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जिन सूत्र भाग 1
बगुला-भगति है। वह बगुले को देखा, खड़ा एक पैर पर, कैसा हत्या कर दी थी, उसी ने अपने को भी धक्का दे दिया वैराग्य में। भगत, शुभ्र-वेश में, हिलता भी नहीं, लेकिन नजर मछली पर | वे मुनि हो गये। लगी है!
| दिगंबर जैनों में पांच सीढ़ियां हैं, वे एक साथ छलांग लगा तुम्हारी नजर अगर अभी आदर और सम्मान दूसरों से पाने पर गये। एक-एक कदम महावीर ने बड़े आहिस्ता बढ़ने को कहा लगी है, तो यह तो अहंकार की ही पूजा हुई, इससे धर्म का कोई है। क्योंकि महावीर कहते हैं, जीवन एक क्रम है। जैसे वृक्ष संबंध नहीं है।
धीरे-धीरे बढ़ता है, ऐसे ही धीरे-धीरे बढ़ने की जरूरत है। महावीर कहते हैं, आदरपूर्वक...। जिससे विराग उत्पन्न होता | क्योंकि धीरे-धीरे शाखायें ऊपर उठती हैं। उसी आधार से है उसका आदरपूर्वक आचरण करना चाहिए। एक-एक कृत्य धीरे-धीरे जड़ें भी नीचे गहरी जाती हैं। वृक्ष अगर एकदम ऊपर विराग का इतने सम्मान और अहोभाव से करना कि उसके करने चला जाये और जड़ें गहरी भीतर न जा पायें, तो गिरेगा, मरेगा। में ही तुम्हारे भीतर फूल बरस जायें, तुम्हारे भीतर सुगंध फैल | यह बढ़ना न हुआ, यह तो मौत हो जायेगी। पांच सीढ़ियां बनाई जाये। साधन की तरह नहीं, साध्य की तरह। वही अपने आप में हैं। एक-एक कदम बढ़ना है। मुनि होने की सीढ़ी पांचवीं सीढ़ी गंतव्य है। उससे कुछ और नहीं पाना है।
है, जब वस्त्र भी छूट जायेंगे, सब छूट जायेगा। उपवास करके स्वर्ग नहीं पाना है। उपवास स्वर्ग है-यह वह एकदम से मुनि हो गया। उसने जाकर मंदिर में वस्त्र फेंक | आदर हुआ। ध्यान करके पुण्य नहीं पाना है। ध्यान पुण्य दिये। क्रोधी आदमी था, जिद्दी आदमी था। जिन मुनि ने दीक्षा है—यह आदर हुआ। तो जो भी तुम आदरपूर्वक करोगे, वही दी, वे बड़े प्रभावित हुए। उन्होंने कहा, 'व्याख्यान देते-देते जन्म तुम्हें धर्म की दिशा में गतिमान करेगा।
हो गया मेरा, अनेक लोग मिले; मगर लोग कहते हैं, सोचेंगे। तू 'विरक्त व्यक्ति संसार-बंधन से छूट जाता है।'
एक करनेवाला है। तू बड़ा धार्मिक है।' लेकिन वह आदमी विरक्त का अर्थ है : जिसने विराग को आदर दिया। विरक्ति धार्मिक नहीं था। उनको नाम मिला : शांतिनाथ। वह आदमी ओढ़ी, ऐसा नहीं-विराग को आदर दिया। विरक्ति ओढ़नी क्रोधी था। बड़ी आसान है। तुम नग्न खड़े हो जाओ, छोड़ दो वस्त्र, एक | राजधानी उनका आगमन हुआ, तो पुराने बचपन का एक मित्र | दफा भोजन करने लगो-लेकिन अगर तुम्हारी आंखों में प्रसाद भी राजधानी आया था, तो उनसे मिलने गया। देखा कि वह
न आये, तुम्हारी वाणी में माधुर्य न आये, तुम्हारे उठने-बैठने में | महाक्रोधी, क्रोधनाथ शांतिनाथ हो गये हैं। देखें। जाकर देखा तो प्रतिपल धन्यता न बरसे-तो तुम कर लो यह सब, इससे कुछ कुछ कहीं शांति तो दिखाई न पड़ी, वही तमतमाया चेहरा था, हल न होगा, कुछ लाभ न होगा।
वही जलती हुई आंखें थीं, वही क्रोध और अहंकार था। उसने एक मुनि के संबंध में मैंने सुना है। क्रोधी थे वे, जब मुनि नहीं| परीक्षा लेनी चाही। वह पास गया। उसने कहा कि थे। महाक्रोधी थे। इतने क्रोधी थे कि अपने बेटे को क्रोध में | महाराज...! मुनि पहचान तो गये क्योंकि वे बचपन से परिचित आकर कुएं में फेंक दिया था। उसकी मौत हो गई थी। उसी से थे उससे; लेकिन जब कोई आदमी पद पर पहुंच जाता है-मुनि पश्चात्ताप हुआ। गांव में कोई मुनि ठहरे थे, वे गये। मुनि ने | पद-तो फिर पहचान कैसी! ऐरे-गैरे नत्थू-खैरों से पहचान कहा कि पश्चात्ताप अगर सच में हुआ है तो छोड़ दो संसार। कैसी! पहचान तो गये और वह आदमी भी पहचान गया कि क्रोधी आदमी थे, छोड़ दिया। लेकिन ध्यान रखना, छोड़ा भी पहचान गये हैं। आंखें सब कह देती हैं। मगर ऊपर से ऐसे ही क्रोध में। जिद्द पकड़ गई। 'अरे, तुमने कहा और हम न छोड़ें! रूप रखा कि नहीं पहचाने हैं। उसने पूछा, 'महाराज! क्या तुमने समझा क्या है?' और लोगों ने समझाया कि कभी तुमने आपका नाम पूछ सकता हूं?' उसने कहा, 'हां-हां! अखबार त्याग साधा नहीं है, कभी ध्यान किया नहीं है, एक दम से छलांग | नहीं पढ़ते? रोज तो अखबार में छपता है। कौन ऐसा है जो मुझे मत लो, आहिस्ता चलो। जिद्द पकड़ गई। हठी थे। वही हठ नहीं जानता? और तू मुझ से नाम पूछता है ? मुनि शांतिनाथ पुराना। जिस आदमी ने कुएं में धक्का दे दिया था बेटे को और मेरा नाम है।'
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