Book Title: Jina Sutra Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 665
________________ कभी का मर गया होता ! भीड़ को इकट्ठा करने का बड़ा शौक है, बड़ा रस है । उसके पीछे मनोवैज्ञानिक सत्य है। अगर कोई भी उपाय न मिले तो आदमी उलटे-सीधे उपाय करता है। एक आदमी ने अमरीका में इस सदी के प्रारंभ में अपने को प्रसिद्ध करने के लिए आधे बाल काट लिए, आधी दाढ़ी-मूंछ काट ली। न्यूयार्क की सड़कों पर वह तीन दिन घूमता रहा। जहां गया वहीं लोगों ने चौंककर देखा कि क्या हुआ ! सब अखबारों में उसका नाम छपा। तीन दिन में वह आदमी हर आदमी की जबान पर था। और जब उससे पूछा गया कि यह तुमने किसलिए किया है, तो उसने कहा कि इसमें क्या कुछ बताने की बात है! मैं मरा जा रहा था, कोई मुझे जानता ही नहीं ! हम आए और चले ! किसी की नजर भी न पड़ी! यह भी कोई जिंदगी हुई? और मुझमें कोई गुणवत्ता तो है नहीं; मैं कोई बड़ा कवि नहीं हूं, कोई बड़ा चित्रकार नहीं हूं कि लोग मुझे देखेंगे तो मैंने कहा, कुछ तो करूं! यह मुझे सूझ गया। मगर अब चित्रकार मेरा चित्र उतारने को आ रहे हैं और कवि मेरे संबंध में कविताएं लिख रहे हैं। खयाल रखना, जिस पर भी तुमने ध्यान दिया वह मजबूत होता चला जाता है। आधुनिक विज्ञान ने जो बड़ी से बड़ी खोजें की हैं उनमें एक खोज बड़ी चमत्कारी है-और वह यह कि जब वैज्ञानिक निरीक्षण करता है परमाणुओं का, अणुओं का, गहरी खुर्दबीन से, तो एक बहुत अनूठी बात पता चली कि जब वह उनका निरीक्षण करता है तब उनका व्यवहार बदल जाता है। परमाणुओं का निरीक्षण करने से व्यवहार बदल जाता है ! यह तो हद्द हो गयी। इसका तो यह अर्थ हुआ कि जब तुम गौर से कुर्सी को देखते हो तो कुर्सी वही नहीं रह जाती, जब वह कोई नहीं देख रहा था, जैसी तब थी। यह आदमी के संबंध में तो समझ में आता है कि रास्ते पर तुम चले जा रहे हो, कोई भी नहीं है, तो तुम एक ढंग के आदमी होते हो। फिर रास्ते पर कोई निकल आया, दो आदमी निकल आए, तो तुम बदल जाते हो, तुम थोड़े सम्हलकर चलने लगते हो। और अगर दो स्त्रियां निकल आएं और अगर सुंदर हुईं, तब तो तुम बिलकुल ही बदल जाते हो। तब तो तुम एकदम झाड़ देते हो अपने को; सब तरह से सुंदर होकर, टाई-वाई ठीक करके चल पड़ते हो ! चेहरे पर रौनक आ Jain Education International प्रेम हे आत्यंतिक मुक्ति जाती है, पैर में गति आ जाती है ! तुमने देखा, दस आदमी बैठकर बात कर रहे हों और एक स्त्री वहां आ जाये, बात का पूरा का पूरा रूप बदल जायेगा - तत्क्षण ! अब वह दसों के बीच एक होड़ शुरू हो गयी कि इस स्त्री का ध्यान कौन आकर्षित करे ! स्त्री यानी मां ! उसी से आंख का पहला संबंध है। उसी से पहला ध्यान मिला था। उसी की आंख से पहली जीवन की ज्योति पायी थी। जैसे ही स्त्री को देखा कि तत्क्षण वही ध्यान की ज्योति पाने की आकांक्षा जगती है। और दसों में प्रतिस्पर्धा हो जायेगी कि कौन इस स्त्री को आकर्षित कर लेता है । जो आकर्षित कर लेगा वह जीत गया, वह नेता हो गया, बाकी नौ हार गये । वैज्ञानिक कहते हैं कि वस्तुएं तक वही नहीं रह जातीं निरीक्षण करने के साथ, जैसी वह पहले थीं। उनमें भी रूपांतरण हो जाता है। यह तो हद्द हो गयी। परमाणु को देखने के साथ ही व्यवहार बदल जाता है- -इससे एक बात सिद्ध होती है कि परमाणु भी आत्मवान हैं। वहां भी चैतन्य है। चैतन्य के अतिरिक्त तो ऐसा नहीं हो सकता। तो तुम जब वृक्ष को गौर से देखते हो तो तुम यह मत सोचना कि वृक्ष वही रहा - बदल गया। इस पर बहुत प्रयोग हो रहे हैं। अगर तुम एक वृक्ष को चुन लो बगीचे में और रोज उसके पास जाकर उसको ध्यान दो, और ठीक उसके ही मुकाबले वैसा ही दूसरा वृक्ष हो उसको ध्यान मत दो, पानी दो, खाद दो, सब बराबर, सिर्फ ध्यान मत दो और एक वृक्ष को चुनकर तुम उसे रोज ध्यान दो, दुलराओ, पुचकारो, प्यार करो, उससे थोड़ी बात करो, थोड़ी गुफ्तगू अपनी कहो, थोड़ी उसकी सुनो- तुम अचानक हैरान होओगे, जिस वृक्ष को ध्यान दिया वह दुगनी गति से बढ़ता है। इसके अब तो वैज्ञानिक प्रमाण हैं । उसमें जल्दी फूल आ जाते हैं । और फूल उसके बड़े होंगे। खाद और पानी में कोई फर्क नहीं है। दोनों वृक्ष एक साथ रोपे गए थे, एक ऊंचाई के थे; लेकिन जल्दी ही, जिसको ध्यान दिया गया था वह बढ़ जायेगा, जिसको ध्यान नहीं दिया गया, उपेक्षित, दुर्बल, दीन रह जायेगा। यही सत्य भीतर के संबंध में भी है। उन्हीं बातों को ध्यान दो जिन्हें तुम बढ़ाना चाहते हो। मुझसे तुम्हें प्रेम है, प्रेम को ही ध्यान For Private & Personal Use Only 655 www.jainelibrary.org

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