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महावीर तुम्हें वहां ले जाना चाहते है, जहां न कोई विचार रह जाता, न कोई भाव रह जाता, न कोई चाह रह जाती, न कोई परमात्मा रह जाता-जही बस तुम एकांत, अकेले, अपनी परिपूर्ण शुद्धता में बच रहते हो। निर्धूम जलती है तुम्हारी चेतना!
महावीर ने जैसी महिमा का गुणगान आत्मा का किया है, किसी ने भी नहीं किया। महावीर ने सारे परमात्मा को आत्मा में उंडेल दिया है। महावीर ने मनुष्य को जैसी महिमा दी है, और किसी ने भी नहीं दी। महावीर ने मनुष्य को सर्वोत्तम, सबसे ऊपर रखा है।
और यह जो दुर्लभ क्षण तुम्हें मिला है। मनुष्य होने का इसे ऐसे ही मत गंवा देना। इसे ऐसे भूले-भूले ही मत गंवा देना। इसे दूसरों के द्वार खटखटाते-खटखटाते ही मत गंवा देना। बहुत मुश्किल से मिलता है यह क्षण और बहुत जल्दी खो जाता है। बड़ा दुर्लभ है यह फूल; सुबह खिलता है, सांझ मुरझा जाता है। फिर हो सकता है सदियों-सदियों तक प्रतीक्षा करनी पड़े।
इसलिए मनुष्य होना महिमा ही नहीं है, बड़ा उत्तरदायित्व है। अस्तित्व ने तुम्हारे भीतर से कोई बहुत बड़ा कृत्य पूरा करना चाहा है। साथ दो! सहयोग दो! अस्तित्व ने तुम्हारे भीतर से कोई बहत बड़ी घटना को घटाने का आयोजन किया है। साथ दो! सहयोग दो! और जब तक तुम खिल न पाओगे, नियति तुम्हारी पूरी न होगी।
ओशो
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