Book Title: Jina Sutra Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 681
________________ सम्यक दर्शन कआठअग ARRANKARISM धन-लोलुपता, यही पद-लोलुपता, यही राजनीति उनकी भी है। होंगे कि इस चरित्र के रहते हुए, इनको देवता कहे जाने का कारण तो अपने ही जैसों की पूजा करके, तुम कहां पहुंच जाओगे? जो | क्या है! दिव्यता तो कहीं भी मालूम नहीं पड़ती। उन्हें नहीं मिला है वह तुम्हें कैसे दे सकेंगे? ___ इंद्र के संबंध में कितनी कथायें हैं कि जब भी कोई तेजस्वी महावीर कहते हैं कि देवता का अर्थ है: होंगे स्वर्ग में, सुख में व्यक्ति, कोई तपस्वी, चैतन्य की ऊंचाइयों पर पहुंचने लगता है, होंगे, तुमसे ज्यादा सुख में होंगे; लेकिन अभी आकांक्षा से मुक्त सहस्रार के करीब उसकी ऊर्जा आती है, कि इंद्र का देवासन नहीं हुए। डोलने लगता है। महावीर और बुद्ध ने मनुष्य की गरिमा को देवता के ऊपर क्यों? क्योंकि उसे डर लगता है कि कोई प्रतिद्वंद्वी पैदा हुआ। उठाया। महावीर और बुद्ध ने देवताओं को आदमी के पीछे छोड़ प्रतिद्वंद्वी! यह तो कोई राजनीतिज्ञ की स्थिति हो गई, कि कोई दिया। महावीर और बुद्ध ने कहा कि जो निर्विकार हो गया है, जो राष्ट्रपति है, कोई प्रधानमंत्री है, और दूसरा चेष्टा करने लगा, निष्कांक्षा से भर गया है, जो निष्काम हो गया है, देवता भी उसके और लोक में उसकी प्रतिष्ठा बढ़ने लगी तो घबड़ाहट पैदा हो पैर छुएं, देवता भी उसके चरणों में झुकें। हिंदू बहुत नाराज हुए, | जाती है कि यह आदमी कुर्सी छीनने आ रहा है! क्योंकि जैन कथायें हैं, बौद्ध कथायें हैं-ब्रह्मा, विष्णु, महेश को यह इंद्र देवता कैसा, जिसको अपने आसन के छिन जाने की भी बुद्ध और महावीर के चरणों में झुका देती हैं। बुद्ध को जब इतनी चिंता और घबड़ाहट है; और फिर उ ज्ञान हुआ, तो खुद ब्रह्मा आकर चरण छुआ। हिंदुओं को बड़ा बचाने के लिये सब तरह के उपाय करता है-सही, गलत; भेज कष्ट हो जाता है कि यह क्या बात हुई : 'ब्रह्मा से पैर छआ रहे देता है मेनका को कि भ्रष्ट करो विश्वामित्र को! यह तो ऐसे ही हो। ब्रह्मा तो जगत का स्रष्टा है। उसने तो बनाया। और ब्रह्मा हुआ जैसे राजनेता के पास किसी वेश्या को भेज दिया, और फिर से पैर छुआ रहे हो।' चित्र निकलवा लिये और अखबारों में छाप दिये तो लोक में लेकिन जैनों और बौद्धों का कारण है। प्रतिष्ठा खतम हो गई। यह तो कोई सम्यक उपाय भी न हुआ। वे कहते हैं, ब्रह्मा का जीवन तो उठाकर देखो। कथा है, कि यह तो शद्ध राजनीति भी न हई। यह तो राजनीति का भी बड़ा उसने पृथ्वी को बनाया, और वह पृथ्वी पर मोहित हो गया, गर्हित रूप हुआ। यह तो तरकीब बड़े वासनातुर चित्त की हो कामातुर हो गया। कामांध होकर पृथ्वी के पीछे भागने लगा। सकती है। पिता, बेटी के प्रति कामांध हो गया! बेटी घबड़ा गई कि इस तो महावीर कहते हैं, पहली मूढ़ता—लोकमूढ़ता; दूसरी पिता से कैसे बचे! तो वह अनेक-अनेक रूपों में छिपने लगी। मूढ़ता-देवमूढ़ता।। वह गाय बन गई, तो ब्रह्मा सांड बन गया। और इस तरह सारी | देवताओं से सावधान! सृष्टि हुई। दिव्यत्व की पूजा करो-देवताओं की नहीं। और दिव्यत्व जैन और बौद्ध कहते हैं कि ये तो देवता भी कामातुर हैं! तो तुम कभी-कभी घटता है-उन मनीषियों में, जिनके भीतर चैतन्य हिंदू देवताओं की कथायें पढ़ो। किसी ऋषि की पत्नी सुंदर है, तो सब तरह से शुद्ध और निर्विकार हुआ। ध्यान की आखिरी कोई देवता लोलुप हो जाता है, काम-लोलुप हो जाता है, तो ऊंचाई-समाधि-समाधि की पूजा करो! इसलिए जैनों ने षड्यंत्र करके स्त्री के साथ कामभोग कर लेता है। महावीर की पूजा की, ऋषभ की पूजा की, नेमि की पूजा की; महावीर और बुद्ध कहते हैं कि यह तो देवमूढ़ता हुई। अगर तीर्थंकरों की पूजा की, देवताओं की पूजा नहीं की। मनुष्यों की पूजना है तो उनको पूजो, जिनके जीवन से सारी आकांक्षा चली पूजा की, जो परमशुद्ध हो गए! बौद्धों ने बुद्ध की पूजा की, बुद्ध गई है। अगर पूजना है, तो उनको पूजो, जिनके जीवन से सारे को भगवान कहा; लेकिन देवताओं को नहीं पूजा। यह बड़ी मल-दोष समाप्त हो गए हैं। क्रांतिकारी घटना थी। यह बड़ी गहरी दृष्टि थी। इस दृष्टि से बड़े इन देवताओं का चरित्र तो देखो, महावीर कहते हैं। हम गौर से रूपांतर हुए। धर्म का नया रूप प्रगट हुआ। कभी देवताओं का चरित्र देखते नहीं, अन्यथा हम बड़े चकित और तीसरी मूढ़ता, महावीर कहते हैं-गुरुमूढ़ता। लोग हर 671 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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