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HARIHANNEL तुम्हारी संपदा-तुम हो BRAREL
चाहता है, उसे लेने को शिष्य राजी हो जाए तो ही शिष्य है। जा सकता है।
तुम अपनी मांग लेकर मेरे पास मत रहना। अन्यथा तुम्हारी खयाल किया तुमने! बड़े से बड़े शक्तिशाली की शक्ति छिन मांग मेरे और तुम्हारे बीच दीवाल की तरह खड़ी रहेगी। जब मेरे सकती है-छीनी जा सकती है। पास ही हो तो यही कह दो कि अब तुम ही यह भी तय करो कि नेपोलियन हार गया अंत में तो उसे सेंट हेलेना के एक छोटे-से क्या ठीक है। इसका नाम ही समर्पण है।
द्वीप में कारागृह में डाल दिया गया। सम्राट था। सारे जगत को समर्पण का यह अर्थ नहीं है कि तुम कुछ मांगने आये हो; जीतने चला था। आखिरी नतीजा यह हुआ कि कारागृह में समर्पण करने से मिलेगा, इसलिए समर्पण करते हो। नहीं, पड़ा। द्वीप पर उसे चलने-फिरने की स्वतंत्रता थी। छोटा-सा समर्पण का अर्थ है: तुम अपनी मांग, तुम अपना मन सब द्वीप था। वह पूरा द्वीप ही कारागृह था। इसलिए कहीं भागने का समर्पण करते हो।
| तो कोई उपाय न था। पहले ही दिन वह सुबह-सुबह घूमने तुम कहते हो, 'अब मेरी कोई मांग नहीं; अब मेरा कोई मन निकला। एक पगडंडी से गुजर रहा है। एक स्त्री घास का गट्ठर नहीं; अब जो मर्जी हो! अब जो उस पूर्ण की मर्जी हो, वह होने लिए सिर पर आती है। तो नेपोलियन का जो चिकित्सक दो! अब मैं यह न कहूंगा कि मेरी मर्जी पूरी हो।'
है-उसे एक चिकित्सक दिया गया था क्योंकि वह बीमार था, मेरी मर्जी पूरी हो, यही अधार्मिक आदमी का लक्षण है। परेशान था, उसकी रक्षा के लिए-वह चिकित्सक चिल्लाकर
गुरजिएफ कहता था, तथाकथित धार्मिक लोग अकसर तो कहता है उस घसियारिन से कि 'हट, तुझे पता है कौन आ रहा धर्म-विरोधी हैं। उसने तो यहां तक कहा कि जिनको तुम धर्म है! रास्ता छोड़!' लेकिन नेपोलियन स्वयं रास्ता छोड़कर कहते हो वह सभी ईश्वर-विरोधी हैं। क्योंकि उनके पीछे वही | किनारे खड़ा हो गया और उसने कहा कि तुम भूल करते हो। वे आकांक्षाएं हैं; अपनी मर्जी पूरी करने के इरादे हैं।
दिन गये जब नेपोलियन के लिए पहाड़ हट जाते थे। अब तो तुम ईश्वर को भी संचालित करना चाहते हो-अपनी मर्जी घसियारिन भी न हटेगी। अब तो मुझे ही हट जाना उचित है। से! तुम उसे अपने पीछे चलाना चाहते हो। और ईश्वर केवल घसियारिन कम से कम स्वतंत्र तो है, मैं कैदी हूं! मेरी कोई उन्हीं के साथ चल पाता है जो उसके पीछे चलने को राजी हैं। हैसियत नहीं उसके सामने।।
सत्य को अपने पीछे खडा करने के लिए तो बहत से लोग नेपोलियन की शक्ति छिन जाती है। सम्राट दीन और दरिद्र हो उत्सुक हैं। सत्य के पीछे खड़ा होने को जो उत्सुक होता है वही जाते हैं। जो छिन जाती है, जिस पर दूसरों का कब्जा हो सकता शिष्य है। उसने ही सीखना शुरू किया।
है, जो परतंत्र है-उसका क्या मूल्य ? वह नाव बड़ी छोटी है। तो अब आ ही गए हो तो तुम जो कुछ सीखकर आये हो तुमने खयाल किया ः शक्ति के लिए दूसरों की जरूरत है! जिंदगी से, वह तुम्हारे काम नहीं पड़ेगा। जिंदगी में ही काम न | अगर नेपोलियन को जंगल में अकेला छोड़ दो, उसके पास कोई पड़ा। जो नाव नदी-नाले में काम न आयी उसको लेकर तुम शक्ति नहीं है। प्रधानमंत्रियों को, राष्ट्रपतियों को जंगल में सागर में उतर रहे हो? जो नाव नदी-नालों में डुबाने लगी थी, अकेला छोड़ दो, उनके पास कोई शक्ति नहीं है। शक्ति के लिए उसको लेकर तुम सागर में उतरने का आयोजन कर रहे हो? फिर भीड़ चाहिए। शक्ति के लिए वे लोग चाहिए जिन पर शक्ति डुबो, तो परेशान मत होना!
| आरोपित की जा सके। लेकिन शांति तो अकेले में भी तुम्हारी निश्चित ही डूबोगे, क्योंकि सागर के विराट का तुम्हें बोध है; अकेले में और भी ज्यादा तुम्हारी है। उसे तुमसे कोई छीन नहीं। सागर में शक्ति की नाव मत चलाना; वह कागज की नाव नहीं सकता, क्योंकि वह किसी पर निर्भर नहीं है। ठेठ हिमालय है। वह अहंकार की नाव है; बुरी तरफ डूबोगे! कूल-किनारा न के एकांत में भी शांति तुम्हारी होगी; तुम्हारे साथ जाएगी। मिलेगा। बहुत तड़फोगे, परेशान होओगे। वहां तो शांति की जो एकांत में भी तुम्हरे साथ हो, वही तुम्हारी संपदा है। और नाव चलाना। क्योंकि शक्ति की सीमा होती है। शांति की कोई | जो दूसरों पर निर्भर होती हो, उसे तुम एकांत में न ले जा सको, तो सीमा नहीं। शक्ति को छीना जा सकता है, शांति को छीना नहीं मृत्यु के पार कैसे ले जा सकोगे? वहां तो तुम अकेले जाओगे।
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