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७२ / नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-कूर्म शब्द जोकि जप ध्यान काल में प्रयुक्त होता है। और २. बाह्य वायुभेद (शरीर के भीतर बाहर निकलने वाला वायु विशेष) को भी कूर्म शब्द से व्यवहार किया जाता है एवं ३. कच्छप (काचवा-काछु) को भी कूर्म शब्द से व्यवहृत करते हैं । मूल : . अवतारान्तरे विष्णोः कूलं स्तूप-तडागयोः ।
प्रतीरे सैन्यपृष्ठेऽथ कृकरः कृकणे शिवे ॥ ३८५ ॥ हिन्दी टीका-विष्णोः अवतारान्तर विष्णु भगवान् के एक अवतार विशेष) को भी कूर्म कहा जाता है । कूल शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. स्तूप (मिट्टी का भिण्डा) और २. तडाग (तालाब) ३. प्रतीर (नदी तालाब वगैरह का तट किनारा) और ४. सैन्य पृष्ठ-सेना के पृष्ठ भाग को भी कूल शब्द से व्यवहार किया जाता है। कृकर शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. कृकण (अशुभ बोलने वाला पक्षी विशेष) २. शिव (शङ्कर भगवान्)।।
चव्यके करवीरेऽथ कूवरोऽस्त्री युगन्धरे ।
कृकवाकुस्तु सरट मयूरे कुक्कुटे पुमान् ॥ ३८६ ॥ हिन्दी टोका-१. चव्यक (गज पीपरि) को भी कृकर कहते हैं, एवं २. करवीर-करवीर नाम के प्रसिद्ध पुष्प विशेष को भी कृकर कहते हैं । कूवर शब्द अस्त्री-पुल्लिग और नपुंसक भी माना जाता है और उसका एक अर्थ युगन्धर (पर्वत विशेष) होता है । कृकवाकु शब्द पुल्लिग माना जाता है और उसके तीन अर्थ होते हैं--१. सरट (बड़ा गिरगिट) २. मयूर (मोर) और ३. कुक्कुट (मुर्गा)। इस प्रकार तीन अर्थ जानना। मूल : कृतं फलेऽलमर्थेऽपि पर्याप्त युगभेदयोः।
___ कृतान्तो यम सिद्धान्त देवेष्वशुभ कर्मणि ।। ३८७ ॥ हिन्दो टोका-कृत शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं- १. फल (प्रयोजन) २. अलमर्थ (व्यथं) ३. पर्याप्त (पुष्कल) और ४. युगभेद (सत्ययुग) । कृतान्त शब्द पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं -१. यम (यमराज) २. सिद्धान्त (निर्णीत) और ३. देव (भाग्य) एवं ४. अशुभ कर्म (अनिष्ट)। मूल : कृती साधौ पुण्यवति पण्डिते निपुणे त्रिषु ।
कृतिश्चर्मणि भुर्जत्वक्-कृत्तिका-तारकास्वपि ।। ३८८ ॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग कृतिन् शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. साधु (महात्मा) २. पुण्यवान् (धर्मात्मा) और ३. पण्डित (विद्वान)। किन्तु निपुण (कुशल) अर्थ में कृतिन् शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि पुरुष स्त्री साधारण सभी निपुण (प्रवीण-क्रिया कुशल) हो सकते हैं। कृति शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. चर्म (चमड़ा) २. भुर्जत्वक् (भोज पत्र) और ३ कृत्तिका तारा (कृत्तिका नक्षत्र)। मूल : . कृत्यो धनादिभिर्भेद्ये विद्विष्टे प्रत्ययान्तरे ।
कार्ये त्रिष्वथ कृत्या स्यात् क्रियायां देवतान्तरे। ३८६ ॥ . हिन्दी टोका-पुल्लिग कृत्य शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. धनादिभिर्भेद्य (धन वगैरह के द्वारा भेद पारने योग्य) २. विद्विष्ट (शत्रु) और ३. प्रत्ययान्तर (सुतिङ वगैरह प्रत्यय) किन्तु कार्य
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