________________
POSE
- S S Hoyi
जिन सूत्र भाग : 1
PRENE
अनुभव तत्क्षण खो गया। लेकिन उस क्षण में मुझे इतने जोर की -और आत्मा के शुद्ध आहार से जब भीतर का सत्व शुद्ध भूख लगी, जैसी मुझे कभी लगी न थी।
होता है तो स्मृति ध्रुव हो जाती है। शरीर आत्मा से अलग होता हुआ मालमू पड़े, एक खालीपन | स्मृतिलाभे सर्वग्रंथीनां विप्रमोक्षः। मालूम होगा। और भरने का हम एक ही उपाय जानते हैं-पेट -और स्मृति से, स्मृति के लाभ से सारी ग्रंथियां खल जाती को भर लो; और हमें कोई उपाय नहीं मालूम। अगर इस क्षण में हैं—जिसको महावीर कहते हैं निग्रंथ दशा-सब गांठें खुल यह युवक अपने को प्रेम से भर लेता या आनंद से भर लेता तो जाती हैं। और जो शेष रह जाता है-वही मोक्ष, वही समाधान, यह अनुभव और ऊंचे शिखर पर पहुंच जाता। इसने शरीर से समाधि, विप्रमोक्ष ! फिर कुछ और करने को शेष नहीं रह जाता। भर लिया। इसने इस क्षण में शरीर का सेवन कर लिया। भोजन 'जो आत्मा इन तीनों से समाहित हो जाता है और अन्य कुछ मतलब शरीर। भोजन-जो शरीर बन जायेगा; अभी भोजन नहीं करता है, और न कुछ छोड़ता है उसी को निश्चय-नय से है, कल शरीर बन जायेगा। भोजन यानी बीज रूप से शरीर। मोक्ष-मार्ग कहा है।' इसने शरीर से भर लिया। यह क्षण था जब इसे आत्मा से भरना णिच्छयणयेण भणिदो, तिहि तेहिं समाहिदो ह जो अप्पा। था। नाच उठता! गीत गाता! आंदोलित हो उठता आनंद से! ण कुणदि किंचि वि अन्नं, ण मुयदि सो मोक्खमग्गो ति।। प्रेम को जगाता ! आत्मा से भरता! आत्मा का सेवन करता! तो बड़ी अदभुत बात महावीर कह रहे हैं! जो आत्मा इन तीनों से यह घड़ी बड़ी गहरी हो जाती। यह अनुभव चिरस्थायी हो समाहित हो जाता है—सम्यक ज्ञान, दर्शन, चारित्र्य से जाता। चूक हो गयी।
समाहित! समाहित का अर्थ है, जिसके लिए ये ऊपर से थोपे महावीर कहते हैं, 'आत्मा से ही आत्मा का सेवन उचित है।' गये नियम नहीं.-जो इन्हें पचा गया; जो इसको इस भांति पी
आत्मा से आत्मा का भोजन, आत्मा से आत्मा का भोग ही गया, इस भांति कि मांस-मज्जा बन गयी, समाहित हो गया! उचित है।
अब ऐसा नहीं कि वह चेष्टा करता है चारित्र्य की, कि मैं ठीक आहार शुद्धौ सत्व शुद्धिः।
करूं और गैर-ठीक न करूं। ऐसा भी नहीं कि वह चेष्टा करता -आहार के शुद्ध होने से सत्व शुद्ध हो जाता है।
है ज्ञान को पकड़ने की, दर्शन को पकड़ने की। नहीं, ये सब यह आहार की शुद्धि को तुम ब्राह्मण के द्वारा बनाया गया समाहित हो गए। आहार मत समझना। इसे तो तुम समझना ब्रह्म के द्वारा बनाया तुमने भोजन किया...तो भोजन की दो घटनाएं घट सकती हैं। गया आहार—वह जो तुम्हारे भीतर की अंतत्मिा है, जिस पर तुमने भोजन किया-या तो भोजन समाहित हो जायेगा और या ब्रह्म के हस्ताक्षर हैं।
अपच हो जायेगी। अपच होगी तो भोजन बिना पचा शरीर के सत्व शुद्धौ ध्रुवा स्मृतिः।
बाहर फेंक देना होगा। वमन से निकले, मल-मूत्र से -और जिसने उस आत्मा का आहार कर लिया उसकी स्मृति निकले लेकिन अगर अपच हुआ तो उसे शरीर से बाहर फेंक ध्रुव हो जाती है। उसका बोध थिर हो जाता है। यही तो मैंने उस देना होगा वैसा का वैसा। उसमें जो छिपा हुआ सत्व है, तुम्हारा संन्यासी को कहा कि उस क्षण में आत्मा का आहार कर लिया हिस्सा न बन पाएगा। समाहित का अर्थ है : पच जाये। तो जो होता, तो स्मृति ध्रुव हो जाती।
कूड़ा-कचरा है वह बाहर निकल जायेगा; जो सार-सार है वह स्मृति का अर्थ यहां याददाश्त नहीं है। यहां स्मृति का अर्थ है तुम्हारे खून में, लहू में बहने लगेगा। वह तुम्हारे हृदय में परमात्मा का स्मरण, या आत्मा का स्मरण।
धड़केगा, तुम्हारी आंखों से देखेगा, तुम्हारे मस्तिष्क से सोचेगा। जिसको महावीर सम्यक दर्शन कह रहे हैं; वह थिर हो जाता वह तुम्हारे भीतर का हिस्सा हो जायेगा। है, उसकी लकीर खिंच जाती अमिट। फिर भूले न भूलती। फिर | एक बार जो अन्न पच गया, फिर तुम्हें उसकी चिंता नहीं करनी मिटाये न मिटती।
होती कि अब वह क्या कर रहा है; खून ठीक चल रहा है कि सत्व शुद्धौ ध्रुवा स्मृतिः।
नहीं; मस्तिष्क सोच रहा है या नहीं; हड्डी, मांस-मज्जा बन रही
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org