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हला सूत्र : 'सच्चाम्मि वसदि तवो' – सत्य में तप का वास है । 'सच्चामि संजमो तह वसे तेसा वि गुणा ।' 'सत्य में संयम और समस्त शेष गुणों का भी वास है । जैसे समुद्र मछलियों का आश्रय है, वैसे ही समस्त गुणों का सत्य आश्रय है।'
सत्य का अर्थ समझ लेना अत्यंत अनिवार्य है। साधारणतः हम सोचते हैं, सत्य कोई वस्तु है, जिसे खोजना है; जैसे सत्य कहीं रखा है, तैयार है; किसी दूर के मंदिर में सुरक्षित है प्रतिमा की भांति - हमें यात्रा करनी है, मंदिर के द्वार खोलने हैं, और सत्य को उपलब्ध कर लेना है। ऐसा सोचा तो भूल हो गई शुरू से ही ।
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सत्य कोई वस्तु नहीं है। सत्य तो एक प्रतीति है, अनुभूति है कहीं तैयार रखा नहीं है। जीयोगे तो तैयार होगा। कहीं मौजूद नहीं है कि उघाड़ लेना है। ऐसा नहीं है कि चाबी मिल जायेगी, ताला खोल लोगे, तिजोड़ी तक पहुंच जाओगे — और धन तो तिजोड़ी में रखा ही था; जब चाभी न मिली थी तब भी रखा था; जब ताला न खोला था तब भी रखा था; न खोलते सदा के लिए तो भी रखा रहता - ऐसा नहीं है। सत्य तो जीवंत अनुभूति है। संज्ञा नहीं, क्रिया है ।
सत्य का अर्थ हैः ऐसे जीना, जिस जीवन में कोई वंचना न हो; ऐसे जीना कि बाहर और भीतर का तालमेल हो । सत्य एक संगीत है— बाहर और भीतर का तालमेल है। तो कदम-कदम सम्हालना होगा, क्योंकि सत्य आचरण है।
गुणों का वास है ।' क्योंकि सत्य आचरण है।
जिसने सत्य को साध लिया, सब सध जायेगा। फिर अलग से कुछ साधने को बचता नहीं। क्योंकि जिसने बाहर और भीतर का एक ही जीवन शुरू कर दिया, उसके जीवन में हिंसा नहीं हो सकती; उसके जीवन में झूठ नहीं हो सकता; उसके जीवन में क्रोध नहीं हो सकता; उसके जीवन में प्रतिस्पर्धा नहीं हो सकती। असंभव है। सत्य आया तो जैसे प्रकाश आया; अब अंधेरा नहीं हो सकता।
लेकिन सत्य न तो कोई वस्तु है— वस्तु होती तो उधार भी जाती । सत्य उधार नहीं मिलता। मेरे पास हो तो भी तुम्हें देने का कोई उपाय नहीं। सत्य कोई सिद्धांत भी नहीं है; नहीं तो एक बार कोई खोज लेता, सबके लिए, सदा के लिए मिल जाता । सत्य कोई तर्क की निष्पत्ति भी नहीं है, कि केवल विचार करने से मिल जायेगा, कि ठीक से सोचा तो मिल जायेगा। नहीं, जो ठीक से जीएगा, उसे मिलेगा। सोचना काफी नहीं है— जीना पड़ेगा।
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दो ढंग से जीने के उपाय हैं। एक, जिसे हम असत्य का जीवन कहें। तुम कुछ हो, कुछ होना चाहते हो - बस असत्य शुरू हो गया। तुम कुछ हो, कुछ और दिखाना चाहते हो -असत्य हो गया। तुम कुछ हो, और तुमने कुछ मुखौटे ओढ़ लिए; होना तो कुछ था, प्रदर्शन कुछ और हो गया -असत्य हो गया ।
इसे समझोगे तो पाओगे कि तुम्हारे तथाकथित धर्मों ने तुम्हें सत्य की तरफ ले जाने में सहायता नहीं दी बाधा डाल दी। क्योंकि उन सबने तुम्हें पाखंड सिखाया। उन सबने कहा, कुछ
इसलिए महावीर कहते हैं : 'सत्य में तप है, संयम है, समस्त हो जाओ ।
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