Book Title: Jina Sutra Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 685
________________ सातवां : वात्सल्य । इसे समझना । भक्ति के संप्रदाय, प्रार्थना को मूल्य देते हैं। तो तीन शब्द समझ लेना, तो ही वात्सल्य समझ में आयेगा: प्रार्थना, प्रेम, वात्सल्य। प्रार्थना होती है, जो अपने से बड़ा है— परमात्मा, उसके प्रति । प्रार्थना में एक मांग होती है। प्रार्थना शब्द में ही मां छिपी है। इसलिए मांगनेवाले को हम प्रार्थी कहते हैं। मांगा उससे जा सकता है जिसके पास हमसे ज्यादा हो, अनंत हो। तो प्रार्थना सिर्फ भगवान से की जा सकती है। लेकिन महावीर की व्यवस्था में भगवान की कोई जगह नहीं है- प्रार्थना की कोई जगह नहीं । प्रेम में हम लेते हैं, देते हैं, क्योंकि दोनों समान हैं। जिसको तुम प्रेम करते हो, तुम देते भी हो; लेकिन देते तुम इसीलिए हो कि मिले। जो तुम्हें प्रेम करता है, वह भी देता है; लेकिन देता इसीलिए है कि मिले, वापिस हो। तो प्रेम में लेन-देन है। परमात्मा की तरफ से इकतरफा है; सिर्फ मिलता है; देने को हमारे पास कुछ भी नहीं है। प्रेमी लेते-देते हैं। वात्सल्य ठीक प्रार्थना का उलटा है। वात्सल्य का अर्थ है : तुम दो। इसलिए हम कहते हैं, मां का वात्सल्य होता है बेटे की तरफ | बेटा क्या दे सकता है? छोटा-सा बेटा है, अभी पैदा हुआ, चल भी नहीं सकता, बोल भी नहीं सकता, कुछ लाया भी नहीं, बिलकुल नंग-धड़ंग चला आया है। हाथ खाली है। वह देगा क्या? इसलिए समान तल तो है नहीं मां का और बेटे का । और मांग भी नहीं सकता, क्योंकि मांगने के लिए भी अभी उसके Jain Education International सम्यक दर्शन के आठ अंग पास बुद्धि नहीं है। तो मां का वात्सल्य है। मां उसे जो प्रेम करती है वह सिर्फ देने-देने का है। मां देती है, वह लौटा भी नहीं सकता। उसको अभी होश ही नहीं लौटाने का फिर दूसरा शब्द है : प्रेम । प्रेम होता है सम अवस्था, सम स्थितिवाले लोगों में – एक स्त्री में, एक पुरुष में; दो मित्रों में, मां में, बेटे में भाई-भाई में ऐसा समस्थिति ! परमात्मा ऊपर है, प्रार्थी नीचे है। लेकिन प्रेमी साथ-साथ खड़े हैं। परमात्मा से सिर्फ मांगा जा सकता है, उसको दिया तो क्या जा सकता है! देने को हमारे पास कुछ भी नहीं है। उसके सामने हम निपट भिखारी हैं, समग्ररूपेण भिखारी । देंगे क्या ? देने को कुछ भी नहीं है । अपने को भी दें तो भी वह देना नहीं है, क्योंकि हम भी उसी के हैं तो देना क्या है? उससे हम सिर्फ मांग सकते हैं, सिर्फ मांग सकते हैं। उसके सामने हम सिर्फ भिखारी हो सकते हैं। इसलिए महावीर कहते हैं, परमात्मा की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि परमात्मा के कारण सारा संसार भिखारी हो जाता है। | अब तुम्हारे पास कुछ है, तुम उसे बांटते हो—और जब तुम बांटते हो, तब तुम पाते हो और आने लगा ! अनंत ऊर्जा उठने लगी ! तुम्हारे सब जलस्रोत खुल जाते हैं । तुम्हारे झरने सब फूट पड़ते हैं। जितना तुम्हारे कुएं से पानी उलीचा जाता है, तुम पाते हो उतना ही नया पानी आ रहा है। सागर तुममें अपने को उडेलने लगता है। वात्सल्य का अर्थ है : तुम दो जैसे मां देती है। तो महावीर कहते हैं, प्रार्थना नहीं, प्रेम नहीं - वात्सल्य । तुम तो लुटाओ, जो तुम्हारे पास है दिये चले जाओ। इसकी फिक्र ही मत करो कि किसको दिया। बस इसकी फिक्र करो कि दिया। तो जो तुम्हारे पास हो, वह तुम देते चले जाओ। कुछ तुम्हारे पा बाहर का देने का न हो तो भीतर का दो। वस्तुएं न हों तो अपना प्राण बांटो, अपना अस्तित्व बांटो, पर दो और देते रहो ! तो जैसे भक्ति के रास्ते पर प्रार्थना सूत्र है, ठीक उससे विपरीत, ध्यान के रास्ते पर वात्सल्य सूत्र है । भक्ति के रास्ते पर तुम भिखारी होकर भगवान के मंदिर पर जाते हो : ध्यान के रास्ते पर तुम सम्राट होकर, तुम बांटते हुए जाते हो, तुम देते हुए जाते हो ! तुम मांगते नहीं। क्योंकि मांग में तो आकांक्षा है - वह तो पहले ही चरण में समाप्त हो गई। तो लुटाओ ! दोनों हाथ उलीचिए, यही सज्जन को काम । कबीर ने कहा है: उलीचो ! महावीर का वात्सल्य वही है जिसको कबीर कहते हैं : उलीचना । और प्रभावना ! और आठवां चरण है सम्यक दर्शन का : प्रभावना । यह महावीर का अपना शब्द है। इसके लिए कहीं तुम्हें पर्याय न मिलेगा। प्रभावना का अर्थ होता है: इस भांति जीयो कि तुम्हारे जीने से धर्म की प्रभावना हो। इस ढंग से उठो-बैठो कि तुम्हारे उठने-बैठने से धर्म झरे । और जिनके जीवन में धर्म की कोई रोशनी नहीं है, उनको भी प्यास पैदा हो। तुम्हारा चलना, तुम्हारा व्यवहार, तुम्हारे जीवन की शैली - सभी प्रभावना बन जाए। प्रभावना-धर्म की, सत्य की। तुम एक ज्योतिर्मय व्यक्तित्व बन जाओ कि जिनके भी पास For Private & Personal Use Only 675 www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700