________________
नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-कवि शब्द | ५३ कल्लोलस्तु महावीचि-हर्षयोस्त्रिषु वैरिणि ।
कवचोऽस्त्री कन्दराले सन्नाहे पटहे स्तुते ॥ २८२ ॥ हिन्दी टीका-किन्तु १. उपाय वचन (उपाय अर्थ) और २. भद्रवचन (कल्याण अर्थ) में कल्य शब्द त्रिलिंग माना जाता है। कल्याण शब्द १ मगल (कल्याण) और २. स्वर्ण (सोना) है और ३. शुभान्वित (शुभ से युक्त) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है । कल्लोल शब्द १. महावीचि (अत्यन्त तरंग) अर्थ और २. हर्ष (आनन्द) अर्थ में पुल्लिग हो माना जाता किन्तु ३. वैरी (शत्रु) अर्थ में त्रिलिंग कहा गया है । कवच शब्द पुल्लिग और नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१, कन्दराल (लाही पीपर-पाकर) २. सन्नाह (कवच लोहे का बना हुआ शरीर रक्षक साधन विशेष) ३. पटह (ढक्का) और ४. स्तुति (स्तुति विशेष) इस तरह कल्लोल शब्द के तीन और कवच शब्द के चार अर्थ समझना । मूल : कविः काव्यकरे सूर्ये वाल्मीकिमुनि-शुक्रयोः ।
विरिञ्चौ पण्डिते कल्कि ज्येष्ठ भ्रातरि तस्करे॥२८३ ॥ कविका कवयीमीने खलीने केविका सुमे ।
कश्यं मद्येऽश्वमध्येऽपि कशा तु त्रिलिंगकः ॥ २८४ ॥ हिन्दी टोका-कवि शब्द पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ होते हैं-१. काव्यकर (काव्य बनाने वाला) २. सूर्य, ३. वाल्मीकि मुनि, ४. शुक्र (शुक्राचार्य वर्गरह) ५. विरिञ्चि (ब्रह्मा) ६. पण्डित ७. कल्कि ज्येष्ठ भ्राता (कलि का बड़ा भाई) और ८. तस्कर (चोर) इस तरह कवि शब्द के आठ अर्थ समझना चाहिए। कविका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. कवयी मीन (कबै नाम की मछली) और २ खलीन (घोड़े का लगाम)। केविका शब्द भी स्त्रीलिंग है, उसका १. सुम (फूल) अर्थ होता है। कश्य शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं -१. मद्य (शराब) और २. अश्वमध्य (घोड़े का मध्य भाग) किन्तु ३ कशाह (चाबुक से ताड़ने के योग्य) अर्थ में कश्य शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि घोड़ा घोड़ी सभी चाबुक से ताड़न के लायक हो सकते हैं। इस तरह कविका शब्द के दो एवं केविका शब्द का एक और कश्य शब्द के तीन अर्थ जानना चाहिए। मूल : कश्यपोमद्यपे मत्स्य - मृगभेदे मरीचिके ।
कषायोऽस्त्री पाचनादौ वङ्गरागे विलेपने ॥ २८५ ॥ निर्यासे तुवरेऽपि स्यात्रिषु तूवरवत्यपि ।
पुमान् श्योनाकवृक्षे स्याद् रागे कलियुगे स्मृतः ॥ २८६ ।। हिन्दी टीका-कश्यप शब्द पुल्लिग है और इसके चार अर्थ होते हैं-१. मद्यप (शराब पीने वाला) २. मत्स्य (मछली विशेष) ३. मृगभेद (हिरण विशेष) और ४. मरीचिज (मरीचि ऋषि का पुत्र कश्यप)। कषाय शब्द पुल्लिग और नपुंसक है उसके तीन अर्थ होते हैं - १. पाचनादि (पाचन के लिए क्वाथ काढ़ा) २. वंग राग (गेरुआ रंग) और ३ विलेपन (लेप का साधन) । इस तरह कश्यप शब्द के चार और कषाय शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिए। कषाय शब्द के और भी पाँच अर्थ होते हैं--१. निर्यास (काढ़ाक्वाथ) २. तुवर (कसैला रस) किन्तु ३. तूवरवत् (कसैला रस से युक्त) अर्थ में कषाय शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि कोई भी वस्तु पुल्लिग स्त्रीलिंग तथा नपुंसक साधारण कषाय रस से युक्त हो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org