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के फूलों के खिलने में सहयोगी सिद्ध होगा।
शिष्यों ने ओरेगॅन के मध्य भाग में 64,000 एकड़ जगह खरीदी इसी वर्ष सितंबर में, मनाली (हिमालय) में आयोजित | जहां उन्होंने ओशो को रहने के लिए आमंत्रित किया। धीरे-धीरे अपने एक शिविर में ओशो ने नव-संन्यास में दीक्षा देना प्रारंभ यह जगह एक फूलते-फलते शहर में परिवर्तित होती गई। वहां
।। इसी समय के आसपास वे आचार्य रजनीश से भगवान लगभग 5000 प्रेमी मित्र मिल-जुलकर अपने सद्गुरु के श्री रजनीश के रूप में जाने जाने लगे।
सान्निध्य में आनंद और उत्सव के वातावरण में एक अनूठे नगर ____ सन 1974 में वे अपने बहुत से संन्यासियों के साथ पूना के सृजन को यथार्थ रूप दे रहे थे।
आ गये जहां 'श्री रजनीश आश्रम' की स्थापना हुई। पूना आने जैसे अचानक एक दिन ओशो मौन हो गये थे वैसे ही पर उनके प्रभाव का घेरा विश्वव्यापी होने लगा।
अचानक अक्टूबर 1984 में उन्होंने पुनः प्रवचन देना प्रारंभ कर श्री रजनीश आश्रम, पूना में प्रतिदिन अपने प्रवचनों में दिया। ओशो ने मानव-चेतना के विकास के हर पहलू को उजागर मध्य सितंबर 1985 में ओशो की सचिव के रजनीशपुरम किया। कष्ण, शिव, महावीर, बद्ध, शांडिल्य, नारद, जीसस छोड़कर चले जाने के बाद उसके अपराधों की खबरें ओशो तक के साथ ही साथ भारतीय अध्यात्म आकाश के अनेक पहुंचीं। उसके अपराधपूर्ण कृत्यों के संबंध में बताने के लिए एक संतों-आदि शंकराचार्य, कबीर, नानक, मलूकदास, रैदास, विश्व पत्रकार सम्मेलन बुलाया गया, जिसमें ओशो ने स्वयं दरियादास, मीरा आदि पर उनके हजारों प्रवचन उपलब्ध हैं। प्रशासन-अधिकारियों से अपनी सचिव को गिरफ्तार करने को जीवन का ऐसा कोई भी आयाम नहीं है जो उनके प्रवचनों से कहा। लेकिन अधिकारियों की खोजबीन का उद्देश्य कम्यून को अस्पर्शित रहा हो। योग, तंत्र, ताओ, झेन, हसीद, सूफी जैसी | नष्ट करना था, न कि सचिव के अपराधपूर्ण कृत्यों का पता अनेक साधना-पद्धतियों के गूढ़ रहस्यों पर उन्होंने सविस्तार लगाना। प्रारंभ से ही कम्यून के इस प्रयोग को नष्ट करने के लिए प्रकाश डाला है। साथ ही राजनीति, कला, विज्ञान, मनोविज्ञान, अमरीका की संघीय, राज्य और स्थानीय सरकारें हर संभव दर्शन, शिक्षा, परिवार, समाज, गरीबी, जनसंख्या-विस्फोट, | प्रयास कर रही थीं। यह उनके लिए एक अच्छा मौका था। पर्यावरण, संभावित परमाणु युद्ध का विश्व-संकट जैसे अनेक | अक्तूबर 1985 में अमरीकी सरकार ने ओशो पर विषयों पर भी उनकी क्रांतिकारी जीवनदृष्टि उपलब्ध है। आप्रवास-नियमों के उल्लंघन के 35 मनगढंत आरोप लगाए।
शिष्यों और साधकों के बीच दिए गए उनके ये प्रवचन छह बिना किसी गिरफ्तारी-वारंट के ओशो को बंदकों की नोक पर सौ पचास से भी अधिक पुस्तकों के रूप में प्रकाशित हो चुके हैं हिरासत में ले लिया गया।
और तीस से अधिक भाषाओं में अनुवादित हो चुके हैं। वे कहते 12 दिनों तक उनकी जमानत स्वीकार नहीं की गयी और हैं, “मेरा संदेश कोई सिद्धांत, कोई चिंतन नहीं है। मेरा संदेश उनके हाथ-पैर में हथकड़ी व बेड़ियां डालकर उन्हें एक जेल से | तो रूपांतरण की एक कीमिया, एक विज्ञान है।"
दूसरी जेल ले जाया जाता रहा। जगह-जगह घुमाते हुए उन्हें वे दिन में केवल दो बार बाहर आते रहे-प्रातः प्रवचन देने पोर्टलैंड (ओरेगॅन) ले जाया गया। सामान्यतः जो यात्रा पांच के लिए और संध्या समय सत्य की यात्रा पर निकले हुए साधकों घंटे की है, वह आठ दिन में पूरी की गयी। जेल में उनके शरीर को मार्गदर्शन एवं नये प्रेमियों को संन्यास-दीक्षा देने के लिए। के साथ बहुत दुर्व्यवहार किया गया और यहीं संघीय सरकार के
वर्ष 1979 में कट्टरपंथी हिंदू समुदाय के एक सदस्य द्वारा अधिकारियों ने उन्हें 'थेलियम' नामक धीमे असरवाला जहर उनकी हत्या का प्रयास भी उनके एक प्रवचन के दौरान किया दिया। गया।
| 14 नवंबर 1985 को अमरीका छोड़ कर ओशो भारत अचानक शारीरिक रूप से बीमार हो जाने से 1981 की लौट आये। यहां की तत्कालीन सरकार ने उन्हें विश्व से वसंत ऋतु में वे मौन में चले गये। चिकित्सकों के परामर्श पर अलग-थलग कर देने का पूरा प्रयास किया। उनकी देखभाल उसी वर्ष उन्हें जून में अमरीका ले जाया गया। उनके अमरीकी करनेवाले उनके गैर-भारतीय शिष्यों के वीसा रद्द कर दिये गये,
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