Book Title: Jina Sutra Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 642
________________ Radस THARURE जिन सूत्र भाग: 1EEEELATERALI कि समाज की सम्मत मान्यताओं के अनुकूल हो। यह तुम्हारी बदल लेना, लेकिन तुम धार्मिक व्यक्ति को नहीं बदल सकते। दृष्टि के अनुकूल होगा। लेकिन जिसके पास दृष्टि है वह चिंता धार्मिक व्यक्ति के साथ तुम संसर्ग में आए तो या तो तुम बदलोगे भी नहीं करता कि उसके चरित्र को आदर मिलता है या नहीं। या तुम दुश्मन हो जाओगे, लेकिन धार्मिक व्यक्ति नहीं जिसके पास दृष्टि है वह तुम्हारे मत का कोई विचार नहीं रखता बदलता। कोई उपाय नहीं। इसलिए नहीं कि धार्मिक व्यक्ति कि तुम क्या सोचते हो। तुम्हारे सोचने पर, तुम्हारी धारणाओं जिद्दी होता है; इसलिए नहीं कि हठाग्रही होता है बल्कि पर, तुम्हारी प्रशंसा और निंदा पर उसके चरित्र के आधार नहीं | इसलिए कि उसकी दृष्टि उसे जहां दरवाजा दिखाती है वहीं जाता होते। उसके चरित्र के आधार अपनी अंतर्दृष्टि पर होते हैं। अगर है। तुम जहां दरवाजा बताते हो वहां उसे दीवाल दिखाई पड़ती वह अकेला भी है और सारा संसार भी उससे भिन्न सोचता है तो है। वह अंधों की बात नहीं मानता तो कुछ आश्चर्य तो नहीं। भी वह मस्त है। इसमें जिद्द क्या है? अगर अंधों की एक भीड़ हो और 'अर्श' सुनता नहीं किसी की बात आंखवाला आदमी हो और अंधों की भीड़ कहे, तम गलत चल हाल में अपने मस्त है शायद। रहे हो...। -वह अपनी मस्ती में होता है। वह उन्मत्त होता है अपने मैंने सुना है, एच. जी. वेल्स की एक कहानी है कि मैक्सिको आनंद में। में एक छोटी-सी घाटी है जहां सभी अंधे हैं। क्योंकि वहां के 'अर्श' सुनता नहीं किसी की बात पानी में और भूमि में कुछ ऐसे तत्व हैं कि बच्चे पैदा होते हैं और हाल में अपने मस्त है शायद। पैदा होते से ही महीने दो महीने के भीतर उनकी आंखों की ज्योति तो महावीर कोई चिंता नहीं करते कि तुम किसे आचरण कहते चली जाती है। एक आदमी, आंखवाला, उस घाटी में पहुंच हो। महावीर को जो आचरण दिखाई पड़ता है, वह घटता है। गया। वह तो चकित हुआ। वह तो विश्वास न कर सका कि और ऐसे बलशाली पुरुष ही, आचरण के नये मापदंड, नये | कोई सैकड़ों आदमी अंधे हैं, एक भी आंखवाला नहीं। उसे बड़ा प्रतिमान दे जाते हैं। ऐसे बलशाली पुरुष ही, ऐसे महावीर ही उनसे प्रेम हो गया। वह उनके बीच रहने भी लगा। वह एक आचरण की नयी-नयी सझें, नये-नये आकाश खोल जाते हैं। युवती के प्रेम में पड़ गया। अब तक तो बात ठीक थी कि वह तो नग्नता को भी आचरण दे दिया। नग्नता महावीर के साथ अजनबी था और उलटी-सीधी बातें करता था—ऐसा अंधे जुड़कर निर्दोष हो गयी। लोग वस्त्रों में भी इतने सुंदर नहीं हैं, सोचते थे-आंख की, रंग की, रोशनी की, इंद्रधनुषों की, फूलों जितने महावीर अपनी नग्नता में सुंदर थे। लोग वस्त्रों में छिपकर की, हरियालों की... ! और जब भी अंधे उससे पूछते तो कुछ भी, वस्त्रों में ढंके हुए भी इतने सुगंधपूर्ण नहीं हैं, जितने महावीर समझा तो नहीं पाता। अंधे पूछते कि दिखाओ, 'हरियाली कैसी अपनी नग्नता में थे। महावीर की नग्नता शुद्ध निर्दोष बालपन हो है? समझाओ, हरियाली कैसी है?' तो क्या समझाता! गयी, छोटे बच्चे की नग्नता हो गयी। | 'समझाओ इंद्रधनुष, किसकी बात कर रहे हो तुम, कहां है? महावीर इस जगत में नग्नता के निर्दोष होने के पहले प्रमाण हैं, | हम छूकर देखना चाहते हैं!' वृक्षों को छू भी लेते तो हरियाली तुम्हारे साथ तो वस्त्र भी गंदे हो जाते हैं; महावीर के साथ तो तो छूने से हाथ में समझ में नहीं आती। तो वे हंसते। वे कहते, नग्नता भी पवित्र हो गयी। ऐसे वीर पुरुष ही जीवन को नये कोई पागल आ गया है। स्वभावतः भीड़ उनकी थी। प्रतिमान, नयी गतियां, नये आयाम, नये क्षितिज, नये आकाश | लोकतांत्रिक दृष्टि से वही सही थे। संख्या उनकी थी। यह देते हैं। इसलिए धार्मिक व्यक्ति अनिवार्यरूपेण विद्रोही होता | अकेला था, वे सब थे। अब तक तो कोई बात न थी, लेकिन है-होगा ही। क्योंकि तुम्हारी पिटी-पिटायी, सड़ी-सड़ायी | जब वह एक लड़की के प्रेम में पड़ गया तो जरा उस वादी के लोग धारणाएं हैं। तुम रखो अपने पास! वह तुम्हारी धारणाओं के हैरान हुए। उन्होंने कहा, अब जरा मुश्किल है। अगर यह अनुकूल अपने को ढांचे में नहीं ढालता। वह तो अपनी दृष्टि के आदमी विवाह करना चाहता है तो इसे हमारे जीवन के अनुकूल जीता है। अगर तुम्हारी मर्जी हो तो अपनी धारणाओं को रीति-नियम स्वीकार करने होंगे। और पहला रीति-नियम यह है Main Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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