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जिन सूत्र भागः1
लपट उठे कैसे, प्रगट कैसे हो?
एक मेहमान के पीछे दूसरा चला आता है। रिश्तेदारों के जिसे तुम अभी टिमटिमाता हुआ दीया जानते हो, वही महावीर | रिश्तेदार! में प्रज्वलित सूर्य होकर जला है। वही जीवन! वही कबीर ने मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन के घर एक दफा एक आदमी कहा है कि एक सूरज, एक सूरज कहने से न हो सकेगा; जिस आया पास के गांव से और एक बतख दे गया। कहा कि गांव के दिन मैं जागा, हजार-हजार सूरज मेरे भीतर एक साथ जल उठे। तुम्हारे मित्र ने भेजी है। मुल्ला बड़ा खुश हुआ। उसने उस प्रकाशमयी दशा के लिए कोई उपमा खोजना मुश्किल है। बतख...उसने कहा कि रुको, शोरबा तो पीते जाना। उसने हजार-हजार सूरज भी कम पड़ते हैं, क्योंकि सूरज तो एक न एक शोरबा बनवाया, मित्र को पिलाया और कहा कि कभी भी आओ दिन चुक जाएंगे। सभी सूरज चुक जाते हैं। यह हमारा सूरज तो जरूर आना। कोई दो-तीन दिन बाद एक दूसरा आदमी भी, वैज्ञानिक कहते हैं, चार हजार सालों में ठंडा हो जायेगा। आया। मुल्ला ने पूछा, आप कौन हो? उसने कहा, कि जो इसका ईंधन चुकता जा रहा है। आखिर कब तक जलता बतख लाया था उसका मैं मित्र हूं। कोई बात नहीं, मित्र के मित्र रहेगा? सब ईंधन की सीमा है। कितना ही बड़ा हो, करोड़ों हो तो भी मित्र हो। उसको भी उसने भोजन करवाया, साल जले तो भी एक सीमा आती है और चुक जायेगा। सांझ खिलवाया-पिलवाया। यह तो सिलसिला अंतहीन होने लगा। दीया जलाया, सुबह बुझ जायेगा; फिर रात कितनी ही लंबी होः फिर दो-तीन दिन बाद एक आदमी आ गया। उसने कहा, मित्र लेकिन भीतर का दीया कुछ ऐसा है कि वह ज्योति शाश्वत है। के मित्र का मित्र। ऐसे यह संख्या बढ़ने लगी। तो मुल्ला बहुत हजारों सूरज जलते हैं और बुझ जाते हैं और उस भीतर की घबड़ा गया। दो-तीन महीने में तो मुल्ला बहुत घबड़ा गया कि ज्योति का कभी बुझना नहीं होता। इसलिए हजार सूरज का यह तो एक बतख क्या भेजी, यह तो सारा गांव आये जा रहा है! प्रतिमान भी छोटा है। लेकिन छोड़ो सूरज की तो बात दूर, हम तो उसने कहा, कुछ करना पड़ेगा। फिर एक आदमी आ गया अपने भीतर के दीये को टिमटिमाता दीया भी नहीं कह सकते। दो-चार दिन बाद। अब तो बहुत संख्या आगे हो गयी ज्योति मालूम ही नहीं पड़ती।
| थी-मित्र के मित्र, मित्र के मित्र। काफी लंबी शृंखला हो गयी अनेक लोग सुनकर सुकरात की बात, कि महावीर की बात, थी। उसने कहा, अब कुछ बताने की जरूरत नहीं, ठीक है। कि बुद्ध की, कि कृष्ण की बात भीतर जाने की चेष्टा करते हैं। उसने पत्नी से कहा, सिर्फ गर्म पानी बना दे, कुछ और बनाना क्योंकि ये सभी लोग कहते हैं, जानो अपने को! आंख बंद करके मत। गर्म पानी लेकर उसको पीने को दिया। कहा, बतख का भीतर जाने की कोशिश करते हैं, जल्दी से बाहर लौट आते हैं; शोरबा है। उसने चखा, उसने कहा, यह तो सिर्फ गर्म पानी क्योंकि अंधेरा ही अंधेरा मालूम पड़ता है। और ये सब तो कहते मालूम होता है; इसमें बतख तो कहीं दिखाई नहीं पड़ती। उसने हैं, बड़ा ज्योतिर्मय लोक है!
कहा कि खाक दिखाई पड़ेगी, यह शोरबे के शोरबा का शोरबा नहीं, अभी तुम भीतर न जा सकोगे। अभी तो तुमने बाहर को का शोरबा...सिर्फ पानी बचा है अब! भी शुद्ध आंख से नहीं देखा। अभी तो तुमने क ख ग भी नहीं विचार से और विचार निकल आते हैं। पहला विचार ही व्यर्थ पढ़ा जीवन के सत्य का।
था, दूसरा और भी व्यर्थ होता है। तीसरा और भी व्यर्थ होता है। इसलिए महावीर का पहला सूत्र कहता है: जो सब नय-पक्षों | अंत में तुम्हारे पास विचारों की भीड़ लग जाती है, जिनमें से रहित वही समयसार है। और अगर ऐसा न किया तो एक पक्ष | सार्थकता कुछ भी नहीं होती। में से दूसरा पक्ष निकलता जाता है। जैसे एक वृक्ष में अनेक | मिलते गये हैं मोड़ नए हर मुकाम पर शाखाएं निकलती हैं। फिर एक शाखा में अनेक उपशाखाएं बढ़ती गई है दूरी-ए-मंज़िल जगह-जगह। निकलती हैं ऐसा तुमने अगर एक पक्ष बनाया तो जल्दी ही तुम | और एक-एक मोड़ नए मोड़ ले आता है और तुम बढ़ते जाते पाओगे, तुम बहुत पक्षों से घिर गये। एक मेहमान को घर हो, और मंजिल दूर होती जाती है। और जितने तुम चलते जाते लाओगे, जल्दी ही पाओगे मेहमानों की भीड़ लग गई; क्योंकि | हो विचारों में उतने ही तुम अपने से दूर होते जाते हो, क्योंकि वही
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