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८६ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - गरल शब्द
मूल :
४६१ ॥
गरलं परिमाणेऽपि विषे च तृणपूलके । गर्तः ककुन्दरे श्वभ्र रोगभेद - त्रिगर्तयोः ॥ हिन्दी टीका - गरल शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. परिमाण (माप विशेष ), २. विष (जहर) और ३. तृणपूलक (घास का पूला ) । गर्त शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. ककुन्दर (खड्डा ) २. श्वभ्र (बिल - छेद), ३. रोगभेद (रोगविशेष) और ४. त्रिगर्त । इस तरह गर्त शब्द के कुल चार अर्थ जानना चाहिए ।
मूल :
गर्दभो रासभे गन्धे विडङ्ग कुमुदे द्वयोः ।
गर्दभाण्ड: प्लक्षवृक्षे कन्दरालतरावपि ।। ४६२ ।।
हिन्दी टीका-गर्दभ शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. रासभ (गदहा), २. गन्ध, ३. विडङ्ग (बायविडङ्ग कृमिघ्न) और ४. कुमुद (सफेद कमल - भेंट, कोई) अर्थ में पुल्लिंग नपुंसक है । गर्दभाण्ड शब्द भी पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. प्लक्ष वृक्ष ( पाकर वृक्ष) और २. कन्दरालतरु (लाही पीपल) इस प्रकार गर्दभाण्ड शब्द के दो अर्थ जानना ।
मूल :
गर्भोऽपवरके भ्र ूणे
सन्धौ पनसकण्टके । कुक्षौ मध्येऽर्भके वह्नौ सरित्सन्निहित स्थले ।। ४६३ ।।
हिन्दी टीका -- गर्भ शब्द पुल्लिंग है और उसके नौ अर्थ माने जाते हैं - १. अपवयक ( हटाने वाला, नाटक में 'अपवार्य, ऐसा प्रयोग दूसरे को हटाकर इस अर्थ में प्रयुक्त होता है जिसको गर्भाङ्क शब्द से भी व्यवहार किया जाता है) २. भ्रूण (गर्भस्थ बालक) ३. सन्धि ( जोड़) ४. पनसकण्टक (कटहल का कांटा) ५. कुक्षि (उदर पेट ) ६. मध्य (बीच) ७. अर्भक ( बच्चा शिशु) ८. वह्नि (आग) और ६. सरित्सन्नि - हितस्थल (नदी का निकटवर्ती स्थल) को भी गर्भ कहते हैं ।
मूल :
गलः सर्जरसे कण्ठे वाद्यभेदे गलग्रहो मत्स्यघण्टे तिथिभेदेऽपि
झषान्तरे । कीर्तितः ।। ४६४ ॥
हिन्दी टीका- गल शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं -- १. सर्जरस ( सखुआ वृक्ष का रस या वृक्ष विशेष) २. कण्ठ (गला) ३. वाद्यभेद (बाजा विशेष ) ४. झषान्तर ( जलचर जन्तु मछली मगर वगैरह ) । गलग्रह शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. मत्स्य घण्ट ( मछली का भेद ) और २ तिथिभेद ( तिथि विशेष ) ।
मूल :
गल्वको मद्यपात्रे
स्यादिन्द्रनीलमणावपि ।
गवेधुका
नागवला - तृणधान्य
विशेषयोः ।। ४६५ ।।
हिन्दी टीका - गल्वक शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. मद्यपात्र ( शराब का प्याला) और २. इन्द्रनीलमणि ( मरकतमणि विशेष ) । गवेधुका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं-- १. नागवला (गंगेरन, बला, कंकही ) और २ तृणधान्य विशेष ( नागरमोथा) | गोहिते त्रिषु गव्यं स्यात् गो सम्बन्धि घृतादिषु ।
मूल :
गव्या गोरोचना - गोत्रा - गव्यूति - ज्यासु कीर्तिता ।। ४६६ ॥
हिन्दी टीका - गव्य शब्द नपुंसक है और दो अर्थ माने जाते हैं - १. गोहित (गो के लिये हितकारक) और २. गो सम्बन्धि घृतादि (गाय का दूध, दही, गोबर, गोमूत्र और गोघृत) । गव्या शब्द
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