Book Title: Jina Sutra Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 661
________________ KHEcond प्रेम है आत्यंतिक मुक्ति M चले गए हैं। तमको भी पता है. उनको भी पता है। लौटता, तुम जल्दी ही थक जाते हो। तुम उदास हो जाते हो। तुम जिसको पता है वह भी दो-चार चक्कर लगाकर बिस्तर के अपने रास्ते पर लग जाते हो। तुम सोचते हो, यह द्वार अपने नीचे आ जाता है कि अरे! और इस तरह चमत्कृत होता है कि लिए नहीं। तुम अगर मित्रता बांट रहे हो और दूसरी तरफ से जैसे कुछ पता न था। हालांकि वह आंख बंद किये खड़ा था, मित्रता के लिए कोई प्रतिसंवेदन नहीं होता, कोई संवाद नहीं लेकिन उसने थोड़ी-सी आंख खोलकर देख लिया था कि कहां । उठता, दूसरे हृदय से कुछ खबर नहीं आती कि तुम्हारी मित्रता जा रहे हो! सबको पता है।। स्वीकार की गयी, अस्वीकार की गयी; चाही गई थी, नहीं चाही इसलिए हिंदू इस जगत को लीला कहते हैं।...छिया-छी है। | गई थी; दूसरा प्रसन्न हुआ कि नहीं प्रसन्न हुआ; दूसरा अगर परमात्मा भी तुम्हें खोज रहा है। तुम्हीं अकेले नहीं हो खोज तटस्थ ही खड़ा रहे उपेक्षा से-तो जल्दी ही मित्रता सूख जाती में। यह तुम्हारा हाथ ही उसके हाथ की तरफ नहीं बढ़ा है, उसका है। सींचना तभी संभव हो पाता है जब दोनों तरफ से बह चले; हाथ भी तुम्हारे हाथ की तरफ बढ़ा है। शायद तुमने हाथ बढ़ाया, आये भी जाये भी; लौटे। और जब तुम किसी को प्रेम देते हो उससे पहले ही उसने हाथ बढ़ा दिया है। तुम्हें जब से बनाया, और प्रेम वापस लौटता है तो हजार गुना होकर लौटता है। फिर तब से ही हाथ बढ़ाए खड़ा है। तुमने बड़ी देर कर दी है। तुम देते हो, फिर हजार गुना होकर लौटता है। दो प्रेमी एक-दूसरे उल्फत का जब मजा है कि वह भी हों बेकरार को देकर इतना पा लेते हैं जितना उन्होंने दिया कभी भी नहीं था; दोनों तरफ हो आग बराबर लगी हुई। क्योंकि दोनों की तरफ हजार गुना होकर लौटने लगता है। -आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई है। प्यासा वह भी है कि दो प्रेमियों का जोड़ केवल जोड़ नहीं होता, गुणनफल होता है। तुम आओ। | जो अंतिम हिसाब है उसमें ऐसा नहीं होता कि तीन + तीन = वैज्ञानिक कहते हैं, सूरज निकलता है, फूल खिलते हैं। अब छह। उसमें ऐसा होता है : तीन x तीन से = नौ। गुणनफल की तक ऐसा ही समझा जाता रहा है कि यह एकतरफा लेन-देन है : | तरह चलती है, बढ़ती जाती है संख्या। बड़ा होता चला जाता सूरज निकला, फूल खिले। सूरज तो बहुत कुछ देता है फूलों है। दोनों प्रेमी छोटे हो जाते हैं और दोनों के आसपास को। सूरज के बिना तो फूल खिल न सकेंगे। कवियों को सदा आने-जानेवाला प्रेम बहुत बड़ा हो जाता है। दोनों प्रेमी दो तट इस बात पर संदेह रहा है और अब कुछ वैज्ञानिकों को भी संदेह की भांति हो जाते हैं और प्रेम की गंगा बड़ी होने लगती है। होना शुरू हुआ है। और वह संदेह यह है कि एकतरफा तो जगत | लेकिन यह तभी संभव है जब लौटता भी हो। में कुछ भी नहीं हो सकता। यहां तो सब लेन-देन संतुलित है। मेरी भी दृष्टि यही है कि फूल भी लौटाते हैं। और जिस दिन यहां तो दोनों तराजू समान होने चाहिए। अन्यथा अव्यवस्था हो पृथ्वी पर एक भी फूल न होगा, उस दिन सूरज ऊगना न जायेगी। सूरज देता रहे, फूल लेते रहें; सूरज देता रहे, फूल लेते चाहेगा। ऊगने का कोई अर्थ न रह जायेगा। किसके लिए? रहें-तो एक दिन सूरज का दिवाला निकल जायेगा। और फूलों। मैं यहां बोल रहा हूं। तुम अगर समझते हो तो ही बोल सकता के पेट इतने बड़े हो जाएंगे कि वे अपने को सम्हाल न पाएंगे। हूं। तुम्हारी आंख से, तुम्हारे भाव से, तुम्हारी मुद्रा से अगर नहीं, फूल भी कुछ दे रहे होंगे। और सुबह जब सूरज निकलता समझ को लौटते हुए देखता हूं तो ही बोल सकता हूं। अन्यथा है तो फल ही नहीं खिलते, सुरज भी फलों को खिला देखकर फिर दीवालों से बोलने में और तुमसे बोलने में कोई फर्क न रह खिलता होगा। जायेगा। फिर दीवालों से ही बोल ले सकता हूं। तुम दीवाल नहीं यह अब तक तो कविता रही है। लेकिन अभी इधर दस वर्षों में हो। इसलिए धीरे-धीरे मैंने भीड़ में बोलना बंद कर दिया, | वैज्ञानिकों को इस पर संदेह आने लगा है और शक होने लगा है क्योंकि मैंने पाया कि वहां बड़ी दीवाल खड़ी है। भीड़ तो खड़ी कि यह कविता कहीं सच ही न हो। क्योंकि सब तरफ जीवन में होती है, लेकिन दीवाल की तरह खड़ी होती है। वहां लेन-देन बराबर है। तुम जिसे प्रेम देते हो, तत्क्षण उससे प्रेम संवेदनशील चित्त नहीं हैं। तो मैं बोलता हूं, लेकिन लौटता कुछ पाते हो। अगर तुम ही प्रेम दे रहे हो और दूसरी तरफ से प्रेम नहीं भी नहीं। और अगर लौटता न हो, कम से कम समझ न लौटती 651 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibray.org

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