________________
४६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित --कण्टक शब्द मूल : कण्टकोऽस्त्री क्षुद्र शत्रौ-केन्द्र रोमाञ्चयोरपि ।
नैयायिकादि दोषोक्तौ मत्स्याद्यस्थिद्रुमाङ्गयोः ।। २४२ ॥ पुमांस्तु लोमहर्षे स्यात् रेणु सूच्यग्रभागयोः ।
कर्मस्थाने क्षुद्रशत्रौ दोषे मकर केन्द्रयोः ।। २४३ ॥ हिन्दी टोका-कण्टक शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक भी है और उसके १४ अर्थ होते हैं उनमें नपुंसक कण्टक शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं जैसे (१) क्षुद्र शत्रु (छोटा शत्रु) (२) केन्द्र (सेन्टर) ३. रोमाञ्च (रोम खरा होना) ४. नैयायिकादिदोषोक्ति (नैयायिक वगैरह के द्वारा दिये गये दोष कथन) ५. मत्स्याद्यस्थि (मछली वगैरह की अस्थि-हाड़का) और ६ दुमांग (बबूल वगैरह वृक्षों का कांटा) और पुल्लिग कण्टक शब्द के आठ अर्थ होते हैं-१. लोमहर्ष (रोमाञ्च) २. रेणु (कण) ३. सूच्यग्रभाग (सूई की नोंक) ४. कर्मस्थान ५. क्षुद्र शत्रु ६. दोष ७. मकर और ८. केन्द्र। इस तरह कण्टक शब्द से १४ अर्थ जानना चाहिए। मूल : कण्टकी वदरे मत्स्ये वंशे मदनपादपे।
गोक्षुरे खदिरे पुंसि स्त्रियाँ तु कङ्गणे मता ॥ २४४ ॥ पुमान् कण्टकफल: क्षुद्र गोक्षुरे पनसेऽपि च ।
लता करज एरण्डे तेजः फलमहीरुहे ।। २४५ ।। हिन्दी टीका --पुल्लिग कण्टकी शब्द के छह अर्थ होते हैं- १. वदर (बोर-बेर) २. मत्स्या (मछली) ३. वंश (वांस का झाड़) ४. मदन पादप (धतुर का वृक्ष) ५. गोक्षुर (गोखुरु-गोखरु) और ६. खदिर (कत्था खैर) और स्त्रीलिंग कण्टकी शब्द का १ कंगण (कंगण-वूड़ी) अर्थ होता है। कण्टक फल शब्द पुल्लिग माना जाता है, यद्यपि केवल फल शब्द नपुंसक तथापि जिसके फल में कांटा हो उसे कण्टक फल कहते हैं इस प्रकार बहुब्रीहि समास होने से कण्टक फल शब्द पुल्लिग समझना चाहिए। और उसके पांच अर्थ होते हैं-१. क्षुद्र गोक्षुर (छोटा गोखरु) २. पनस (कटहल) ३. लता करज (इंगुदी वृक्ष-डिठ. वरन का झाड़ जिसका फल चापत होता है और उस चापत फल से तेल निकाला जाता है जो कि वात रोग में काम आता है) और ४. एरण्ड (अण्डी का वृक्ष) एवं ५. तेज फल महीरुह (तरिसात का झाड़जिसके पत्ते दाल वगैरह के बघारने-छोंकने के काम में आते हैं। इस तरह कण्ट की शब्द के सात और कण्टक फल के पाँच अर्थ जानना।
कण्ठो ग्रीवापुरोभागे त्रिलिगो निकटे ध्वनौ । पुमान् मदनवृक्षे स्यात् कुण्डादु बाह्य स्थलेपि च ॥२४६॥ कण्ठालः शूरणे गोणीप्रभेदे युद्धनौक्रयौः ।
क्रमेलके खनित्रेऽथ कण्ठिका कण्ठभूषणौ ॥ २४७ ॥ हिन्दी टोका-कण्ठ शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. ग्रोवापुरोभाग (गला) २. निकट (नजदीक) और ३ ध्वनि (आवाज-अव्यक्त शब्द) किन्तु १. मदन वृक्ष (धत्तूर) और २. कुण्डाद्बाह्मस्थल (कुण्ड से बाहर का स्थान) इन दोनों अर्थों में कण्ठ शब्द पुल्लिग ही माना जाता है। कण्ठाल
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org