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जिन सूत्र भाग : 11
के लिए बर्दाश्त के बाहर है कि कोई और कूद जाये। और कई लोग वही के वही हैं। लोग वैसे के वैसे हैं। महावीर को बार ऐसा हुआ है कि दो आदमी एक साथ कूद गये और जो बच्चे मारा-पीटा, गांवों से निकाल दिया, गांवों में ठहरने न दिया, वर्षों को बचाकर ले आया और दूसरा खाली हाथ लौटा, तो उसकी | उनको जंगलों में बिताने पड़े। नग्नता बड़ी बेचैन करनेवाली बात निराशा देखो! बच्चे के बचने से कोई प्रयोजन नहीं है-कौन थी। जब कोई आदमी समाज में नग्न खड़ा हो जाता है तो सभी बचा लाया! किसने अपने अहंकार को तृप्त कर लिया! आदमी कपड़े पहननेवाले लोगों को कष्ट होता है। क्योंकि वह आदमी बड़ा उलझा हुआ है!
नग्न होकर किसी गहरे अर्थ में तुमको भी नग्न कर देता है। जब तो जैन साधु, जो व्याख्या कर रहे हैं, उस व्याख्या में महावीर एक आदमी नग्न खड़ा हो जाता है तो तुमने जो-जो छिपा रखा है से प्रयोजन नहीं है। उस व्याख्या में स्वयं को और स्वयं के पूरे वस्त्रों में वह सब उसने उघाड़ दिया है। तुम भी उसी जैसे हो, व्यवसाय को बचा लेने की आकांक्षा है।
थोड़े-बहुत विस्तार के फर्क होंगे। कोई ज्यादा फर्क तो है नहीं। ये कोष्ठक बहुत खतरनाक हैं। महावीर का वचन सीधा है: वही सब तुम भी हो, जो वह आदमी है। उसे नंगा देखकर तुम सिझंति चरियभट्ठा। चरित्र-विहीन सिद्धि प्राप्त कर लेते हैं। भी नग्न हो जाते हो; तुम्हारे वस्त्रों का उसने सारा अर्थ गंवा सिद्धि का कोई संबंध चरित्र-भ्रष्ट होने या चरित्रवान होने से नहीं दिया। तुम अपने को छिपाकर चल रहे थे। अगर तुम अपने को है। सिद्धि का संबंध दर्शन की शुद्धि से है; दृष्टि की सुघड़ता से खुद ही कहीं नग्न पा लो तो पहचान न सकोगे बिना कपड़ों के। है; दृष्टि की निर्मलता से है।
दो छोटे बच्चे एक नग्न क्लब के पास से गुजरते थे और अब महावीर का यह वचन यह भी कहता है कि चरित्रहीन भी दीवाल में से पानी निकलने के छेद में से उन्होंने अंदर देखा। सम्यक दृष्टि हो सकता है, और चरित्रवान भी दृष्टि-विहीन हो | छोटे बच्चे, स्कूल से लौटते हुए! जब एक देख चुका तो दूसरा सकता है।
जो खड़ा था और देखने की प्रतीक्षा कर रहा था कि तुम हटो तो मैं शुभ होगा अगर तुम चरित्रवान और दृष्टिवान दोनों होओ। देखू, उसने पूछा, 'कौन है अंदर?' उसने कहा, 'कहना यह तो अच्छा ही होगा। यह तो सोने में सुगंध हो जायेगी कि मुश्किल है। सब बिना वस्त्र के हैं।' उसने पहले ने पूछा, तुम्हारे पास दृष्टि भी है और आचरण भी।
'स्त्रियां हैं कि पुरुष?' उसने कहा, 'अब कैसे बताऊं? कोई और अकसर तो दृष्टि होती है तो आचरण होता ही है; आ ही वस्त्र पहने ही हुए नहीं है।' जाता है; लाना नहीं पड़ता।
हमारा तो स्त्री-पुरुष का भेद भी करीब-करीब वस्त्र में है। लेकिन फिर महावीर ऐसा क्यों कहते हैं कि चरित्र-विहीन छोटे बच्चों को तो स्त्री-पुरुष में यही भेद दिखाई पड़ता है कि सम्यक दृष्टि भी पहुंच सकता है? वे यह कह रहे हैं कि बहुत अलग-अलग पकड़े पहने हुए हैं। गरीब-अमीर का भेद भी बार ऐसा होता है कि जो तुम्हारा चरित्र है, वह दूसरों को चरित्र न वस्त्रों में है। तुम जरा देखो! एक मजिस्ट्रेट को और चोर को मालूम पड़े; क्योंकि दूसरों की धारणाएं अनिवार्य रूप से, दर्शन दोनों को नग्न खड़ा कर दो-फिर कौन मजिस्ट्रेट है, कौन चोर से जो चरित्र पैदा होता है, उससे मेल खाएं न खाएं। इसे है? मुश्किल हो जायेगी। वह तो सारा भेद वस्त्रों का है। समझना। जिसके पास दृष्टि है, वह दीवाल से क्यों निकलने की इसलिए पुराने दिनों से मजिस्ट्रेट को खास ढंग से विग पहनाया कोशिश करेगा? वह तो दरवाजे से निकलेगा ही। लेकिन यह जाता है। वह न केवल वस्त्रों से काम चलता है, वह सिर पर हो सकता है कि उसे जो दरवाजा मालूम होता है वह तुम्हें दरवाजा बालों का एक विग भी लगा ले, ताकि आदमीयत बिलकुल खो न मालूम होता हो, देखनेवालों को न मालूम होता हो। जाये, कुछ पता न चले। वकील काले चोगे में खड़े हो जाते हैं।
महावीर जब नग्न खड़े हो गये, तो अनेकों को लगा, यह तो विश्वविद्यालयों में दीक्षांत समारोह होते हैं और बड़े-बूढ़े भी बात अनैतिक है, यह तो चरित्रहीनता है। तुम यह मत सोचना बचकानी हरकतें करते हैं; चोगे पहन लेते हैं, उनमें खड़े हो जाते कि आज जब रास्ते पर कोई आदमी नग्न खड़ा हो जाता है तो तुम हैं। लेकिन वही भेद है, नहीं तो उपकुलपति कुलपति कौन; सोचते हो चरित्रहीनता है; उस दिन भी यही लोगों ने सोचा था। चांसलर, वाइसचांसलर कौन? मुश्किल हो जायेगा पहचान
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