शिष्टाचार, या रहन-सहन रीतिरिवाज) इस तरह घोष शब्द के आठ अर्थ समझने चाहिये। मूल : लोक विज्ञापनायोच्चैः शब्दिते घोषणा स्मृता।
घोषयित्नु ब्राह्मणे स्यात् कोकिले स्तुतिपाठके ॥ ५४३ ॥ घ्राणं क्लीवं नासिकायां स्यात् त्रिलिंगस्तु शिघिते ।
चकोरः चन्द्रिकापानशील - शालिविहङ्गमे ॥ ५४४ ॥ हिन्दी टीका-घोषणा शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ-१. लोकविज्ञापनाय उच्चैः शब्दित लोक समाज में किसी भी बात की सूचना देने के लिए ऐलान करना) होता है। घोषयित्नु शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. ब्राह्मण (वेदादि मन्त्रों को रटने-अभ्यास करने वाले ब्राह्मण) और २. कोकिल (कोयल) एवं ३. स्तुतिपाठक (स्तुति पाठ करने वाले) को भी घोषयित्नु कहा जाता है। घ्राण शब्द नपुंसक है और उसका अथ-१. नासिका (नाक) होता है। किन्तु त्रिलिंग घ्राण शब्द का अर्थ-१..शिचित (नाक का मल, नकटी, पोटा वगैरह) है । चकोर शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ--- १. चन्द्रिका पान शील शालि विहंगम (चाँदनी को पीने का स्वभाव वाला पक्षी विशेष को चकोर कहते हैं जो कि चन्द्र का प्रिय माना जाता है और चन्द्र भी उसका प्रिय होता है उसका नाम चकोर है।
चक्र सैन्ये जलावर्ते ग्राम जाल-रथाङ्गयोः ।
राष्ट्र व्यूह विशेषेऽपि तैल यन्त्रास्त्रभेदयोः ॥ ५४५ ॥ हिन्दी टोका-चक्र शब्द नपुंसक है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं -१. सैन्य (सेना समूह) २. जलावर्त (जल का भंवर भ्रमि) ३. ग्राम जाल (ग्राम समूह) ४. रथाङ्ग (गाड़ी का पहिया) ५. राष्ट्र (देश) ६. व्यूह विशेष (चक्रव्यूह) ७. तैलयन्त्र (तेल पीलने को मशीन) और ८. अस्त्रभेद (अस्त्र विशेष) इस प्रकार चक्र शब्द के आठ अर्थ जानने चाहिये । मूल : कुम्भकारोपकरणे दम्भभेद . समूहयोः ।
चक्रवर्ती सार्वभौमे वास्तूकेऽथस्त्रियामसौ ॥ ५४६ ।। अलक्तके जटामांसी गन्धद्रव्यविशेषयोः। चक्रवाको द्वयो रात्रि विश्लेषिणि विहंगमे ॥ ५४७ ॥
मूल :
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