Book Title: Jina Sutra Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 668
________________ जिन सूत्र भागः 11 हूं। तुम्हें जोड़ने की ही चेष्टा है। लेकिन इसके पहले कि असली जोड़ घटे, नकली जोड़ टूटेंगे। इसके पहले कि तुम अपने बच्चों को सच में प्रेम कर पाओ, वह जो झूठा प्रेम है—जो तुमने अब तक समझा है प्रेम है—वह जायेगा। वह जायेगा तो तुम बेचैन होओगे। तुम्हारे हाथ खाली लगने लगेंगे। तुम्हारा हृदय रिक्त होता हुआ मालूम पड़ेगा। लेकिन भरने की वह पहली शर्त है। तुम्हें पहले सूना करूंगा, खाली करूंगा, ताकि तुम भरे जा सको। तुम्हें काटना भी पड़ेगा, छैनी उठाकर तुम्हारे कई टुकड़े अलग भी करने पड़ेंगे-तभी तुम्हारी प्रतिमा निखर सकती है। तो अकारण नहीं है, स्वाभाविक है। अगर समझ लिया तो बेचैन न होओगे। ये बेचैनी की घड़ियां बीत जायेंगी। प्रेम कभी भी किसी को दुखी नहीं किया है। और प्रेम कभी किसी के लिए बंधन नहीं बना है। अगर मालूम पड़ता हो तो इतना ही समझना कि नया-नया है। यह स्वाद अभी जबान पर बैठा नहीं; एक दफा बैठ जायेगा तो तुम पाओगे, प्रेम ही स्वतंत्रता है। प्रेम मुक्ति है। प्रेम से बड़ी कोई मुक्ति नहीं। आज इतना ही। 658 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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