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जिन सूत्र भाग
न मित्र होंगे, न संगी-साथी, न पति-पत्नी, न बेटे-बेटियां, कोई यह नैसर्गिक जीवन का हिस्सा है। यह किसी से ली नहीं गयी, भी न होगा। मौत में तो तुम अकेले प्रवेश करोगे। सब छुट किसी से छीनी नहीं गई, किसी को दी नहीं जा सकती। जब तुम जायेगा जो दूसरों पर निर्भर था। जो दूसरों ने दिया था वह दूसरे अपने घर लौट आते हो और परम शांति में लीन होते हो, तो वापिस ले लेंगे। तुम कोरे के कोरे रह जाओगे। बुरी तरह डूबेगी अचानक तुम पाते हो शक्ति का आविर्भाव हुआ है! लेकिन यह यह नाव!
शक्ति तम्हारी नहीं है। क्योंकि तम तो अशांति के साथ ही चले इसलिए मैं शक्ति की कोई शिक्षण, शक्ति का कोई स्वरूप, गये। यह शक्ति परमात्मा की है। शक्ति की कोई रूप-रेखा तुम्हें नहीं देता हूं। शांति! वही पाने तुम मुझे ऐसा कहने दोः परमात्मा के अतिरिक्त और कोई योग्य है। जो खोया न जा सके, बस वही पाने योग्य है। शक्तिशाली नहीं है। और परमात्मा के अतिरिक्त और कोई
पर तुम्हें अड़चन हुई है, यह भी मैं समझता हूं। तुम अगर शक्तिशाली हो भी नहीं सकता। वस्तुतः परमात्मा के अतिरिक्त शक्ति ही खोजने आये थे...जैसा लोग आते हैं। लोग तो किसी को स्वयं को 'मैं' कहने का अधिकार नहीं है। यह तो सत्पुरुषों के पास भी चमत्कार के लिए ही जाते हैं। लोग तो वहां कामचलाऊ है। हम उपयोग करते हैं 'मैं'; लेकिन 'मैं' तो भी शक्ति का ही कोई तमाशा देखना चाहते हैं। लोगों की आंखें वही कह सकता है जो शाश्वत है। हमारे 'मैं' का भरोसा बाजार से इतनी भर गयी हैं कि जब वे मंदिर में भी आते हैं तो क्या? घडीभर तो टिकता नहीं! क्षणभर तो टिकता नहीं! अभी बाजार को अपने साथ ले आते हैं।
कुछ, अभी कुछ! पानी पर खींची लकीर है! नहीं, यहां तो उन लोगों के लिए ही सुविधा है जो बाजार से सब तुम जब मिटते हो...और तुम उसी समय मिट जाते हो जब भांति जागकर आये हैं। कम से कम इतनी जाग तो लेकर आये हैं तुम अशांति के रास्ते पर चलना छोड़ देते हो; अर्थात जब तुम कि यह शक्ति की दौड़ व्यर्थ है। अब चलो, दूसरी यात्रा पर शक्ति की खोज छोड़ देते हो, तुम बिखरने लगते हो। इसीलिए निकलें! शांति की यात्रा!
बेचैनी है। संसार की पूरी यात्रा शक्ति की यात्रा है—बहाने कुछ भी हों। 'खोपड़ी बड़ी उद्विग्न है', प्रश्नकर्ता ने पूछा है। ‘परेशान हूं। कोई धन इकट्ठा करता है। उससे भी पूछो, धन क्यों इकट्ठा करता आया था शक्ति खोजने, यहां मिली शांति। चाहता था प्रभुता, है? धन से शक्ति आती है। एक-एक रुपये में भरी है शक्ति। यहां मिली शून्यता।' कोई ज्ञान इकट्ठा करता है। उससे पूछो, क्यों? तो ज्ञान से शून्यता द्वार है प्रभु का। तुम अगर शून्य होने को राजी हो गये शक्ति आती है। कोई राज-पदों पर पहुंचने के लिए आतुर है, तो तुम्हें प्रभु होने से कोई भी रोक न सकेगा। और अगर तुम उससे शक्ति आती है। संसार में हम वही करते हैं जिससे शक्ति शून्य होने को राजी न हुए और तुमने प्रभुता की तलाश की, तो आती है।
तुम भिखमंगे रहोगे, तुम सूने के सूने रहोगे, खाली के खाली तो अगर संक्षिप्त में कहें, तो संसार है शक्ति की दौड़। बहाने रहोगे। इस विरोधाभास को अपने हृदय में बहुत गहरे बैठ जाने अलग-अलग होंगे। फिर शक्ति की दौड़ से जो जागने लगा, | देना, क्योंकि यह जीवन का आत्यंतिक गणित है। जिसने उसकी व्यर्थता देखी, वही धर्म की यात्रा पर निकलता है। | जीसस ने कहा है जो अपने को बचाएंगे वह मिट जायेंगे; यह यात्रा अंतर्यात्रा है और यहां शांत होते जाना है।
और जो अपने को मिटाने को राजी हैं उन्हें कोई भी मिटा नहीं शक्ति की दौड़ का एक ही परिणाम होता है-अशांति। अब सकता। लाओत्सु ने कहा है : जो जीतने की यात्रा पर निकलेंगे, तुमसे मैं एक बड़ी विरोधाभासी बात कहना चाहता हूं: शक्ति की एक दिन हारे हुए पाये जाएंगे; और जो हारने को राजी है, उसे दौड़ का एक ही परिणाम होता है-अशांति; और शांति की दौड़ कोई हरानेवाला नहीं। का एक ही परिणाम है-शक्ति। लेकिन वह तुम्हारी कामना के गुंचा फिर लगा खिलने कारण नहीं। शांत व्यक्ति शक्तिशाली हो जाता है। पर यह आज हमने अपना दिल शक्ति बड़ी और है! यह शक्ति उद्विग्नता नहीं है-स्वभाव है। खू किया हुआ देखा
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