Book Title: Jina Sutra Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 683
________________ सम्यक दर्शन के आठ अंग लेकिन हम परिस्थिति से तोड़ लेते हैं तथ्यों को अलग। हम | भी चुराकर नहीं लाते हैं कि कोई अपराध कहा जा सके। किसी कहते हैं, यह आदमी चोर है! और हम परिस्थितियों की बात ही के घर बैठे हैं, पैंसिल दिख गई, वह खीसे में सरका ली। किसी भूल जाते हैं। यह किन परिस्थितियों में चोर था? के यहां भोजन करने गये हैं, चम्मच ही डाल लिया। पत्नी मनोवैज्ञानिक पश्चिम में बहुत अध्ययन कर रहे हैं अपराध के परेशान कि यह आज नहीं कल, यह झंझट...। और उसने ऊपर। और उनके जो नतीजे हैं वे बहुत घबड़ानेवाले हैं। मुझसे कहा कि आपसे उनका लगाव है; शायद...। आनेवाली सदी में, अगर उनके नतीजे स्वीकार किये गये तो तो मैं उनसे धीरे-धीरे बात किया। मैंने उनकी बड़ी प्रशंसा की, अदालतों को विदा हो जाना पड़ेगा। अदालतों के ज्यादा दिन क्योंकि मैं समझा कि उनको कोई कमी तो है नहीं। धनपति घर से नहीं हैं—दिन लद गये! क्योंकि अदालतें बुनियादी गलती पर हैं, अच्छी नौकरी पर हैं। पत्नी भी नौकरी पर है, खुद भी नौकरी खड़ी हैं। मजिस्ट्रेट इस तरह से बैठकर निर्णय करता है जैसे कि पर हैं। सब कुछ है। तो कोई चम्मच चुराने क चोर होना कोई सारी परिस्थितियों से टूटा हुआ अलग तथ्य है। तो कारण नहीं है। तो जरूर कुछ मन में कारण होगा। तो मैंने उन्हीं परिस्थितियों में यह मजिस्ट्रेट भी चोरी करता। कभी उनकी चोरी का विरोध नहीं किया। इस ढंग से उनको मनस्विद कहते हैं कि अपराध की जितनी समझ बढ़ती जा रही | फुसलाया कि उनको लगे कि शायद मैं भी उसी रोग का बीमार है, उससे पता चलता है कि लोग मजबूरी में अपराध करते हैं। हूं। उनको मैंने इसी तरह बात की कि जैसे मैं भी चम्मचें उठा दो तरह के अपराधी हैं। एक तो अपराधी हैं जो इस तरह | लाता हूं। तो उन्होंने कहा, 'अरे! यह तो अच्छा हुआ; आपसे मजबूर हो जाते हैं, इस तरह मजबूर किये जाते हैं, सारी समाज दिल खोल सकते हैं। आपको मैं दिखाऊंगा, घर चलिए।' की परिस्थिति उन्हें ऐसी जगह ले आती है, जहां अपराध किये | उन्होंने एक अलमारी में, जितनी चीजें चुराई थीं वे सब सजा रखी बिना वे जी नहीं सकते। जहां अपराध करना ही उनके बचने का थीं। उस पर चिटें भी लगा रखी थीं कि किसके घर से कब एकमात्र उपाय रह जाता है। अगर अपराध न करना हो तो मरने | लाए। और उन्होंने बड़ी प्रसन्नता से दिखाईं। के सिवा उनके पास कोई सुविधा नहीं है। और मजा यह है कि उनका इलाज करना पड़ा। वे मानसिक रूप से रोगी थे। चोरी इस समाज में मरना भी अपराध है। यहां आत्महत्या करना भी | के माध्यम से, वे यह सिद्ध कर रहे थे कि वे दूसरों से ज्यादा अपराध है। अगर करते पकड़े गये तो सजा पाओगे। यहां जीना कुशल हैं। दूसरे उनकी चोरी नहीं पकड़ पाते, वे कर जाते हैं। तो मुश्किल है ही, यहां मरना भी मुश्किल है। यहां जीने भी नहीं। यह चोरी में चोरी कारण नहीं थी-अपनी कुशलता, अपनी देते ठीक से, यहां मरने की भी आज्ञा नहीं है। होशियारी, सिद्ध करने की चेष्टा थी। तो ऐसी परिस्थिति में कुछ लोग हैं, जो अपराध करते हैं। और मनोवैज्ञानिक कहते हैं, इस तरह का बीमार चिकित्सा चाहता कुछ दूसरा एक वर्ग है जो किसी मानसिक रोग के कारण अपराध | है। उसको मनोचिकित्सा चाहिए। और जिसने परिस्थितिगत करता है। उसकी परिस्थिति नहीं थी अपराध करने की। जैसे रूप से चोरी की हो, उसकी परिस्थिति में रूपांतरण चाहिए। क्लिप्टोमैनिया है। कुछ लोग हैं जिनको चोरी का रोग होता है। | अपराध समाप्त हो जाते हैं। या तो कोई परिस्थिति के कारण चोर अपराध नहीं। उनको चोरी करने में मजा आता है। उनको कोई है तो परिस्थिति बदलनी चाहिए; और या कोई मानसिक रोग के कमी नहीं है। वे लखपति हो सकते हैं, और ऐसी चीजों की चोरी | कारण चोर है, तो मानसिक रोग का इलाज होना चाहिए। कर सकते हैं जिनका कोई मूल्य भी नहीं है; जैसे कि माचिस की | जेलखाने खाली हो जाते हैं। जेलखाने में बस दो तरह के लोग डिबिया उन्होंने खीसे में रख ली। कोई कारण नहीं है, क्योंकि | पड़े हुए हैं। उनके पास खूब है। और माचिस की डिबिया का कोई मूल्य नहीं महावीर कहते हैं, दूसरे के दोष को बताना ही मत। तुम्हें क्या है। लेकिन उनको कुछ मानसिक रोग है। | पता, किस मजबूरी में, किस कठिनाई में उसने किया हो? और __ मैं एक प्रोफेसर को जानता हूं। उनको इस तरह का रोग था। तुम्हें क्या पता उसके जन्मों-जन्मों की जीवन-कथा का? लंबी उनकी पत्नी ने मुझे कहा कि आप कुछ करिये। वे कोई ऐसी चीज | यात्रा है। उस लंबी यात्रा में कहां उसने किसी दोष को अर्जित कर 67 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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