Book Title: Jina Sutra Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 686
________________ जिन सूत्र भागः । ज्योति नहीं है, उनको भी ज्योति होनी चाहिए। और यह ऐसा मत समझ लेना कि सिद्ध हो गये। क्योंकि इस अनंत की जीवन-अंधेरे का भी क्या कोई जीवन है, ऐसा भाव उठे! तम खोज के मार्ग पर बहुत ऐसे पड़ाव आते हैं जहां यह भ्रम पैदा जहां से गुजर जाओ, वही लोगों के हृदय में एक लहर दौड़ होता है कि हो गये सिद्ध। सिद्ध होने का भ्रम बड़ा आसान है, जाए। और लोगों का जीवन सत्य की तरफ उन्मुख हो। क्योंकि अहंकार को बड़ा भाता है, कि हो गये सिद्ध, पहुंच गये! महावीर कहते हैं, इस सत्य की खोज का आठवां अंग है: तुम ध्यान रखना कि ऐसा भाव जब भी तुम्हें आएगा कि पहुंच प्रभावना। क्योंकि तुम जब सत्य को खोजने चले हो, तो अकेले गए, तभी तुम तत्क्षण पाओगे कि कुछ विकृति घटी, कुछ नहीं। उसमें भी कंजूसी मत कर बैठना। नहीं तो वह भी स्वार्थ दुष्प्रयोग हुआ, कहीं कोई भूल हई।। हो जायेगा। तो जिसकी खोज पर तुम चले हो और जो तुम्हें | तो स्मरण रखना कि भूल होती रहेंगी अंतिम क्षण तक। मिलने लगा है, उसकी खोज पर औरों को भी लगा देना। लेकिन निर्वाण के आखिरी क्षण तक भूल होती रहेंगी। समाधि के परम खयाल रखना, महावीर बड़े अनूठे शब्दों का उपयोग करते हैं। फूल के खिलने तक भूल होती रहेंगी। वे यह नहीं कहते, तुम लोगों को उपदेश देना। वे यह नहीं कहते, भल मनुष्य का स्वभाव है। और भलों का जन्मों-जन्मों का तुम लोगों को आदेश देना। वे कहते हैं, प्रभावना! इतिहास है। इसलिए जहां भी कहीं ऐसा लगे, कि दष्प्रयोग में तम्हारे होने के ढंग से ही उनको उपदेश मिल जाए। तुम्हारे होने प्रवृत्ति दिखाई दे, उसे तत्काल मन, वचन और काया से (सम्यक के ढंग से उनको आदेश मिल जाए। तुम्हारा होने का ढंग ही दृष्टि) धीरपुरुष समेट ले; जैसे कि जातिवंत घोड़ा रास के द्वारा | उनको पकड़ ले और एक नये नृत्य में डबा दे और एक, एक नई शीघ्र ही सीधे रास्ते पर आ जाता है। मस्ती से भर दे! तुम्हारा होना ही, तुम्हार अस्तित्व मात्र, तुम्हारा तो अपनी लगाम को कभी भी छोड़ मत देना। जब तक घोड़ा उनके पास से गुजर जाना: एक नए जगत का प्रवेश हो जाए है, तब तक लगाम को हाथ में रखना। घोड़ा यानी मन। जब उनके जीवन में! तुम्हारा उनके पास आ जाना, तुम्हारा सत्संग, तक मन है, तब तक लगाम मत छोड़ देना। मन पर भरोसा मत तुम्हारी मौजूदगी, उन्हें रूपांतरित कर दे! उनकी आंखें उस तरफ कर लेना। क्योंकि बहुत बार घोड़ा बिलकुल ठीक-ठीक चल उठ जायें जहां कभी न उठी थीं। लेकिन इसके लिए वे जो शब्द रहा है, घंटों तक ठीक-ठीक चल रहा है और तुम्हारा मन होता उपयोग करते हैं, वह बड़ा अनूठा है : प्रभावना! तुम उन्हें है, अब लगाम की क्या जरूरत है, रख दो ताक पर; अब तो प्रभावित भी करने की चेष्टा मत करना। तुम्हारा होना प्रभावना सब ठीक चल रहा है, अब होश की क्या जरूरत है, अब निरंतर बने! वे प्रभावित हों: तुमसे नहीं—धर्म से; तुमसे नहीं सत्य स्मरण की क्या जरूरत है, घोड़ा तो ठीक अपने-आप ही चल से; जो तुममें घटा है---उससे; वह जो पारलौकिक तुममें उतरा रहा है! ऐसा भरोसा मत करना। लगाम के रखते ही तत्क्षण है-उससे। घोड़ा अपने स्वभाव के अनुकूल बरतने लगेगा। लगाम तो हाथ ये आठ अंग स्मरण हों तो सम्यक दर्शन निर्मित होता है। में रखनी पड़ेगी जब तक घोड़ा है। जब तक मन न मर जाए, जब यह पहला सूत्र है: तक कि मन से परिपूर्ण मुक्ति न हो जाए, जब तक तुम्हारे भीतर निस्संकिय निक्कंखिय निव्वितिगिच्छा अमूढदिट्ठी य। विचारों की तरंगें उठती हैं-तब तक लगाम का खयाल रखना। उवबूह थिरीकरणे, वच्छल पभावणे अट्ठ।। और जैसे ही तुम्हें लगे कि कहीं घोड़ा गलत रास्ते पर जाने लगा, ये आठ बातें सम्यक दर्शन के आठ अंग हैं। मार्ग से च्युत हुआ, दुष्प्रयोग में लगा, कहीं कोई प्रवृत्ति उठने दूसरा सूत्र : 'जब कभी अपने में दुष्प्रयोग की प्रवृत्ति दिखाई दे लगी, फिर आंख गलत पर पड़ी, फिर कान ने गलत को सुना, तो उसे तत्काल मन, वचन, काया से धीर (सम्यक दृष्टि) समेट फिर हाथ गलत की तरफ बढ़े, फिर विचार में गलत की छाया ले; जैसे कि जातिवंत घोड़ा रास के द्वारा शीघ्र ही सीधे रास्ते पर पड़ी तत्क्षण मन, वचन, काया से धीरपुरुष अपने को फिर आ जाता है।' ऐसे समेट ले...मन, वचन, काया से शरीर को तत्क्षण हटा और महावीर इस बात को बार-बार दोहराते हैं कि तुम कभी ले वहां से। 676 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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