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बनो। इतना भी मत कहो कि यह पीपल का वृक्ष है। यह भी मत न रहा। तुम खयाल रखना, दूध ही अशुद्ध नहीं होता, पानी भी कहो कि यह गुलाब की झाड़ी है। यह भी मत कहो कि गुलाब अशुद्ध हो गया। तुम दूध को कहते हो अशुद्ध हो गया, पानी को कितने सुंदर हैं। यह भी मत कहो कि अहा, कितने प्यारे फूल नहीं कहते; क्योंकि पानी तो मुफ्त मिलता है, इसलिए कोई चिंता खिले हैं! ऐसा मन में कुछ भी मत कहो। क्योंकि ये सब नहीं है, कोई आर्थिक सवाल नहीं उठता। तुम कहते हो, दूध नय-पक्ष हैं; ये सब तुम्हारी मान्यताएं हैं।
अशुद्ध हो गया। लेकिन दूसरी बात भी खयाल रखना, पानी भी गुलाब का फूल तो बस गुलाब का फूल है-न सुंदर, न अशुद्ध हो गया है। अगर किसी क्षण शुद्ध पानी की जरूरत हो, असुंदर। सुबह तो बस सुबह है। सब वक्तव्य तुम्हारे हैं; सुबह । तब तुम समझोगे कि अरे, यह तो पानी भी अशुद्ध हो गया, दूध तो अवक्तव्य है। उसके बाबत तो कोई वक्तव्य नहीं हो सकता। मिला दिया! मिलावट अशुद्धि है। अनिर्वचनीय है। सब वचन तुम्हारे हैं। तुम अपने को हटा लो। तो जब तुम अस्तित्व में मिलावट करते हो, जब तुम कुछ तुम कुछ कहो ही मत। तुम सक्रिय बनो ही मत। तुम सिर्फ सुबह डालते हो, उंडेलते हो, जब तुम दूध में पानी डाल देते हो, तब को देखते रह जाओ। ऊगता है सूरज, ऊगने दो। वृक्षों में हवा सब अशुद्ध हो जाता है—तुम भी, अस्तित्व भी। जब तुम खड़े सरसराती है, सरसराने दो। तुम शब्द न दो। तुम शब्द को मत रह जाते हो-तटस्थ, साक्षी; यहां अस्तित्व, यहां तुम; दो बनाओ। तुम शब्द से रिक्त और शून्य देखते रहो, देखते रहो। दर्पण एक-दूसरे के सामने, बिना कुछ डाले हुए—तब दो धीरे-धीरे, धीरे-धीरे-धीरे अभ्यास घना होगा। कभी ऐसा क्षण शुद्धियों का साक्षात्कार होता है। आ जायेगा, एक क्षण को भी, कि तुम सिर्फ देखते रहे और इस साक्षात्कार की अवस्था को महावीर कहते हैं समयसार। तुम्हारे भीतर डालने को कुछ भी न था। तुमने कुछ भी न डाला | और जब तक यह न हो जाये तब तक तुम्हारी जिंदगी नाममात्र को अस्तित्व में, तुम सिर्फ खड़े देखते रहे, दर्शक, द्रष्टा-मात्र, जिंदगी है, अशुद्ध है, कुनकुनी जिंदगी है। इसमें ज्वाला न जिसको महावीर कहते हैं ज्ञायक-मात्र—सिर्फ देखते रहे! उस होगी। इसमें प्रकाश...यह ज्योतिर्मय न होगी। इसमें आनंद के घड़ी में एक झरोखा खुलता है। पहली दफा अस्तित्व तुम्हारे फूल न लगेंगे, न प्रसाद होगा। सामने अपने रूप को प्रगट करता है। पहली बार तुम उसे देखते जीस्त है किसी मुफलिस का चिरागखाना हो, जो है। क्योंकि पहली बार तुम कुछ जोड़ते नहीं, मिलाते उसने सीखा ही नहीं खुलके फुरोजां होना। नहीं, तुम कुछ डालते नहीं। तुम भी शुद्ध होते हो उस घड़ी में नहीं, जिंदगी तो किसी गरीब का चिराग नहीं है। लेकिन हम
और अस्तित्व भी शुद्ध होता है। दो शुद्धियां एक-दूसरे का | सबने जिंदगी को गरीब का चिराग बना दिया है। यह खिलकर साक्षात्कार करती हैं। इसे महावीर कहते हैं समयसार। | जल ही नहीं पाता, यह खुल के प्रज्वलित नहीं हो पाता। यह
तुमने कभी खयाल किया। दूधवाला दूध में पानी मिला लाता | इसकी ज्योति ज्योति ही नहीं बन पाती-बुझी-बुझी, है; तुम कहते हो अशुद्ध कर दिया। तुमने इस पर कभी विचार बुझी-बुझी, टिमटिमाती! किया कि उसने शुद्ध पानी मिलाया हो तो? अशुद्ध क्यों कह रहे | जीस्त है किसी मुफलिस का चिरागखाना हो? वह कहेगा कि हमने तो दोहरा शुद्ध कर दिया-शुद्ध पानी उसने सीखा ही नहीं खुलके फुरोजां होना शुद्ध दूध, दोनों को मिलाया; अशुद्धि तो कुछ मिलायी नहीं है। नहीं, जिंदगी तो किसी गरीब का चिराग नहीं है। लेकिन हम पानी भी शुद्ध था, प्राशुक था। दूध भी शुद्ध था। अशुद्धि कैसे सबने जिंदगी को गरीब का चिराग बना दिया है। क्योंकि हमने कह रहे हो, किस कारण कह रहे हो? फिर भी तुम कहोगे, दूध जिंदगी को मौका ही नहीं दिया। हमने जिंदगी पर इतनी शर्ते लगा अशुद्ध है।
दी हैं। हमने जिंदगी पर इतने अवरोध खड़े कर दिये हैं, हमने अशुद्धि का कारण यह नहीं कि तुमने अशुद्धि मिलायी। दो | जिंदगी की ज्योति के आसपास इतने पक्ष-विपक्ष, धारणाएं, शुद्धियां भी मिला दो तो अशुद्धि का परिणाम आता है। अशुद्ध | मान्यताएं, विचार, ऐसा घेरा बांध दिया है, किला खड़ा कर दिया कहने का इतना ही अर्थ है कि दूध अब दूध न रहा और पानी पानी है, ईंट पर ईंट रख दी है विचारों और पक्षों की, कि जिंदगी की
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