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जिन सत्र
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लोगों के मन में गूंजती रहती है। उसके कारण अगर कोई कि हजारों ऊंट इकट्ठे ठहर सकें। फिर अचानक सब खो गया। जतानेवाला भी मिल जाए, कोई जगानेवाला भी मिल जाए, कोई आज मांडू में नौ सौ आदमी हैं। खंडहर पड़े हैं। विशाल खंडहर तुम्हारी ज्योति को थोड़ा सहारा भी देनेवाला मिल जाए, तो तुम हैं। बड़े महल हैं। मीलों तक विस्तार है। उसे सहारा नहीं देने देते। तुम कहते हो, 'ठहरो! हमारी मान्यता जिन मित्र के साथ मैं ठहरा था, वे इंदौर में एक बड़ा मकान के विपरीत तो नहीं है?' तुम मान्यताओं को क्या संपत्ति समझे बना रहे थे। वे इतनी धुन से भरे थे अपने बड़े मकान की कि हुए हो? तो फिर तुम न सीख पाओगे।
सुबह उठे तो उसकी बात करें। नये-नये विचार, नयी-नयी तरंगें तो महावीर कहते हैं, जो जीव मिथ्यात्व से ग्रस्त होता है उसकी कि ऐसा कर लेंगे। तो स्विमिंगपूल कैसा बनाना...! कौन-सा दृष्टि विपरीत हो जाती है। नहीं कि सदपुरुष न थे। नहीं कि | पत्थर लगाना, रात सोते-सोते भी वे वही बात करते, सुबह ज्योतिर्मय पुरुष न थे। लेकिन कहते हैं, 'मैं मूढ़मति ! जो उन्होंने उठकर भी। दो-तीन दिन के बाद मैंने उनसे कहा कि तुम जरा कहा, उससे उलटा समझा। जो उन्होंने बताया वह तो सुना ही मांडू भी तो देखो! कहने लगे, क्या देखना मांडू में ? मैंने कहा, न, कुछ और सुन लिया। जो उन्होंने कहा, वह तो कभी किया न, जरा चारों तरफ नजर भी तो फैलाओ, कितने बड़े महल थे, सब उसे सैद्धांतिक बोझ बना लिया।'
खंडहर हो गये। उन्होंने कहा, रहने दो बाबा! पहले मुझे मकान 'उसे धर्म भी रुचिकर नहीं लगता।' और धर्म की बात | तो बना लेने दो। जब होगा खंडहर तब होगा! अभी मत छेड़ो रुचिकर नहीं लगती। क्योंकि धर्म की बात को अगर रुचि से | बीच में यह बात। सुनो भी, तो तुम्हारे जीवन में क्रांति सुनिश्चित है। लेकिन क्रांति वे मुझसे उस दिन बोले कि कभी-कभी तुम्हारे साथ होकर डर से घबड़ाहट होती है। तुमने बहुत-से न्यस्त स्वार्थ बना रखे हैं। लगता है। हो तो जाने दो पहले मकान पूरा, तुम अभी से खंडहर तुम एक बड़ा मकान बना रहे हो, अब कोई कहता है कि ये सब की बात करने लगे! अपशगुन तो मत करो! कोई शुभ कार्य में खंडहर हो जाएंगे। तो तुम कहते हो, यह बातचीत सुनो ही मत, ऐसी बात तो नहीं कहनी चाहिए। अब यह बना तो लेने दो। अभी अगर यह बीच में बात सुन ली वे घबड़ा गये। स्वभावतः कोई महल बना रहा हो, उसको तुम तो यह बनाने का जो उपक्रम चल रहा है, बंद हो जाएगा। खंडहर की बात बताओ, नाराज होगा। समझ में भी आ
मेरे एक मित्र के साथ, इंदौर के पास मांडू में मैं मेहमान था। | जाए...समझ में क्यों न आएगा? समझने की क्या अड़चन है मांडू की संख्या कभी नौ लाख थी—ज्यादा दिन नहीं, सात सौ इसमें? इतना फैलाव पड़ा है, इतने खंडहर हो गये साल पहले और आज नौ सौ भी नहीं है। बड़ी विराट नगरी थी मकान-तुम्हारा मकान भी खंडहर हो ही जाएगा। तुम मांडू। मांडवगढ़ उसका नाम था। जब बस्ती सिकुड़ गयी तो बना-बनाकर मर जाओगे, मिट जाओगे। तुम अपने को गंवा मांडवगढ़ 'मांडू' हो गया हो ही जाना चाहिए। मांडवगढ़ | दोगे ईंटें रखने में। फिर पछताओगे। अब कहने का कोई मतलब नहीं है! इतनी-इतनी बड़ी मस्जिदें लेकिन आदमी के न्यस्त स्वार्थ हैं। हैं, उनके खंडहर हैं, जहां दस-दस हजार लोग इकट्ठे नमाज पढ़ इसलिए महावीर कहते हैं : सकते थे। इतनी बड़ी धर्मशालाएं हैं कि जहां दस-दस हजार . 'मिच्छत्तं वेदन्तो जीवो विवरीयदंसणो होइ। लोग इकट्ठे उतर सकते थे। मांडव बड़ी नगरी थी। उन जमानों नय धम्म रोचेद ह, महरं पि रसं जह जरिदो।।' की बंबई थी। क्योंकि ऊंटों का सारा आवागमन था और मांडू जैसे ज्वरग्रस्त आदमी को मीठा रस भी मीठा नहीं मालूम मध्य में था। सारा मुल्क मांडू से गुजरता था। मुल्क के बाहर के पड़ता, ऐसे वासना के ज्वर से भरे व्यक्ति को धर्म की बात भी यात्री भी, चाहे अफगानिस्तान से आते हों, चाहे काबुल से आते | सुनायी नहीं पड़ती, उलटी सुनायी पड़ती है। हों, चाहे ईरान से आते हों, मांडू से ही गुजरते थे। तो हजारों एक छोटा बच्चा एक बगीचे में आम तोड़ता हुआ पकड़ा यात्री बने रहते थे। सैकड़ों मस्जिदें थीं, सैकड़ों मंदिर थे, सैकड़ों गया। माली ने उसे पकड़ा, पुलिस-थाने ले गया। लड़का धर्मशालाएं थीं। ऊंटों के ठहरने के लिए इतने-इतने बड़े स्थान थे भोला-भाला था। भोला-भालापन देखकर दरोगा ने कहा,
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