________________
नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-कुण्डली शब्द | ६५ जार पुरुष से उत्पन्न सन्तान होता है । कुण्डल नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. वलय (वाला -चूड़ी) २. पाश (पाशा) और ३. श्रवणाऽऽभरण (कान का कुण्डल)। इस तरह कुण्डल शब्द के तीन अर्थ जानना चाहिये। मूल : कुण्डली वरुणे सर्प मयूरे चित्तलेमृगे।
त्रिषु कुण्डलयुक्त ऽथ-कुण्डी स्थाल्यां कमण्डलौ ॥ ३५० ॥ हिन्दो टोका-कुण्डली शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. वरुण, २. सर्प, ३. मयूर (मोर) और ४. चित्तल मृग (मृग विशेष) किन्तु कुण्डल युक्त अर्थ में तो कुण्डली शब्द त्रिलिंग माना जाता है -क्योंकि पुरुष, स्त्री, साधारण कोई भी कुण्डल धारण कर सकता है। इसी तात्पर्य से कहा है-"त्रिषु कुण्डल युक्ते' इति । स्त्रीलिंग कुण्डी शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. स्थाली (वटलोही-थाली) और २. कमण्डलु (जल पात्र विशेष) । इस तरह कुण्डी शब्द के दो अर्थ समझना। मूल : कुतपोऽस्त्री कुशतृणे छागलोमजकम्बले।
वाद्य दौहित्रयोरहऽष्टशेमोऽपि कीर्तितः ।। ३५१ ॥ हिन्दी टोका -- कुतप शब्द अस्त्री (पुल्लिग तथा नपुंसक) माना जाता है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. कुशतृण (दर्भ-कुश) २. छागलोमजकम्बल (छाग या गेटा के लोमों का बना हुआ कम्बल) ३. वाद्य (वाद्य विशेष) ४. दौहित्र (नाती -लड़की का लड़का) और ५. अह्नोऽष्टमोऽश (दिन का आठवाँ भाग-दिन के बारह बजे से दो बजे तक काल विशेष को भी कुतप कहते हैं ।) द्वौ यामौ घटिका न्यूनौ द्वौ यामौ घटिकाधिकौ इत्यादि । मूल : पुमान् सूर्येऽतिथौवह्नौ भागिनेये द्विजे गवि ।।
कुतुपश्चर्मरचिते लघूनि स्नेह भाजने ॥ ३५२ ॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग कुतप शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं-१. सूर्य, २. अतिथि (अभ्यागत) ३. वह्नि (आग) ४. भागिनेय (भाञ्जा) ५. द्विज (ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य) और ६. गौ (गाय बैल) । कुतुप शब्द पुल्लिग है और उसका एक ही अर्थ माना गया है-चर्मरचित लघु स्नेह-भाजन (चमड़े का बना हुआ छोटा-सा तैल पात्र)। मूल : कुतूः स्त्री चर्मरचिते महति स्नेहभाजने ।
कुथो गजपृष्ठास्तरणे चासनेऽपि प्रकीर्तितः ॥ ३५३ ॥ हिन्दी टोका-कुतू शब्द स्त्रीलिंग है और उसका भी एक ही अर्थ होता है - चर्मरचित महत् स्नेह-भाजन (चमड़े का बना हुआ बड़ा तैल पात्र)। कुथ शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. गजपृष्ठास्तरण (हाथी के पीठ पर रखा जाने वाला हौदा) और २. आसन भी कुथ शब्द से व्यवहृत होता है। प्ल: कुद्दाल: कोविदारद्रु भूमिदारण - शस्त्रयोः ।
कुन्ते । भल्लास्त्रचण्डत्व - क्षुद्रजन्तु-गवेधुषु ॥ ३५४ ।। .. हिन्दी टीका-कुद्दाल शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. कोविदारद् (कोविदार नाम का वृक्ष विशेष) और २. भूमिदारण शस्त्र (पृथ्वी को खोदने का साधन विशेष-कुदाल, खनती
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org