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जीवन का ऋत: भाव, प्रेम, भक्ति
दामन निचोड़ दें तो फरिश्ते वजू करें।
खाली तो जगह करो। तुम सिंहासन तो रिक्त करो। परमात्मा तो कीर्तन करनेवाला तो दीवाना है, पागल है, नर्तक है, गायक प्रतिपल उत्सुक है तुम्हारे भीतर आ जाने को। तुम तो जरा बाहर है, वादक है। और इतनी तीव्रता से नर्तन करता है, इतनी गहनता | हो जाओ! से कि अपने को भूल जाता है, खो देता है, खुद बचता ही नहीं। कीर्तन का इतना ही अर्थ है: अपने से बाहर हो जाना; अपने
पश्चिम का एक बहुत बड़ा नर्तक हुआ : निजिन्सकी। उसके घर को खाली छोड़ देना कि तू आ, अब भीतर कोई भी नहीं है; संबंध में वैज्ञानिक बड़े चकित थे। उसके नृत्य जैसा नृत्य फिर अब पूरी जगह तेरे लिए खाली है, तेरे लिए सुरक्षित है! कभी देखा नहीं गया-न उसके पहले, न उसके बाद। वैज्ञानिक रंज-गम, दर्द-अलम, यास, तमन्ना, हसरत हैरान थे कि जब वह नृत्य करते-करते छलांग लगाता था तो ऐसा इक तेरी याद के होने से है क्या-क्या दिल में। लगता था कि पृथ्वी पर वापस लौटते समय बड़ा धीमे-धीमे रंज-गम, दर्द-अलम, यास, तमन्ना, हसरत वापस आता है; जैसे गुरुत्वाकर्षण का नियम उस पर काम नहीं इक तेरी याद के होने से है क्या-क्या दिल में। करता। और भी नर्तक छलांग लगाते हैं, लेकिन तत्क्षण पृथ्वी भक्त कहता है, भगवान की याद के साथ ही क्या-क्या नहीं
नाते हैं। वह भी छलांग लगाता था, लेकिन | होने लगता! आनंद, अहोभाव, आशा-निराशा, सुख-दुख, ऐसे लौटता था जैसे कोई पक्षी का पंख डगमगाता-डगमगाता, अभीप्सा, प्यास-तृप्ति! आहिस्ता-आहिस्ता, हवा पर तिरता-तिरता जमीन की तरफ रंज-गम, दर्द-अलम, यास, तमन्ना, हसरत आता है। उसके बहुत अध्ययन किये गये। उससे पूछा भी गया -बस जरा तेरी एक याद आ जाती है तो हजार-हजार चीजें कि चमत्कार कहां है? यह जादू कैसे पैदा होता है?
तेरे आसपास चली आती हैं। तो वह कहता है, मुझे पता नहीं। जब 'मैं' अपने को | तो कीर्तन की बहुत भंगिमाएं हैं। कभी भक्त विरह में नाचता
जाता हूं, तभी यह छलांग घटती है। जब 'मैं' है; तब उसकी कीर्तन में बड़ी उदास भंगिमा होती है। आंसू बहते नहीं होता-तभी। जब तक मैं होता हूं, अगर मैं चेष्टा से ही हैं। पीड़ा और विरह होती है। कभी भक्त आनंदोल्लास में छलांग लगाऊं, तो परिणाम में कुछ हाथ नहीं आता। लेकिन नाचता है; तब उसकी बड़ी प्रसन्न भंगिमा होती है, वसंत होता नाचते-नाचते एक ऐसी घड़ी आती है कि नाच रह जाता है, नर्तक है, सब तरफ फूल होते हैं! तब उसकी मस्ती देखें! तब उसके नहीं रह जाता। उस क्षण अगर यह छलांग लगती है तो मैं खुद ही चारों तरफ आनंद की किरणें नाचती हैं। कभी प्यास में नाचता चकित होता हूं। मैं बिलकुल हलका, निर्भार हो जाता हूं; जैसे है; कभी तृप्ति में नाचता है। जमीन की कशिश का अहंकार का बड़ा बल हो। है भी। जमीन भक्त की बड़ी ऋतुएं हैं और कीर्तन की बड़ी भाव-भंगिमाएं तुम्हारे अहंकार को ही खींच रही है। जिस दिन तुम्हारा अहंकार | हैं। कीर्तन बड़ी समृद्ध घटना है। जीवन की सभी गहराइयां गया, आकाश खुला है। फिर तुम्हारे लिए जमीन की कोई पकड़ उसमें समाविष्ट हैं, और सभी ऊंचाईयां भी। पहले तो भक्त नहीं है।
छिपाता है अपने प्रेम को भीतर। प्रेम का वह अनिवार्य अंग है नृत्य में, गीत में, कीर्तन में, भजन में, डूबा हुआ भक्त ज्ञानियों कि हम उसे किसी को बताना नहीं चाहते। वह कोई तमाशा थोड़े से कहता है: तर दामनी पर शैख हमारी न जाइए-हमारे भीगे ही है! वह कुछ ऐसी बात थोड़े ही है जो दिखलाते फिरें। उसकी दामन पर मत जाइए। दामन निचोड़ दें तो फरिश्ते वजू करें। कोई प्रदर्शनी तो नहीं, कोई नुमाइश तो नहीं! उसे छिपाता है, उसे
यह शराब इस जगत की शराब नहीं—यह बेहोशी किसी और हीरे की तरह गांठ में बांधकर रखता है। कबीर कहते हैं : हीरा जगत की बेहोशी है। यह अपने भीतर किसी और जगत को पायो गांठ गठियायो। उसे बिलकुल गांठ में बांध लेता है, किसी निमंत्रण है। भक्त जब कीर्तन में परिपूर्ण लवलीन होता है तब को पता भी नहीं चले, कानों-कान खबर न हो। जीसस ने कहा भक्त नहीं रहता, भगवान ही होता है। तब वह केवल शून्य हो है, 'बाएं हाथ में हो तो दाएं हाथ को पता न चले।' सूफी फकीर गया होता है। और उस शून्य में उतर आती है परम मूर्छा। तुम कहते हैं, 'रात, आधी रात उठकर कर लेना प्रार्थना; तुम्हारी
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