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जीवन का ऋतः भाव, प्रेम, भक्ति
सोच लेना! महावीर का रास्ता बहुत थोड़े लोगों के लिए है। उलटकर मरते हुए लोग नहीं देखे जाते, थोड़ी चोट-वगैरह लग उनके लिए है, जिनके लिए स्वतंत्रता स्वच्छंदता न बनेगी। उनके जाती हो...साधारणतः बैलगाड़ी उलट जाये तो इतना खतरा नहीं लिए है, जिनके लिए परमात्मा का अभाव अहंकार न बनेगा; जो है, क्योंकि गति ही कोई बड़ी न थी; पृथ्वी से फासला ज्यादा दूर कहेंगे, 'जब परमात्मा ही नहीं तो मेरे होने का क्या? परमात्मा का न था। तक नहीं है तो मैं क्या हो सकता हूं?'
नारद का रास्ता बहुत पृथ्वी के करीब है। प्रेम का रास्ता पृथ्वी परमात्मा का अर्थ है सारे अस्तित्व का 'मैं'; सारे अस्तित्व के बहुत करीब है। और तुम्हारा जो सामान्य जीवन है उससे का केंद्र। जब सारा अस्तित्व केंद्रहीन है और 'मैं' रहित है, तो बहुत फासला नहीं है। तुम अपने सामान्य जीवन में जीते हुए भी मैं एक छोटा-सा व्यक्ति, एक छोटी-सी लहर, एक जरा-सी नारद को सुगमता से साध सकते हो। तरंग!...जब सागर का ही कोई 'मैं' नहीं है तो मेरा मैं क्या हो खतरा क्या है? खतरा एक ही है और वह यह है कि प्रेम कहीं सकता है ? बात खतम हो गयी!
वासना ही न बन जाए। प्रेम भक्ति बने, यह तो नारद का मार्ग तो महावीर ने तो परमात्मा को इनकार करने में ही अपने भीतर है। और प्रेम कहीं वासना ही रह जाये, यह खतरा है।। 'मैं' की संभावना को इनकार कर दिया। इसलिए तुम यह मत जैसे महावीर के पीछे चलनेवाले जैन मुनि अहंकार की पाषाण सोचना कि महावीर और नारद वस्तुतः विपरीत हैं। अंततः तो प्रतिमाएं बन गए, वैसे ही नारद के पीछे चलने वाले भक्त केवल सार एक ही निकलता है। महावीर ने परमात्मा को अस्वीकार | भोग-शृंगार में खो गये। खतरा तो है ही। खतरा तो सभी रास्तों करके 'मैं' को अस्वीकार कर दिया। नारद ने परमात्मा को | पर है। चलनेवाले को खतरा तो है ही। इसलिए सम्हलकर तो स्वीकार करके 'मैं उसके चरणों में चढ़ा दिया। हर हाल नारद चलना होगा। फिर भी खतरे की मात्राएं भिन्न-भिन्न हैं। और महावीर दोनों 'मैं' से मुक्त हो गये।
अगर नारद के मार्ग पर तुम भटके भी तो तुम वहां से नीचे न तो तुम चाहे कुछ भी निर्णय लो-तुम चाहे प्रेम के पक्ष में गिरोगे जहां तुम हो। क्योंकि वासना में तो तुम हो ही। अगर निर्णय लो, चाहे अहंकार के पक्ष में निर्णय लो-लेकिन एक | नारद के मार्ग से तुम गिरे भी तो बैलगाड़ी से गिरे; जमीन से बात ध्यान रखना, अहंकार तो मरेगा ही। उससे तुम बच न ज्यादा दूर न थे। वासना में तुम हो ही। इतना ही धोखा दे सकते सकोगे। उसे अगर बचा लिया तो तुम विक्षिप्त हो जाओगे, | हो कि अब तुम अपनी वासना को प्रेम कहने लगो और प्रेम को पागल हो जाओगे। उसी कारण तो सारी पृथ्वी करीब-करीब भक्ति कहने लगो। बस नामों के धोखे दे सकते हो। कुछ ज्यादा पागल जैसी है।
खतरा न होगा। लेकिन महावीर के मार्ग से अगर तुम गिरे तो अगर मेरी सुनो तो मैं कहूंगा: हृदय की सुनो! प्रेम की सुनो! पागलपन है, विक्षिप्ता है और भयंकर अहंकार के खड़े हो जाने ज्यादा सुरक्षित मार्ग है। महावीर का मार्ग बहुत खाई-खड्ड से | का डर है। गुजरता है। डर है कि तुम कहीं गिर न जाओ! नारद का मार्ग जैन मुनि को देखते हो। उससे ज्यादा गहन अहंकारी व्यक्ति बहुत सुरक्षित है। तुम्हारी कमजोरी को भी सम्हाल लेगा। तुम्हें | खोजना मुश्किल है। सहारा देगा। महावीर का मार्ग बहुत अकेला है, अत्यंत एकांत जैन मुनि श्रावक को हाथ जोड़कर नमस्कार भी नहीं कर का है। दूर, बहुत दूभर है! जाओ तो सोच समझकर जाना, कि | सकता। कठिन है, असंभव है। मुनि और श्रावक को नमस्कार नीत्से का खतरा तुम्हारे पीछे लगा रहेगा।
करे! आशीर्वाद दे सकता है, नमस्कार नहीं कर सकता। नारद के मार्ग पर नीत्से का खतरा नहीं है। ऐसा नहीं कि वहां लेकिन मैं पूछता हूं, जब नमस्कार ही नहीं कर सकते तो कोई खतरा ही नहीं है। खतरा तो हर चलने में होता है, हर यात्रा आशीर्वाद देने की झंझट भी क्या कर रहे हो? जब कुछ करना में होता है। जो घर बैठे रहते हैं उन्हीं को खतरा नहीं है। हवाई | ही है तो नमस्कार बेहतर था, आशीर्वाद देने की बजाय। और जहाज से चलो तो खतरा है। बैलगाड़ी से चलो तो वह भी जिसका नमस्कार सूख गया है उसके आशीर्वाद में कोई बहुत कभी-कभी उलट जाती है। लेकिन ऐसा है कि बैलगाड़ी से | बल नहीं हो सकता। अहंकार से आया हुआ आशीर्वाद क्या
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