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जिन सूत्र भाग: 1
करुणा उतनी ही है, जब कि तुम हो। तुम्हारा होना न होना कुछ फर्क नहीं लाता। तीर्थंकर की करुणा तुम्हारे और तीर्थंकर के बीच संबंध नहीं है— तीर्थंकर की दशा है; उसकी अवस्था है; उसका आनंदभाव है। वह तुम पर इसलिए करुणा नहीं कर रहा है कि तुम दुखी हो। उससे तुम्हारी तरफ करुणा बहती है क्योंकि वह आनंदित है। इस भेद को बहुत ठीक से समझ लेना । तुम्हारी जरूरत है, इसलिए नहीं देता है वह; उसके पास जरूरत से ज्यादा है, इसलिए देता है।
जीसस के जीवन में कहानी है, जो उन्होंने बहुत बार कही। एक बगीचे के मालिक ने सुबह - सुबह मजदूर बुलाए । अंगूरों का बगीचा था और जल्दी ही फसल को काट लेना था। मौसम बदला जाता था। सुबह जो मजदूर आये उन्होंने दोपहर तक काम किया। मालिक आया, उसने देखा । उसने कहा, इतने मजदूरों से शाम तक काम निपटेगा नहीं। तो भेजा अपने मुनीम को कि और मजदूर ले आओ। तो भर दुपहरी कुछ और मजदूर लाए गये। फिर आया मालिक। सांझ ढलने को थी । उसने कहा, इनसे भी काम न हो पायेगा; कुछ और बुला लाओ । तो सूरज ढलते-ढलते काम बंद होते-होते कुछ मजदूर आए। और जब रात्रि में उसने पैसे बांटे तो सबको बराबर दे दिये- जो सुबह आये थे उनको भी, जो दोपहर आये थे उनको भी, जो सांझ आये थे उनको भी । जिन्होंने दिनभर काम किया उनको भी, और जिन्होंने कुछ भी काम न किया था उनको भी। तो जो सुबह आये थे वे निश्चित नाराज हो गये । और उन्होंने कहा, 'यह अन्याय है। हम सुबह से आये हैं, दिनभर पसीना बहाया है। हमें भी उतना, और इन्हें भी उतना जो अभी-अभी आये और जिन्होंने कुछ भी नहीं किया, जिन्हें करने का मौका ही न मिला, क्योंकि सूरज ढल गया ?'
तो उस मालिक ने कहा, तुम्हें कम तो नहीं दिया है? उन्होंने कहा, 'नहीं, कम नहीं दिया है। जितनी मजदूरी मिलती, उससे ज्यादा ही दिया है। लेकिन अन्याय हो रहा है। इन्होंने तो कुछ भी नहीं किया।' तो उस मालिक ने कहा कि तुम अपनी फिक्र करो । | तुम्हें जितना मिलना था उससे ज्यादा मिल गया, तुम प्रसन्न नहीं हो। तुम इनसे तुलना मत करो। इन्हें मैं काम के कारण नहीं | देता; मेरे पास बहुत है, इसलिए देता हूं। मैं सबको बराबर दे रहा हूं। मेरे पास जरूरत से ज्यादा है। तुम्हारे काम के कारण
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इसलिए |
महावीर तुम्हें देते हैं तुम्हारे दुख के कारण नहीं मिला है उन्हें, खूब मिला है ! और उसको न बांटें तो वह बोझिल हो जाता है। उसे बांटना जरूरी है। अगर तुम न भी होओगे तो भी बांटेंगे। अगर तुम सुखी होओगे तो भी बांटेंगे ।
तो तुम्हारे दुख से तुम तीर्थंकर की करुणा को मत जोड़ना । तुमसे उसका कोई संबंध नहीं है। तीर्थंकर की करुणा का संबंध उसके अंतर - आनंद से है, सच्चिदानंद से है। वह अपनी आत्मा में रमा है और उसने इतना पा लिया है। और जो पाया है वह कुछ ऐसा है कि बांटो तो बढ़ता है, न बांटो तो घट जाता है। इसलिए तुम पर करुणा करके तीर्थंकर कुछ कर रहे हैं, ऐसा नहीं । आनंद -भाव में बांटते हैं- बांटने से बढ़ता है । जितना बांटते हैं, उलीचते हैं, उतना बढ़ता चला जाता है; उतने नये स्रोत खुलते चले जाते हैं। तो जब रोज-रोज नया-नया आनंद बरस रहा हो, बासे को कौन रखेगा ! तुम सांझ भोजन कर लेते हो, फिर बांट देते हो। लेकिन गरीब बासी रोटी को भी रख लेता है : कल काम पड़ेगी।
नहीं; मेरे पास है, इसलिए; मैं बोझ से दबा जीसस की कहानी बड़ी महत्वपूर्ण है ।
तुम बांटने से डरते हो, क्योंकि कल का पक्का नहीं है। और आज का अगर बांट दिया तो कल मिलेगा या नहीं ! लेकिन तीर्थंकर उस दशा में हैं जहां प्रतिपल अनंत बरस रहा है। तो जो इस क्षण बरसा है, उसे बांट ही देना है; क्योंकि दूसरे क्षण के लिए जगह खाली करनी है। अगर न बांटा तो बासा पड़ा रह जायेगा और बासे के कारण नये के आने में बाधा पड़ेगी । और अगर बासा बहुत इकट्ठा हो गया, उसकी राशियां लग गयीं तो नये के जन्म की कोई संभावना न रह जायेगी।
तो न तो तीर्थंकर का कृत्य कृत्य है, और न करुणाजन्य है – करुणापूर्ण है । इसलिए कोई बंध नहीं—न पाप का न पुण्य का। तीर्थंकर से बहुत कुछ होता है, लेकिन तीर्थंकर कुछ करता नहीं ।... सहजस्फूर्त; जैसे पक्षी गीत गाते हैं !
मिर्जा गालिब से कोई पूछा कि लोग आपकी कविताओं की बड़ी प्रशंसा करते हैं, लेकिन मेरी तो कुछ समझ में नहीं आतीं। और जो प्रशंसा करते हैं, मुझे शक है कि उनकी भी समझ में आती हैं! क्योंकि जब भी मैंने उनसे पूछा तो वे समझा न पाये, आप कुछ कहें।
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