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६२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित --किकिरात शब्द
हिन्दी टीका-किकिरात शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं-१ रक्ताम्लान (फल विशेष) और २. कोकिल (कोयल)। किञ्जल्क शब्द पुल्लिग है और उसका एक अर्थ होता है-१. केशर । किट्टाल शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. ताम्र कलश (ताँबे का घड़ा) और २. लोहगूथक (लोहे का जंग-कीट) । स्त्रीलिंग किणि शब्द के दो अर्थ होते हैं-अपामार्ग (चिरचीरी) और २. माँसग्रन्थि (मांस का गाँठ ढेला वगैरह) किन्तु ३. घुण (घुन दीमक) अर्थ में किणि शब्द पुल्लिग है। कितव शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-वंचक (ठगने वाला) २. मत्त (पागल) ३. द्यूतकृत् (जूआ खेलने वाला जुआरी) ४. खल (दुष्ट-शत्रु)। मूल : किन्नरोऽस्त्री किंपुरुषस्याज्जिनोपासकान्तरे ।
किरणो भास्करे रश्मिसामान्ये सूर्यतेजसि ॥ ३३४ ॥ किरातोऽल्पतनौम्लेच्छे भूनिम्बे वाजिरक्षके।
किराती-जाह्नवी-दुर्गा-स्वर्गङ्गा कुट्टिनीषु च ।। ३३५ ॥ हिन्दी टीका-किन्नर शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. किम्पुरुष (गन्धर्व विशेष) और २. जिनोपासकान्तर (जिन भगवान का सेवक विशेष) । किरण शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं ... १. भास्कर (सूर्य) २. रश्मि सामान्य (किरण) और ३. सूर्य तेज (सूर्य की किरण)। पुल्लिग किरात शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. अल्प तनु (नाटा वामन) २. म्लेच्छ (यवन वगरह) ३. भूनिम्ब (लीमड़ा) और ४. वाजिरक्षक (घोड़े का सेवक) । स्त्रीलिंग किराती शब्द के भी चार अर्थ होते हैं-१. जाह्नवी (गंगा) २. दुर्गा, ३. स्वगंगा (आकाश गंगा) और ४. कुट्टनी स्त्री (स्त्रियों को फुसलाकर कुमार्ग में प्रेरित करने वाली स्त्री)। इस तरह किन्नर शब्द के दो और किरण शब्द के तीन तथा किरात-किराती शब्द के मिलाकर छह अर्थ होते हैं।
किशोरोऽश्वशिशौ तेलपर्ध्या तरुणसूर्ययोः । किष्कुः प्रकोष्ठे हस्ते च वितस्तौ कुत्सिते त्रिषु ॥ ३३६ ॥ कीचकोऽनिलसंबन्ध-ध्वनवंशे दुमान्तरे ।
नले विराट श्याले च राक्षसान्तर दैत्ययोः ॥ ३३७ ॥ हिन्दी टोका-किशोर शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं- १. अश्वशिशु (घोड़े का बच्चा) २. तैलपर्णी (सफेद ठण्डा चन्दन) ३. तरुण (नवयुवक) और ४ सूर्य । किष्कु शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १ प्रकोष्ठ (कमरा) २. हस्त (हाथ) ३. वितस्ति (बीत्ता विलस्त) किन्तु ४. कुत्सित( निन्दित) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है। कीचक शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ होते हैं – १. अनिल सम्बन्ध-ध्वनद् वंश (पवन के सम्बन्ध से अव्यक्त ध्वनि शब्द युक्त बाँस का पेड़) २. द्र मान्तर (वृक्ष विशेष) ३. नल, ४. विराट श्याल (विराट राजा का शाला) ५. राक्षसान्तर (राक्षस विशेष) और ६. दैत्य (दानव)। मूल : कीनाशः कर्षके क्षुद्रे पशुघातिनि वाच्यवत् ।
यमे वानरभेदेऽथ कीरः शुकविहङ्गमे ॥ ३३८ ॥
मूल :
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