Book Title: Jina Sutra Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 621
________________ जीवन का ऋत् : भाव, प्रेम, भक्ति थे। तुम दुकान पर बैठ सकते थे, कुछ रुपया कमा लेते। तुम | बड़ा क्रांतिकारी निर्णय है। और निर्णय बहुत साफ-साफ लेना सिनेमा जा सकते थे, कोई फिल्म देख लेते। तुम शराब-घर में | चाहिए, क्योंकि निर्णय पर, इसी निर्णय पर सारे जीवन का ढांचा जा सकते थे, शराब पी लेते। गपशप कर लेते, अखबार पढ़ निर्भर करेगा। तुम कहां पहुंचोगे, यह इस पर निर्भर करेगा कि लेते, रेडियो सुन लेते। हजार उपयोग हो सकते थे इसके, वह तुमने पहला कदम किस दिशा में उठाया था। अगर पहला कदम तुमने छोड़े और यह उपयोग चुना कि मुझे सुनते हो। यह बड़ा गलत उठा तो तुम लाख दौड़ो, लाख श्रम करो, तुम ठीक जगह चुनाव है। अब तुम अगर चाहो कि वे लाभ भी जो तुमने छोड़ न पहुंच पाओगे। तुम्हारी दौड़, तुम्हारी आपाधापी, अगर गलत दिये, मुझे सुनने से मिल जायें, तो तुम गलत चाह कर रहे हो। कदम पर खड़ी है तो बुनियाद गलत है, यह भवन गिरेगा। गलत चाह से अड़चन आती है। पूछा है, 'पहली बार किसी के प्रेम में पड़ा हूं।' इसलिए अब अगर तुम्हें अहंकार में रस आ रहा हो तो छोड़ो प्रेम की स्वाभाविक भी है। पहली बार जब कोई किसी के प्रेम में पड़ता है बात। फिर पूरे अहंकारी बन जाओ। फिर राजनीति तुम्हारा धर्म तो अहंकार बाधा डालता है। क्योंकि अब तक तुम अहंकार के होगी। फिर दौड़ो अहंकार, पद...दिल्ली की यात्रा करो! फिर प्रेम में रहे। अब तक तुमने सिर्फ अहंकार को ही प्रेम किया है। तुम यहां बैठे क्या कर रहे हो? फिर यह समय गंवाया हुआ आज पहली दफा अहंकार के विपरीत कोई नये प्रेम का उदभव सिद्ध होगा। फिर तुम एक न एक दिन मुझ पर बहुत नाराज हो हुआ-जहां अहंकार को समर्पित करना होगा, जहां 'मैं' को जाओगे। यह समय तो दिल्ली की यात्रा में लगाना था। बस मिटाना होगा। तो स्वभावतः, जिस 'मैं' को अब तक सींचा, तुम्हारा एक ही मंत्र होना चाहिए : दिल्ली चलो! जिस 'मैं' को अब तक सम्हाला, वह अगर बाधा डाले तो कुछ अगर अहंकार को ही भरना है, तो साफ-साफ भरो; फिर आश्चर्य नहीं। लेकिन तुमने जिसे सींचा है, तुम ही अगर पानी इधर-उधर बेईमानी मत करो! निश्चित ही, ध्यान रखना, | बंद कर दोगे, वह अपने से कुम्हला भी जायेगा, सूख भी अहंकार को भरने के थोड़े से सुख हैं। दुख भी बहुत हैं। सुख तो जायेगा। अब तुम्हारे सामने है निर्णय। अब तक तो तुमने भ्रामक हैं, भासमान हैं, दुख बड़े यथार्थ हैं। तो सोच लेना, ठीक | अहंकार को ही सींचा था, अब प्रेम का भी अंकुर उठा है। अब से देख लेना, दुख-सुख दोनों का दर्शन कर लेना। प्रेम के सुख तुम सोच लोः अहंकार क्या दे सकता है और प्रेम क्या दे सकता तो बड़े सच्चे हैं, दुख केवल भासमान हैं। इसलिए बुद्धिमानों ने है? अहंकार देने के बहुत-से आश्वासन देगा, लेकिन देता प्रेम चुना; बुद्धिहीनों ने अहंकार चुना। बुद्धिमानों ने धर्म चुना; - कभी कुछ नहीं बस कोरे आश्वासन ! यही तो सब सिकंदरों, बुद्धिहीनों ने राजनीति चुनी। बुद्धिमानों ने अंतर्जगत चुना; | नेपोलियनों की कथा है। प्रेम आश्वासन नहीं देता—देने की तो बुद्धिहीनों ने बाहर का जगत चुना। बाहर के जगत का धन | बात ही नहीं उठाता। प्रेम तो कहता है, सब खोना पड़ेगा। दिखाई पड़ता है—है नहीं; सिर्फ मान्यता है। भीतर का धन लेकिन खोनेवालों की कथा ही तो सारे भक्तों की कथा है, सारे दिखाई नहीं पड़ता, लेकिन है। अदृश्य है-और दृश्य केवल धार्मिकों की कथा है, सारे ध्यानियों की कथा है। दिखाई पड़ता है। | प्रेम कहता है, खोओगे तो मिलेगा। और अहंकार कहता है, । तो तुम्हारे ऊपर निर्भर है। उलझन चन लोगे तो तम कहीं के भी पाओगे तो मिलेगा। अहंकार का गणित बद्धि की समझ में आ न रहोगे-घर के न घाट के! तुम धोबी के गधे हो जाता है। स्वाभाविक है, पाओगे तो मिलेगा। और प्रेम कहता ।...या तो घाट या घर। अगर अहंकार चुनना है तो | है, खोओगे तो मिलेगा। तो गणित कुछ अटपटा है, बेबूझ है, घाट। अगर प्रेम चुनना है तो घर। | बुद्धि में आता नहीं। प्रेम चुनने का अर्थ है कि जीवन अपने-आप में मूल्यवान है। अहंकार और बुद्धि के बीच तो एक तरह का समझौता है, एक और जीवन का चरम अर्थ जीवन की प्रफुल्लता में है—धन में षड्यंत्र है। बुद्धि अहंकार की पक्षपाती है, अहंकार बुद्धि का नहीं, गीत में है; पद में नहीं, प्रसन्नता में है; वस्तुओं में नहीं, पक्षपाती है। तो अगर तुमने सिर से ही पूछा तो तुम अहंकार के व्यक्तियों के अंतर्संबंधों में है। और बाहर नहीं भीतर है। यह ही रास्ते पर भटकते-भटकते खो जाओगे; जैसे कोई सरिता 61 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.co

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