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६४ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - कुंजर शब्द
मूल :
कुञ्जरो देशभेदे स्यात् केशे दन्तावले पुमान् । कुटः कोट्टे शिला कुट्टे वृक्षपर्वतयोः पुमान् ॥ ३४४ ॥
हिन्दी टीका - किन्तु पुल्लिंग कुंजर शब्द के तीन अर्थ माने जाते है - १. देशभेद (देश विशेष) २. केश (बाल) और ३. दन्तावल (हाथी) । इस तरह पुल्लिंग कुंजर शब्द के तीन अर्थ हैं । कुट शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. कोट्ट (परकोटा, दुर्ग - किला) २. शिला कुट्ट (पत्थर की चट्टान ) ३. वृक्ष (तरु) और ४. पर्वत ( पहाड़ ) ।
मूल :
कुटुम्बः पोष्यवर्गेऽस्त्री - ज्ञाति - सन्ततिनामसु । कुट्टनं छेदने क्लीबं कुत्सने च प्रतापने ॥
३४५ ।।
हिन्दी टीका - कुटुम्ब शब्द पुल्लिंग और नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. पोष्यवर्ग (सेवक वर्ग) २. ज्ञाति (सम्बन्धी) ३. सन्तति ( सन्तान) और ४ नाम । कुट्टन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. छेदन (छेद करना) २. कुत्सन ( निन्दा करना) और ३. प्रतापन ( आग पर तपाना) ।
मूल :
. कुट्टिमोऽस्त्री कुटीरे स्यात् सुधाघटितभूतले ।
मणिभूमी दाडिमेऽथ कुठारः परशौ द्वयोः ॥ ३४६ ॥
हिन्दी टीका - कुट्टिम शब्द पुल्लिंग एवं नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं -१ कुटीर (पर्णकुटी-झोंपड़ी) २. सुधा घटित भूतल (चूना से लिप्त भूमि अथवा सफेद पत्थरों से जड़ी हुई जमीन ) ३. मणिभूमि (फर्श ) और ४. दाडिम (वेदाना अनार) । परशु ( फर्शा के लिए) कुठार शब्द पुल्लिंग और नपुंसक माना जाता है ।
मूल :
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कुड्यं कौतूहले भित्तौ लेपने च नपुंसकम् ।
कुपः शवे शस्त्रभेदे पूतिगन्धौ त्वसौ त्रिषु ॥ ३४७ ॥
हिन्दी टीका - कुड्य शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. कौतूहल, २. भित्ति ( दीवाल) और ३. लेपन (लिपना ) । पुल्लिंग कुणप शब्द का दो अर्थ होते हैं - १. शव (मुर्दा ) २. शस्त्रभेद ( शस्त्रविशेष) किन्तु पूतिगन्धि ( दुर्गन्ध - बदबू ) के लिए शव शब्द त्रिलिंग माना जाता है ।
मूल :
कुण्डं मानान्तरे नीराधारभेदे होमीयाग्न्यालये देवसलिलाशय
हिन्दी टीका - कुण्ड शब्द नपुंसक है और उसके भी चार अर्थ होते हैं - १. मानान्तर (बटमापने का बटवारा) २. नीराधार भेद (पानी रखने की कुण्डी ) ३. होमीयाग्न्यालय (होम करने के लिए अग्नि का कुण्डा) और ४. देवसलिलाशय (देवों का तालाब कूवाँ बाबरी विशेष ) ।
मूल :
नपुंसकम् । इष्यते ॥ ३४८ ॥
हिन्दी टीका स्थाली ( वटलोही या थाली) माना जाता है और पुल्लिंग कुण्ड शब्द का अर्थ "पत्यौ
स्थाल्यां क्लीबे स्त्रियां कुण्डः पत्यौ जीवति जारजे । कुण्डलं वलये पाशे श्रवणाऽऽभरणेऽपि च ॥ ३४६ ॥
अर्थ में कुण्ड शब्द नपुंसक और स्त्रीलिंग भी जीवति जारजे" (पति के जीवित रहने पर भी
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