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सिवनः आत्मसेवन
महावीर कह रहे हैं:
नहीं। भेजने की कोई जरूरत नहीं। भेजेंगे सात दिन बाद। सात दसणाणचरित्ताणि, सेविदव्वाणि साहुणा णिच्चं।
दिन बाद तू आना, फिर इसको पढ़ लेना। अगर तू सात दिन बाद वही है साधु, वही है साहु, जो नित्य सेवन कर रहा है दर्शन, कहे कि भेजना है तो भेज देंगे। उस आदमी ने कहा, ठीक है। ज्ञान, चरित्र का। जो कल पर नहीं छोड़ रहा है; जो अभी और कोई हर्जा नहीं। वह सात दिन बाद आया, उसने पत्र देखा। उसे यहीं जी रहा है; जिसने भविष्य के साथ नाते तोड़ लिए। भविष्य भरोसा ही न आया कि मैं और ऐसा पत्र लिख सकता हूं। के साथ जिसका नाता है, वही गृहस्थ। क्योंकि गृहस्थ का अर्थ सात दिन में आग सब ठंडी हो गयी, अंगारे बुझ गये। दी गयी है: वासना, कामना; कल भोगेंगे। और गृहस्थ की भूल यही है | गालियां उतनी महत्वपूर्ण न मालूम पड़ीं। उत्तर व्यर्थ मालूम कि कल आएगी मौत, तुम भोग न पाओगे। तुम कल पर टालते पड़े। वह आदमी तो पागल मालूम ही पड़ा। अपना पत्र देखा तो जाओगे, एक दिन मौत आ जायेगी। तुम्हारा सब टाला हुआ, उसने कहा, यह मेरा भी दिमाग खराब है। इसको जवाब नहीं टाला हुआ रह जायेगा।
देना, मेरे दिमाग के लिए कुछ उपाय बताओ, इस तरह की बातें महावीर इतना ही कह रहे हैं कि शुभ को टालना मत, स्थगित मेरे मन में उठती हैं। अच्छा ही हुआ, उस आदमी ने कहा कि मत करना; जब शुभ का भाव उठे, तत्क्षण भोग लेना। उसने यह पत्र लिखा। उसके पत्र के बहाने मुझे मेरी आत्मा के
अशुभ को टालना; क्योंकि टल जाये तो अच्छा। अशुभ को दर्शन तो हो गये थोड़े कि यह सब मेरे भीतर भरा पड़ा है। कल पर छोड़ना!
| मैं तुमसे कहता हूं अगर क्रोध को तुम कल पर टाल दो तो उसी मेरे देखे ऐसा है कि अगर तुम अशुभ को कल पर छोड़ो तो तरह टल जायेगा, जैसे करुणा अभी तक टलती आयी है।। उसी तरह अशुभ न हो पायेगा जैसे अभी शुभ नहीं हो पा रहा है। अशुभ को अगर तुम कहो, करेंगे भविष्य में, तो अशुभ भी कल पर छोड़ा, होता ही नहीं। तुम जरा करके देखो! कोई तुम्हें | उसी तरह विदा हो जायेगा तुम्हारे जीवन से जैसे शुभ विदा हो गाली दे, तुम कहो कि चौबीस घंटे बाद क्रोध करेंगे। अगर तुम | गया है। कर लो चौबीस घंटे बाद क्रोध तो चमत्कार है। हो नहीं सकता। महावीर कहते हैं, साधु वह है जो दर्शन, ज्ञान और चरित्र का चौबीस घंटे! चौबीस क्षण तो रुको, क्रोध असंभव हो जायेगा। । अभी पालन कर रहा है, अभी सेवन कर रहा है। और 'पालन'
अब्राहम लिंकन के जीवन में उल्लेख है, एक आदमी, मित्र से 'सेवन' शब्द ज्यादा बेहतर है, क्योंकि पालन में ऐसा लगता उनका, बड़ा क्रोधित आया। किसी ने उसको पत्र लिखा था और है कि कुछ चेष्टा करके आयोजन करके अपने को बांध रहा है; बड़ी ऊलजलूल बातें लिखी थीं। लिंकन ने कहा, 'बैठो इसी कोई अनुशासन। 'सेवन' में ऐसा लगता है: कुछ अनुभव में वक्त जवाब दो। और दिल खोलकर जवाब दो! डरने की आ रहा है, उसको भोजन बना रहा है; उसको अपने रक्त, जरूरत नहीं है। मैं तुम्हारा मित्र भी हूं, तुम्हारा वकील भी हूं। मांस-मज्जा में मिला रहा है। यह हद्द हो गयी! लिखो दिल खोलकर! जो भी गालियां तुम्हें । 'निश्चय-नय से इन तीनों को आत्मा ही समझना चाहिए। ये लिखनी हैं, लिख डालो पूरा।' वह आदमी भी थोड़ा चौंका! तीनों आत्मरूप ही हैं।' ऐसा उसने सोचा ही न था कि लिंकन यह कहेंगे। पर वह बैठ ये अलग-अलग नहीं हैं। यह जैनों की त्रिवेणी है या त्रिमूर्ति। गया लिखने। दिल तो भरा था। दिल खोलकर उसने गालियां क्योंकि ईश्वर का तो कोई भाव जैनों के पास नहीं है। सम्यक दीं। लिंकन उसे उकसाता था, उकसावा देते रहे कि तू डर मत, ज्ञान, सम्यक दर्शन, सम्यक चारित्र्य-ये उनके शिव, ब्रह्मा, लिख, सब लिख डाल! सब मवाद निकाल दे! कागज पर विष्णु हैं। यह उनकी त्रिमूर्ति है। यह उनकी ट्रिनिटी है। और ये कागज, उसने गालियां और ऊलजलूल बातों के सब उत्तर दे। तीनों आत्मा के ही तीन रूप हैं। ये तुम्हारे होने की शुद्धता में डाले। और जब वह पूरा लिखकर उसने हलकी सांस ली, प्रगट होते हैं। ये आत्मा ही हैं। लिंकन ने कहा, ला अब यह पत्र मुझे दे दे। उसने कहा, पता तो ___ 'अतः निश्चय से आत्मा का सेवन ही उचित है।' लिख देने दो। तो उसने कहा, पता लिखने की कोई जरूरत | यह बड़ा अदभुत वचन है। अपना ही भोजन उचित है। अपना
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