Book Title: Jina Sutra Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 677
________________ जैसा पुल उसने सपने में देखा था वैसा ही पुल राजधानी का है। तब तो उत्साह बढ़ा। तेजी से चलने लगा। दूसरी तरफ पहुंचा। ठीक बिजली का खंभा वहीं है जहां सपने में देखा था। ठीक वैसा ही बिजली का बल्ब लगा है-तब तो भरोसा और बढ़ा। लेकिन एक मुसीबत थी। सपने में उसने यह न देखा था कि एक पुलिसवाला वहां पहरा देता है। तो वह राह देखने लगा कि पुलिसवाला जाये तो मैं खोदकर देखूं । लेकिन पुलिसवाला तभी जाता जब दूसरा आ जाता, ड्यूटी बदलती। वह दो-तीन दिन ऐसे चक्कर मारता रहा। पुलिसवाले ने भी बार-बार इस आदमी | को वहां चक्कर मारते देखा। उसे बुलाया पास और कहा कि सुनो, क्या मामला है? आत्महत्या करनी है पुल से कूदकर ? क्योंकि इसीलिये वहां वह खड़ा रहता था कि कोई आत्महत्या न कर ले। मामला क्या है ? खजाना था ! हसीद फकीर इस कहानी में बड़ा रस लेते हैं। क्योंकि यह कहानी जीवन की कहानी है। तुम सोच रहे हो, कहीं और खजाना गड़ा है, किसी राजधानी में, किसी पुल के पास। वहां जो खड़ा है वह सोच रहा है कि तुम्हारे घर खजाना गड़ा है। तुमने कभी देखा ! कभी- कभी राह से चलते भिखमंगे को देखकर भी धनपति के मन में भी ईर्ष्या आ जाती है। कभी-कभी सम्राटों के मन में ईर्ष्या आ जाती है। क्योंकि जिस मस्ती से भिखारी चल सकते हैं उस मस्ती से सम्राट तो नहीं चल सकते। बोझ भारी है, चिंता बहुत है। रात सो भी नहीं सकते। कौन सम्राट सो सकता है भिखारी की तरह ! राह के किनारे की तो बात दूर, सुंदरतम सुविधा से सुविधापूर्ण कक्षों में भी, आरामदायक बिस्तरों पर भी नींद नहीं आती। चिंताएं इतनी हैं, मन ऊहापोह में लगा रहता है। और भिखारी राह के किनारे, अखबार को बिछाकर ही सो जाता है और घुर्राटे लेने लगता है। कभी-कभी सम्राटों के मन में भी ईर्ष्या उठती है कि ऐसा स्वास्थ्य, ऐसी निश्चितता, ऐसी शांति, ऐसे विश्राम की दशा काश, हमारी भी होती! भिखमंगा भी रोज महल के पास से निकलता है, सोचता है, काश, हमारे पास ऐसा महल होता ! उस यहूदी धर्मगुरु ने कहा, अब आपसे छिपाना क्या है; एक सपने के चक्कर में पड़ गया हूं। वह पुलिसवाला हंसा और उसने कहा, ठहरो! इसके पहले कि तुम अपना सपना कहो, मैं भी तुम्हें कह दूं। तीन दिन से मैं भी एक सपना देख रहा हूं। मैं एक सपना देख रहा हूं कि फलां-फलां गांव में...। जो उसने नाम लिया तो वह धर्मगुरु बड़ा हैरान हुआ, वह तो उसी के गांव का नाम है ! फलां-फलां गांव में फलां-फलां नाम का एक धर्मगुरु है । आकांक्षा का अर्थ है: तुम जहां हो वहां राजी नहीं। जो जहां है वहां राजी नहीं। कहीं और दिखाई पड़ता है जीवन का स्वप्न पूरा उसने कहा, अरे ठहरो! यह मेरा नाम है और मेरे गांव का तुम होता। वहां जो है, उसका भी जीवन का स्वप्न पूरा नहीं हो रहा पता ले रहे हो ! मैं ही हूं वह धर्मगुरु । | है। यहां भिखमंगे तो पराजित हैं ही, यहां सिकंदर भी पराजित हैं। यहां भिखमंगे तो खाली हाथ हैं ही, यहां सिकंदर भी खाली हाथ हैं। जिस दिन तुम्हें आकांक्षा की यह व्यर्थता दिखाई पड़ जाती है, उसी दिन निष्कांक्षा पैदा होती है, निष्काम भाव पैदा होता है। वह पुलिसवाला बहुत हंसा। उसने कहा कि मैं तीन दिन से एक सपना देखता हूं कि जहां धर्मगुरु सोता है उसके बिस्तर के नीचे एक खजाना गड़ा है। मैं तो एक दिन तो सोचा सपना है, दूसरे दिन कैसे सोचूं कि सपना है ! हीरे-जवाहरात सब साफ दिखाई पड़ते हैं। और आज तीसरी रात फिर सपना देखा है। और तुमसे इसलिए कह रहा हूं कि तुम्हारा चेहरा उस सपने में मुझे दिखाई पड़ता है। यह माजरा क्या है? तुम तीन दिन से यहां चक्कर भी लगा रहे हो। सम्यक दर्शन के आठ अंग Jain Education International सत्य के जगत में तुम आकांक्षा से नहीं जा सकोगे। क्योंकि सभी आकांक्षा संसार में लौटा लाती है। तो महावीर कहते हैं, अगर तुम स्वर्ग की आकांक्षा से सत्य की खोज करो, चूक जाओगे। क्योंकि स्वर्ग की खोज फिर संसार की ही खोज है। परिमार्जित, सुधरे हुए संस्कार – संसार का ही संस्करण है वह । यहीं जो सुख नहीं मिल पाये हैं, उनका ही बढ़ा-चढ़ा रूप है, फैला विस्तार है। जो शराब यहां नहीं पी, वहां बहिश्त में उसके उस धर्मगुरु ने कहा कि अब कुछ माजरा नहीं है। मैं कुछ और ही सपना देखा हूं। लेकिन अब मैं कुछ कहूंगा नहीं, अब मैं जाता हूं गांव अपने वापस । वह भागा आया। उसने अपनी खाट के नीचे खोदा, पाया, झरने बहाये हैं-वह तुम्हारी ही कल्पना है। जो स्त्रियां यहां For Private & Personal Use Only 667 www.jainelibrary.org

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