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Luitel
जिन सत्र
कब्जा कर रहे हो। आदत अगर गलत है तो निवेदन कर दो। चाहता है। क्योंकि जब तक गुलाम बनाने की चाह है तब तक आदत अगर गलत है तो जतला दो। लेकिन इसके बहाने | गुलामी आती रहेगी। मालकियत मत करो। इतना ही कहो कि मुझे गलत दिखाई पड़ती। ठीक तम जैसे ही लोग हैं सब तरफ। जो तम चाहते हो. वही वे है आदत, फिर तुम्हारी मर्जी! फिर तुम अपने मालिक हो! फिर भी चाहते हैं। जो तुम नहीं चाहते, वही वे भी नहीं चाहते। इस अगर तुमने गलत को भी चुना, तो चुनो!
सत्य को ठीक से समझना। कल रात मैं एक आधुनिक विचारक, 'साज़' की एक किताब जीसस से कोई पूछता है, एक युवक निकोदेमस, कि मैं जल्दी पढ़ रहा था। उसमें कुछ परिभाषाएं दी हैं। उसमें जवान, प्रौढ़ में हूं, मुझे कुछ छोटा-सा सूत्र दे दें जो मेरा जीवन बदल दे। तो आदमी की परिभाषा भी है। उसने लिखा है : प्रौढ़ वह आदमी जीसस ने कहा, दूसरे के साथ वह मत करना, जो तुम चाहते हो, है, जिसे ठीक करने की तो आजादी है ही, गलत करने की भी दूसरा तुम्हारे साथ न करे। उन्होंने कहा, इतना काफी है। इतने से आजादी है। अगर गलत करने की आजादी न हो तो आजादी सारा धर्म निकल आता है। दूसरे के साथ वह मत करना, जो तुम क्या हुई? अगर ठीक ही करने की स्वतंत्रता हो तो यह तो नहीं चाहते कि दूसरा तुम्हारे साथ करे। बस काफी है। स्वतंत्रता शब्द का बड़ा दुरुपयोग हुआ।
| यह एक वचन ही बाइबिल की पूरी कथा है, पूरा सार है। प्रेम स्वतंत्र करता है। निश्चित, सावधान करता है, कि महावीर का भी पूरा सार यही है। वे समझा रहे हैं कि तुम्हें यह यहां-यहां मैं गया हूं और मैंने गड्ढे पाए, तुम सोच-समझ कर | बात खयाल में आ जाये कि दूसरा 'दूसरा' नहीं है तुम्हारे जाना, सम्हलकर जाना। अगर जाने का मन हो तो मेरा अनुभव जैसा ही चैतन्य, तुम्हारी जैसी ही आत्मा, ठीक तुम्हारे ही जैसे ले लो, मेरे अनुभव के बाद जाना। जाने से नहीं रोकता हूं; सुख और दुख का आकांक्षी, ठीक तुम जैसा ही मोक्ष का खोजी, लेकिन मैं गिर गया था, उसकी खबर तुम्हें दे देता हूं। हो सकता स्वतंत्रता का दीवाना है। है, तुम न भी गिरो। हो सकता है, तुम सम्हलकर जाओ और इतना खयाल रखना। इतना खयाल रखकर अगर चले तो न बचकर निकल आओ। लेकिन मैं जल गया था। तो इतना तुम्हें तो तुम किसी को बांधोगे और न तुम बंधोगे। कह देता हूं कि वहां जलन है, फिर तुम सोचकर जाना। न बांधनेवाला भी बंध जाता है। कारागृह का मालिक भी जाओ, तुम्हारी मर्जी! जाओ तुम्हारी मर्जी!
कारागृह को छोड़कर थोड़े ही जा सकता है। कैदी भीतर होंगे, अपना सत्य निवेदन कर देना पर्याप्त है। लेकिन गर्दन पर हम मालिक बाहर होगा-लेकिन बाहर जो है वह भी खड़ा रहता है हावी हो जाते हैं। हम आदर्शों का उपयोग भी कारागृहों की तरह कि कैदी भाग न जायें। उसे भी कैदियों कि साथ कैदी ही हो जाना करते हैं, जंजीरों की तरह करते हैं।
| पड़ता है। महावीर कहते हैं:
"जिनों ने, जाग्रत पुरुषों ने कहा है, राग आदि की अनुत्पत्ति "जिसे तू हनन योग्य मानता है, वह तू ही है। और जिसे तू अहिंसा, और उसकी उत्पत्ति हिंसा है।' आज्ञा में रखने योग्य मानता है वह भी त ही है।'
| 'जागे हए पुरुषों ने कहा है, राग आदि की उत्पत्ति हिंसा और एक बडी महत्वपर्ण बात इस सत्र से निकलती है। अगर तमने अनत्पत्ति अहिंसा है।' किसी को गुलाम बनाने की चेष्टा की तो वही व्यक्ति तुम्हें भी यह अहिंसा का बड़ा सूक्ष्मतम विश्लेषण है। दूसरे को चोट गुलाम बनाने की चेष्टा करेगा। क्योंकि जिसे तुम आज्ञा में रखना करने जाओ, यह तो दूर की बात है। यह तो फिर विचार का चाहते हो, वह तुम ही हो। भूल के किसी को गुलाम मत बनाना, स्थूल होने की बात है। तुम्हारे मन में राग उठा तभी हिंसा उठ अन्यथा तुम गुलाम बन जाओगे। और अगर तुम गुलाम बन गए। जाती है। फिर तुम करो या न करो, यह सवाल नहीं है। तुम्हारे हो तो खोजबीन करना; तुम पाओगे कि गुलाम बनाने की मन में जरा-सा राग उठा...तुम राह से जाते थे, एक बड़ा मकान आकांक्षा का ही यह परिणाम है। परिपूर्ण स्वस्थ आदमी वही है, | देखा, तुम्हारे मन में हुआ: ‘ऐसा मकान मैं भी बनाऊं!' हिंसा जो न तो किसी का गुलाम है और न किसी को गुलाम बनाना हो गई। हिंसा का बीज पड़ गया; क्योंकि अब इस बड़े मकान
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