________________
३४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित--उत्साह शब्द मूल : उत्साह उद्यमे सूत्रे कल्याणे ध्रुवकान्तरे ।
क्षेपणं तालवृन्ते स्याद् धान्यमदनवस्तुनि ॥१७५॥ ऊर्ध्वप्रक्षेपणे क्लीवं पणे षोडशकेऽपि च ।
उदन्तः पुंसि वृत्तान्ते साधो स्याद् वृत्तियाजने ॥१७६।। हिन्दी टीका-उत्साह शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. उद्यम (व्यवसाय) २. सूत्र (योजना) ३. कल्याण (मंगल) और ४. ध्रुवकान्तर (ध्रुव) । क्षेपण शब्द नपुंसक है-उसके भी चार अर्थ होते हैं-१. तालवृन्त (पंखा) २. धान्यमर्दन वस्तु (धान-डांगर को समेटने का साधन फरुआ-काष्ठ निर्मित पात्र विशेष) ३. ऊर्ध्वप्रक्षेपण (ऊपर की ओर फेंकना) और ४. षोडश पण (सोलह पैसा-चार आने अथवा पच्चीस नये पैसे का सिक्का) उदन्त शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१ वृत्तान्त (समाचार) २. साधु (परहितकारक) और ३. याज नवृत्ति (याग कराने की वृत्ति जीविका पौरोहित्यादि क्रिया)। इस तरह उत्साह शब्द के चार एव क्षेपण शब्द के भी चार और उदन्त शब्द के तीन अर्थ समझना। मूल : उदयो मंगले दीप्तावुदयाद्रौ समुन्नतौ।
उदर्क आगामिकालफले मदनकण्टके ॥१७७।। हिन्दो टोका-उदय शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. मंगल, २. दीप्ति (प्रकाश) ३. उदयाद्रि (उदयाचल पहाड़) और ४. समुन्नति (उन्नति करना) । इसी प्रकार उदर्क शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१ आगामिकालफल (भविष्य काल में होने वाला फल-परिणाम) और २. मदनकण्टक (धतूरे का काँटा)। मूल : त्रिषूदात्तो दयायुक्त हृद्ये महति दातरि ।
त्यागिन्यप्यथ दानेऽपि स्वर वाद्यान्तरे पुमान् ॥१७८।। उदान उदरावर्ते पक्ष्म सर्पविशेषयोः ।
पुलिंगोनाभिदेशे स्यात् कण्ठदेशस्थ मारुते ।।१७६।। हिन्दी टीका -त्रिलिंग उदात्त शब्द के छह अर्थ होते हैं-१. दयायुक्त (दयालु) २ हृद्य (मनोहर) ३. महान् (विशाल बड़ा। ४. दाता (दान देने वाला) ५. त्यागी (त्याग करने वाला) और ६. दान । किन्तु पुल्लिग उदात्त शब्द का १. उदात्त स्वर और २ वाद्यान्तर (वाद्य विशेष) इस प्रकार दो अर्थ समझने चाहिए। उदान शब्द भी पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ होते हैं-१. उदरावर्त (उदर की भ्रमि-भंवर कुक्षि का आवर्त) २ पक्ष्म (पलक) ३. सर्पविशेष ४. नाभिदेश (नाभिस्थान) और ५. कण्ठदेशस्थमारुत (गले में स्थित पवन) । इस तरह उदान शब्द के पांच अर्थ जानना। मूल : उदारो दातृ महतो दक्षिणेऽपि त्रिलिङ्गकः ।
उदास्थितः पुमान् नष्टसंन्यास-द्वारपालयोः ॥१८०॥ अध्यक्षे गूढपुरुषेऽथोद्गारः कण्ठगजने । शब्द उवमने चाथोद्ग्राहो विद्याविचारणे ॥१८१॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org