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६. | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित --गुणनिका शब्द धागा) ६. भीमसेन (भीम) और १० दोषेतर विशेषण (दोष से भिन्न विशेषण) को भी गुण कहा जाता है। गुण शब्द के इस तरह कुल पन्द्रह अर्थ होते हैं। मूल : नृत्ये गुणनिका माल्ये शून्याङ्क पाठनिर्णये ।
गुण्डको धूलि-मलिन - स्नेहपात्र-कलोक्तिषु ॥ ४८१ ।। हिन्दी टोका-गुणनिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. नृत्य (नाच) २. माल्य (माला) ३. शून्याङ्क (शून्य संख्या) ४. पाठ निर्णय (पाठ का निश्चय करना)। गुण्डक शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. धूलि (धूल कण) २. मलिन (मैला) ३. स्नेहपात्र (तैलभाजन, कुप्पी) और ४. कलोक्ति (कला विषयक कयन)। मूल : गुप्तं स्याद् रक्षिते गूढे संगते वैश्यपद्धतौ ।
गुप्तिर्गोपन - भूगत - कारागारेषु रक्षणे ॥ ४८२ ॥ हिन्दी टोका-गुप्त शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं -१. रक्षित (सुरक्षित) २. गूढ़ (अत्यन्त गुप्त) ३. मंगन (योग्य उचित) ओर ४. वैश्य पद्धति (वैश्य का उपाधि अवटंक जैसेब्राह्मण को उपाधि-शर्मा मिश्र वगैरह क्षत्रिय की-वर्मा, शूद्र की दास. वैसे ही वैश्य की गुप्त)। गृप्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. गोरन (रक्षण) २. भूगर्त (भौंपरा. भूगर्भ जमीन के अन्दर) ३. कारागार (जेलखाना) और ४. रक्षण (रक्षा करना) इस तरह गुप्ति शब्द के चार अर्थ जानना।
अन्तकेऽवकरस्थाने नौकाछिद्रेऽपि कीर्तिता ।
गुम्फ: श्मश्रुणि सन्दर्भे भुजालंकरणेऽपि च ॥ ४८३ ॥ हिन्दी टीका-गुप्ति शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं- १. अन्तक (यमराज) २. अवकर स्थान (कूड़ा-कचरा रखने की जगह) और ३. नौका-छिद्र (नौका का छिद्र सूराख)। गुम्फ शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. श्मश्रु (दाढ़ी मूंछ) २. सन्दर्भ (प्रकरण) और ३. भुजालंकरण (बाँह का आभरण-भूषण विशेष)। मूल : गुरु निषेकादिकरे गीष्पतौ धर्मदेशके ।
कपिकच्छौ द्विमात्रेऽपि मन्त्रदातरि दुर्भरे ।। ४८४ ।। हिन्दी टोका--गुरु शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं - १. निषेकादिकर (निषेक-गर्भाधान वगैरह सोलह संस्कार कराने वाले पुरोहित) २. गीष्पति (वृहस्पति) ३. धर्मदेशक (धर्मोपदेष्टा) ४. कपिकच्छ (कवाँछु -जिसको शरीर में लगा देने से अत्यन्त खुजली होने लगती है। ५. द्विमात्रा (द्विमात्रा को भी गुरु कहते है) ६. मन्त्रदाता (मन्त्र गुरु) और ७. दुर्भर (जिसका भरण करना कठिन है उसको भी गुरु कहते हैं)। मूल : दुर्जरेऽध्यापके श्रेष्ठे गुल्मी वसनवेश्मनि ।
आमलक्यां वनी - गृधनखी गुल्मयुतेष्वपि ॥ ४८५ ॥ गुहो विष्णौ कार्तिकेय राममित्रे तुरङ्गमे । गुहा गर्ते सिंह पुच्छी लतायां गह्वरेऽपि च ॥ ४८६ ॥
मूल :
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