Book Title: Jina Sutra Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 691
________________ ओशो एक परिचय बुद्धत्व की प्रवाहमान धारा में ओशो एक नया प्रारंभ हैं, वे पश्चात भी उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी और सन 1957 में अतीत की किसी भी धार्मिक परंपरा या श्रृंखला की कड़ी नहीं हैं। सागर विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में प्रथम श्रेणी में प्रथम ओशो से एक नये युग का शुभारंभ होता है और उनके साथ ही (गोल्डमेडलिस्ट) रहकर एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। इसके समय दो सुस्पष्ट खंडों में विभाजित होता है : ओशो पूर्व तथा | पश्चात वे जबलपुर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक ओशो पश्चात। पद पर कार्य करने लगे। विद्यार्थियों के बीच वे 'आचार्य रजनीश' ओशो के आगमन से एक नये मनुष्य का, एक नये जगत के नाम से अतिशय लोकप्रिय थे। का, एक नये युग का सूत्रपात हुआ है, जिसकी आधारशिला विश्वविद्यालय के अपने नौ सालों के अध्यापन-काल के अतीत के किसी धर्म में नहीं है, किसी दार्शनिक विचार-पद्धति | दौरान वे पूरे भारत में भ्रमण भी करते रहे। प्रायः ही 60-70 में नहीं है। ओशो सद्यःस्नात धार्मिकता के प्रथम पुरुष हैं, सर्वथा हजार की संख्या में उपस्थित होनेवाले श्रोताओं में वे अनूठे संबुद्ध रहस्यदर्शी हैं। आध्यात्मिक जन-जागरण की लहर फैला रहे थे। उनकी वाणी मध्यप्रदेश के कुचवाड़ा गांव में 11 दिसंबर 1931 को | में और उनकी उपस्थिति में वह जादू था, वह सुगंध थी जो किसी जन्मे ओशो का बचपन का नाम रजनीश था। उन्होंने जीवन के पार के लोक से आती है। प्रारंभिक काल में ही एक निर्भीक स्वतंत्र आत्मा का परिचय सन 1966 में ओशो ने विश्वविद्यालय के प्राध्यापक पद दिया। खतरों से खेलना उन्हें प्रीतिकर था। 100 फीट ऊंचे पुल से त्यागपत्र दे दिया ताकि वे ध्यान की कला को और एक नये द कर बरसात में उफनती नदी को तैर कर पार करना उनके मनुष्य-ज़ोरबा दि बुद्धा-के अपने जीवनदर्शन को अधिक से लिए साधारण खेल था। युवा ओशो ने अपनी अलौकिक | अधिक लोगों तक पहुंचा सकें। 'ज़ोरबा दि बुद्धा' एक ऐसा बुद्धि तथा दृढ़ता से पंडित-पुरोहितों, मुल्ला-पादरियों, | मनुष्य है जो भौतिक जीवन का पूरा आनंद मनाना जानता है; जो संत-महात्माओं-जो स्वानुभव के बिना ही भीड़ के अगुवा बने मौन होकर ध्यान में उतरने में भी सक्षम है-ऐसा मनुष्य जो बैठे थे-की मूढ़ताओं और पाखंडों का पर्दाफाश किया। भौतिक और आध्यात्मिक, दोनों तरह से समृद्ध है। 21 मार्च 1953 को इक्कीस वर्ष की आयु में ओशो संबोधि सन 1970 में वे बंबई में रहने के लिए आ गये। अब को उपलब्ध हुए। संबोधि के संबंध में वे कहते हैं : 'अब मैं पश्चिम से सत्य के खोजी भी जो भौतिक समद्धि से ऊब चके किसी भी प्रकार की खोज में नहीं हूं। अस्तित्व ने अपने समस्त थे और जीवन के किन्हीं और गहरे रहस्यों को जानने और द्वार मेरे लिए खोल दिये हैं।' उन दिनों वे जबलपुर के एक समझने के लिए उत्सुक थे, उन तक पहुंचने लगे। ओशो ने उन्हें कालेज में दर्शनशास्त्र के विद्यार्थी थे। बुद्धत्व घटित होने के बताया कि अगला कदम ध्यान है। ध्यान ही जीवन में सार्थकता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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