Book Title: Jina Sutra Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 601
________________ किया, यह तो गौण बात है। अपना भोजन किया, यह महत्वपूर्ण बात है। आत्म-आहार किया। और आत्म-आहार से ऐसे भर गये कि भोजन कि जरूरत न रही। वह गौण बात है । तो तुमने कभी खयाल किया ! प्रेम के बहुत गहरे क्षणों में भूख नहीं लगेगी। कभी-कभी तुम चकित होओगे... एक महिला ने मुझे कहा... मैं यह बात कर रहा था। उसने सुनी, वह मुझसे मिलने आयी। उसने कहा कि एक बात आपसे कहनी है, मेरे | जीवन में अटकी रही है सदा से । उसकी सास की मृत्यु हुई सांझ | के वक्त । जैनों की 'अंथऊ' का समय। सूरज ढल गया, फिर भोजन तो हो नहीं सकता। सास मर गई बेवक्त । सासों के ढंग...! अब वह कोई ढंग का वक्त भी चुन सकती थी । दोपहर में मरती, रात मरती ठीक; अंथऊ के वक्त मर ! भोजन तो हो नहीं सका; पड़ा रह गया । और ऐसा भी नहीं कि इस बहू का अपनी सास से कुछ विरोध रहा हो - बड़ा लगाव था। तो उस समय तो कुछ खयाल नहीं आया, लेकिन जैसे रात बढ़ने लगी, उसकी भूख बढ़ने लगी। इधर रो भी रही । सास ने उसे अपनी बेटी की तरह रखा था, बहुत गौरव से रखा था। वह मर गयी तो दुख स्वाभाविक था । रो रही है, दुखी हो रही है। लेकिन पेट में भूख लग रही है ! और आधी रात भूख इतनी ज्यादा बढ़ गयी कि वह महिला चकित हुई। भूख इतनी बढ़ गयी कि उसे जाकर चोरी से अपने चौके में कुछ भोजन करना पड़ा। उसकी ग्लानि उसके मन में रह गयी। और यह जो महिला, जिसने मुझे यह कहा, वह आठ-आठ दस-दस दिन के उपवास कर लेती है; इसलिए उसे भी बड़ा चक्कर मालूम हुआ कि 'यह हुआ क्या ! मैं आठ-आठ दस-दस दिन उपवास कर लेती हूं और कभी भूख ने मुझे ऐसा नहीं सताया कि उपवास तोड़ना पड़ा हो ! और यह सास का मरना और इतना मेरा लगाव ! तो एक अपराध-भाव उसके मन में अटका रह गया। किसी को भी उसने कहा नहीं - अपने पति कभी नहीं कहा, क्योंकि वह भी दुखी होंगे यह बात सोचकर कि मेरी मां मर गयी और तूने रात चोरी से भोजन किया। उसने मुझे कहा और कहा कि आप किसी को कहना मत ! मुझे यह उलझन रह गयी है। मैं उससे कहा कि इससे विपरीत भी तुझे कभी हुआ ? कभी आनंद के क्षण में, भूख न लगी हो ? उसने कहा, 'हां, यह भी Jain Education International साधु का सेवन: आत्मसेवन मुझे हुआ | आप भी जब मेरे घर में आते हो तो मैं भोजन नहीं कर पाती। मैं इतनी प्रसन्न हो जाती हूं कि वर्ष में आप दो दिन के लिए आते हो, कि दो दिन मैं भोजन नहीं कर पाती; बस ऐसे ही चाय इत्यादि से काम चल जाता भूख ही नहीं लगती, ऐसा कुछ भरापन मालूम होता है।' जब भी तुम आनंदित होओगे, तुम हैरान हो जाओगे कि पेट भरा है! तुम इतने भरे हो, इतने भीतर भरे हो कि पेट का खालीपन पता न चलेगा। प्रेम के बहुत गहरे क्षणों में भूख न लगेगी। दुख के क्षणों में भूख लगेगी। दुख में तुम एकदम खाली हो जाओगे। दुख में न केवल पेट खाली हो जायेगा, आत्मा भी खाली हो जायेगी। इसलिए अकसर जिसने तुम्हारे जीवन को बहुत गहराई से भरा था, अगर वह मर जायेगा तो तुम्हें तत्क्षण भूख लगेगी। बेचैनी होगी तुम्हें यह सोचकर कि यह कोई वक्त है भूख लगने का । क्योंकि भोजन को तो हम उत्सव मानते हैं। दुख में तो कोई भोजन करता नहीं । पास-पड़ोस के लोगों को भोजन बनाकर लाना पड़ता है खिलाने अगर कोई मर जाये किसी के घर में; क्योंकि वह अपना चूल्हा जलाये तो वह भी तो अशुभ मालूम पड़ता है। यह कोई वक्त है! किसी का पति जल गया हो और वह चूल्हा जलाकर भोजन बना रही ! चूल्हा नहीं जलता दिनों तक । लेकिन जब कोई निकटतम तुम्हारा मर जायेगा, तो न केवल तुम्हारा शरीर खाली हो गया, उसने तुम्हारी आत्मा के भी एक हिस्से को घेरा था, वह भी खाली हो गया। और खालीपन ऐसा मालूम होगा कि लगेगा कुछ भोजन कर लो। कल ही एक संन्यासी ने मुझे कहा, कि विपस्सना का दस दिन प्रयोग करने के बाद, दसवें दिन, आखिरी दिन, उसे ऐसा लगा कि शरीर से आत्मा अलग हो गयी है। कोई आधी रात के वक्त, वह घबड़ा गया! यह अनुभव इतना प्रगाढ़ था और इतना साफ था कि मैं आत्मा से अलग हूं, कि उसे लगा कि अब मौत होने के करीब है । और जो पहली बात उसे याद आयी वह यह कि कुछ खाओ, जल्दी कुछ खाओ। जो कुछ भी उसे मिल सका आधी रात... होटल में रहता है... आधी रात जो कुछ भी मिल सकता है जगाकर, कुछ भी, उसने जल्दी अपना पेट भर लिया। उसने कल मुझे कहा कि यह मैंने कुछ गलत तो नहीं किया है? क्योंकि करने के बाद मुझे ऐसा लगा कि कुछ भूल हो गयी। क्योंकि वह For Private & Personal Use Only 591 www.jainelibrary.org

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