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नहीं-अहाभाव, अहोगीत
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गणेशाय नमः' 'लाभ-शुभ।' ईश्वर का स्मरण करके किताब अब मतलब समझे? वे शांति चाहते हैं ताकि ठीक से अशांत बाजार की शुरू करता है। ईश्वर का स्मरण-उस किताब में हो सकें। और अशांति को छोड़ने की तैयारी नहीं है। शांति की सहयोगी होने को! वह यह कह रहा है, 'बाधा मत डालना। हम मांग भी अशांति को ही चलाये रखने के लिए है। तो तुम्हारे भक्त हैं।'
तो मैंने उनसे कहा कि फिर कहीं और जाओ, क्योंकि असंभव जैसा मैं देखता हूं, सैकड़ों लोग चाहते हैं ध्यान! लेकिन ध्यान मैं न कर सकूँगा। शांत तुम्हें कोई भी नहीं कर सकता, जब तक जिन शर्तों से घट सकता है, वह शर्ते पूरी करने को राजी नहीं। तुम न समझ लो कि अशांत करने के उपाय बंद करने होंगे। कोई शर्त पूरी करने को राजी नहीं। सिर्फ बेशर्त, मुफ्त! और मैं जहां-जहां से अशांति आती है, वहां-वहां से हाथ खींच लेना तुमसे कहता हूं कि अगर यह संभव होता कि ध्यान मुफ्त दिया होगा। शांति के लिए कुछ भी नहीं करना पड़ता—सिर्फ अशांति जा सकता—चूंकि संभव नहीं है, इसलिए तुम मजे से मांगते से हाथ खींच लेते ही शांति निर्मित हो जाती है। शांति तो अशांति रहते हो। कोई खतरा नहीं है—अगर यह संभव होता कि ध्यान का अभाव है। शांति के लिए सीधा कुछ भी नहीं करना है। मैं तुम्हें उठाकर दे देता, तो मैं जानता हूं तुम मांगते भी नहीं। तुम तुमने अंधेरे में अपनी बड़ी आकांक्षाएं जोड़ रखी हैं, उनको हटा भागते। तुम कहते, 'अभी नहीं! अभी बच्चे बड़े हो रहे हैं। लो! दीया तो जल जायेगा। दीया तो जलने को तत्पर है, अभी थोड़ा और जीवन को सम्हाल लेने दो। अभी ध्यान! अभी प्रतिपल तत्पर है, क्योंकि दीया जलने के लिए है। दीया तो जलने नहीं!' क्योंकि ध्यान कहीं सब अस्त-व्यस्त न कर दे! और की संभावना लेकर आया है और रो रहा है। तुम्हारे दीये से ध्यान महाक्रांति है, अस्त-व्यस्त तो करेगा।
| टपकते आंसू मैं देखता हूं कि कब जलाओगे, क्या मुझे ऐसे ही तुम जैसे हो, तुमने उसी ढंग की दुनिया अपने चारों तरफ बना बुझा-बुझा ही विदा कर दोगे? क्योंकि ऐसे ही बहुत जन्मों में ली है। तुम्हारे चारों तरफ तुम्हारी दुनिया है। तुम बदलोगे, तुमने उसे विदा कर दिया। जन्म मिला, लेकिन जीवन न मिला। तुम्हारी दुनिया गिर जायेगी। क्योंकि वह आदमी ही बीच से हट जन्म के साथ ही जीवन थोड़े ही मिलता है! जन्म तो केवल गया जिसकी दुनिया थी। वह केंद्र गिर गया जिसके सहारे चाक संभावना है। जीवन अर्जित करना होता है। जरूरी नहीं है कि घूमता था। एक नयी दुनिया निर्मित होगी।
तुम जन्म गये तो तुमने जीवन पा लिया हो। जन्म के साथ तो तो अगर तुम धन की दौड़ में लगे हो तो तुम ध्यान न कर बुझा दीया मिलता है। फिर उसे जलाना पड़ता है। सकोगे।
गहन संघर्ष से जीवन की ज्योति प्रगट होती है। जैसे दो एक बड़े राजनीतिज्ञ मेरे पास आते थे। वह मुझसे कहते, कुछ लकड़ियों के घर्षण से आग पैदा हो जाती है, दो पत्थरों के घर्षण शांति का उपाय बताइए। मैंने कहा, अशांति तुम करते हो, शांति से आग पैदा हो जाती है-ऐसे तुम जब जीवन की सारी का उपाय मुझसे पूछते हो? छोड़ो महत्वाकांक्षा! महत्वाकांक्षा चुनौतियों से संघर्ष लेते हो, तब तुम्हारे भीतर का दीया जलता से तो अशांति पैदा होगी। जहां भी रहोगे, पीड़ित और परेशान है। और कोई उपाय नहीं है। उधार जल नहीं सकता। रहोगे। जहां भी रहोगे, असंतुष्ट रहोगे। शांति कैसे होगी? यह कविता किसी और की है। और जरूरी नहीं कि जिसने
उन्होंने कहा कि आप वह मत कहिये, मैं तो आपके पास | गायी हो उसका भी दीया जला हो। क्योंकि अकसर तो ऐसा इसीलिए आया कि थोड़ी शांति हो तो थोड़ा ढंग से प्रतिस्पर्धा कर होता है, लोग कविताएं गाकर सोच लेते हैं कि जल गया दीया। सकू। अशांति के कारण प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहा हूं। रात नींद जिनके जीवन में प्रेम नहीं है, वे प्रेम के गीत गाकर सांत्वना कर नहीं आती। बेचैनी रहती है। तो मुझसे पीछे आनेवाले लोग लेते हैं। मुख्यमंत्री हो गये और मैं मंत्री-पद पर ही अटका हूं। जितनी मैं बहुत कवियों को जानता हूं। तुम्हारी और उनकी परेशानी में दौड़-धूप वे लोग कर लेते हैं, मैं नहीं कर पाता। इसीलिए तो | मैंने जरा भी भेद नहीं पाया। शायद तुमसे बदतर उनकी परेशानी आपके चरणों में आया हूं कि थोड़ी शांति दो, ताकि दौड़-धूप है। फर्क है तो इतना कि वे सपने सजाने में कुशल हैं। तुम इतने ठीक से कर सकूँ।
कशल नहीं हो सपनों को रंग देने में। वे इतने कशल हैं कि बझे
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