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प्रेम है आत्यंतिक मुक्ति
की एक खूबी है। तुम उसे ठीक से सुन लो, फिर तुम उससे मेरे बिना खाली-खाली लगता है। वह भी नाराजगी का कारण बचकर भाग न सकोगे। उससे बचने का एक ही उपाय है कि तुम | है। वे मुझे न सुनें ज्यादा दिन तक तो बेचैनी होती है। तो जिस ठीक से सुनो ही न; सुनते वक्त ही तुम गड़बड़ कर दो तो ठीक आदमी पर हमें निर्भर हो जाना पड़ता है, उस पर नाराजगी होने है। अगर सुन लिया तो फिर असत्य उसके सामने टिक न लगती है कि यह तो बात बुरी हुई। यह तो एक तरह की परतंत्रता सकेगा। अगर तुम्हारी धारणा ठीक होगी तो बचेगी; अगर ठीक हो गयी। अगर वह दो-चार महीने मेरे पास न आएं तो मन न होगी तो गिर जायेगी। दोनों हालत में शुभ है।
बड़ा-बड़ा वीरान हो जाता है; दौड़ होने लगती है आने की; फिर मेरी बातें सुन-सुनकर तुम्हारे जीवन में रूपांतरण होंगे। वे हजार काम छोड़कर आने का मन होने लगता है। यह नशा ऐसा रूपांतरण समाज को स्वीकृत होंगे, ऐसा नहीं है। समाज को है। इसकी तलफ भी होगी। तो जैसी नाराजगी आनी शुरू होगी धार्मिक व्यक्ति कभी स्वीकृत नहीं रहा, क्योंकि समाज अभी तक कि यह क्या मामला हुआ, यह तो हम जैसे किसी के वश में हो धार्मिक नहीं है। समाज को सांप्रदायिक व्यक्ति स्वीकृत हैं, गए, जैसे कोई हमें खींचने लगा, कोई धागे बंध गए, जैसे प्रेम ने क्योंकि समाज सांप्रदायिक है। हिंदू स्वीकृत है, मुसलमान कुछ जंजीरें बना लीं! तो भी नाराजगी आती है। स्वीकृत है, ईसाई स्वीकृत है; धार्मिक व्यक्ति किसी को स्वीकृत तेरे बगैर किसी चीज की कमी तो नहीं नहीं है। मैं न तुम्हें हिंदू बना रहा, न ईसाई, न जैन, न बौद्ध। मेरी तेरे बगैर तबियत उदास रहती है।
चेष्टा अनूठी है। मैं तुम्हें सिर्फ धार्मिक बनाना चाहता हूं: सब हो तुम्हारे पास लेकिन अगर तुमने अपने हृदय में मुझे विशेषण-शून्य।
| थोड़ी-सी जगह दी तो मेरे बिना थोड़ी तबियत उदास रहने तो तुम जब लौटकर जाओगे, अगर मेरी बात तुम्हारे मन में लगेगी। तो जो तुम्हें उदास कर रहा है, उससे तुम नाराज न गूंज गई, तुम्हारे हृदय को छू गई, तुम्हारे प्राणों का तार बज गया, होओगे तो क्या करोगे? यद्यपि यह उदासी संक्रमण काल की तो तुम कुछ अन्यथा होने लगोगे। रूपांतरण शुरू होगा। तुम है। जल्दी ही यह उदासी भी चली जाएगी। और जल्दी ही ऐसी जहां हो, वहां अड़चन आएगी। तुम मुझ पर क्रोधित भी | घड़ी भी आ जायेगी कि यहां भाग-भागकर आने की जरूरत न होओगे।
रहेगी। तुम जहां होओगे वहीं मैं चला आऊंगा। वह घड़ी आने मुझको तो होश नहीं तुझको खबर हो शायद
के पहले यह उदासी की घड़ी गुजरेगी। लोग कहते हैं कि तुमने मुझे बर्बाद किया।
वीरां है मयकदा खुम-ओ-सागर उदास हैं तो तुम मुझ पर नाराज होओगे। कहोगे कि इस आदमी न तुम क्या गए कि रूठ गये दिन बहार के। बर्बाद किया। भले-चंगे थे। अपना काम-धाम करते थे। यह तो अगर मेरे साथ तुमने अपनी बहार का संबंध जोड़ा-जो सब गड़बड़ हो गया। ये गेरुए वस्त्र, यह माला-लोग कहते कि जुड़ ही जाएगा; अगर तुम्हारा नाच मेरे साथ पैदा हुआ, तो हैं, पागल हो गये! लोग कहते हैं, सम्मोहित हो गये! अड़चन संबंध जुड़ ही जायेगा; अगर तुम यहां आकर खुश हुए, प्रसन होगी दफ्तर में, दुकान में। मैं जानकर ही अड़चन खड़ी कर रहा हुए, आनंदित हुए, उत्साह जगा, उत्सव हुआ तो घर लौटकर हूं; क्योंकि उसी अड़चन के माध्यम से तुम बदलोगे, अन्यथा । | तुम उदास हो जाओगे। तो मन यहां की तरफ भागा-भागा तुम बदल न सकोगे।
रहेगा। करोगे कछ, याद यहां की बनी रहेगी। पत्नी, बच्चे पराए सुविधा से कोई बदलता नहीं--चुनौती से बदलता है। चुनौती । मालूम होने लगेंगे। अपना ही घर धर्मशाला मालूम होने कष्टपूर्ण होती है। प्रथम चरण में बड़ी पीड़ा होती है। लेकिन लगेगा। तो नाराजगी बिलकुल स्वाभाविक है। लेकिन यह पीड़ा के बाद ही नया जन्म है।
| संक्रमण की बात है। थोड़े और गहरे उतरोगे तो धीरे-धीरे तुम्हें तो तुम्हारी नाराजगी, तुम्हारा क्रोध एकदम अकारण है, ऐसा पहली दफा पत्नी-बच्चे अपने मालूम होंगे। भी नहीं है। फिर जो मेरे प्रेम में पड़ गए हैं, काफी गहरे, जिनको मैं तुम्हें तोड़ने को नहीं हूं, किसी से भी तोड़ने को नहीं हूं। वही समाज की भी चिंता नहीं है अब, उनको भी अड़चन है। उनको मेरी निष्ठा है। तुम्हें मैं किसी से भी तोड़ने की चेष्टा नहीं कर रहा
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