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जिन सूत्र भाग: 1
तो तुम रोओगे कैसे? अगर मैं पास होऊं और तुम्हें जब चाहिए तब मिल जाऊं, तो फिर आंसू कब बहाओगे ? याद कैसे करोगे ? यह भी उपाय है।
बहुतों को मैंने अपने प्रेम में डाला और फिर धीरे-धीरे दूर हट गया। दूर हट जाना उपाय है। क्योंकि प्रेम अगर दूर हट जाने से मर जाये तो प्रेम न था। और दूर हट जाने से अगर प्रेम और गहन हो जाये तो भक्ति बनने में ज्यादा देर नहीं।
भगवान दिखाई नहीं पड़ता; न तुम उसे छू सकते हो, न उससे बोल सकते हो। प्रेमी दिखायी पड़ता है, छुआ जा सकता है, बोला जा सकता है। अगर मैं तुम्हारे पास ही रहूं तो तुम्हारा प्रेम, प्रेम ही रह जायेगा। मुझे तुमसे दूर हटना होगा। इतना दूर हटना होगा कि मैं भी करीब-करीब अदृश्य हो जाऊं। अगर प्रेम फिर भी बच सका तो तुम पाओगे कि प्रेम ने धीरे-धीरे एक रूपांतरण लिया। वह अदृश्य का, अज्ञात का प्रेम बनने लगा ! वही भक्ति है। धीरे-धीरे मेरी याद, मेरी याद न रह जायेगी। धीरे-धीरे मैं भी एक बहाना हो जाऊंगा । उस बहाने से परमात्मा की ही याद तुममें प्रवाहित होने लगेगी।
प्रेम का दिन भी होता है, प्रेम की रात भी होती है। अगर प्रेम का दिन ही दिन हो, सुख ही सुख हो और प्रेम की पीड़ा न हो, तो प्रेम छिछला रह जाता है, गहरा नहीं होता। पीड़ा के बिना कोई भी चीज जगत में गहरी नहीं होती।
सुख बड़ा ऊपर-ऊपर है, दुख बड़ा गहरा है। सुख की कहीं गहराई होती है? वह तो पानी के ऊपर-ऊपर की लहरें हैं। दुख की गहराई होती है। इसलिए दुख तुम्हारे हृदय को जितना गहरा छूता है उतना सुख कभी नहीं छू पाता । सुखी आदमी को तुम हमेशा छिछला पाओगे। दुखी आदमी के जीवन में एक गहराई होती है।
और धन्यभागी हैं वे, जो प्रेम के कारण दुखी हैं ! क्योंकि कारण पर बहुत कुछ निर्भर करेगा । कोई इसलिए दुखी है कि धन नहीं मिला। धन मिलकर ही बहुत गहराई नहीं मिलती, तो धन के न मिलने से क्या खाक गहराई मिलेगी ? उसका दुख व्यर्थ के लिए है। कोई इसलिए रो रहा है कि पद नहीं मिला । धन्यभागी हैं वे जो इसलिए रो रहे हैं कि प्रेम एक खाली जगह छोड़ गया है ! उस खाली जगह को अपना पूजागृह बनाओ। प्रेम ने जहां हृदय को छुआ है और पीड़ा को जगाया है, उस पीड़ा को अपने से
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विपरीत मत समझो - उसके साथ बहो, उसको स्वीकार करो ! वह पीड़ा तुम्हें मांजेगी। वह पीड़ा तुम्हें निखारेगी। वह पीड़ा अग्नि की तरह सिद्ध होगी और तुम्हारा स्वर्ण कुंदन बनेगा। सुबह तेरी है तो ऐ खालिके-सुबह ! रात है किसकी करम फर्माई ?
- हे परमात्मा, अगर सुबह तूने बनायी तो फिर रात किसकी अनुकंपा का फल है ?
अगर प्रेम से सुख मिलता है तो प्रेम से दुख भी मिलेगा। प्रेम के दुख को स्वीकार करना ! जिसने सिर्फ प्रेम के सुख को स्वीकार किया उसने आधे को स्वीकार किया; उसके पूरे प्राणों पर प्रेम का विस्तार न हो सकेगा। प्रेम का दिन स्वीकारा, प्रेम की रात भी स्वीकारना । और अगर दोनों स्वीकार हो गये तो ज्यादा देर न लगेगी कि परमात्मा सब तरफ दिखायी पड़ने लगे । दुख भी उसी का है, इसलिए सौभाग्य है ।
तू मेरे दिल में ही नहीं सारी कायनात में है
तू दिन की तरह निहां इस अंधेरी रात में है।
- फिर धीरे-धीरे दिन की भांति रात में भी वही छिपा मालूम पड़ेगा ।
तू दिन की तरह निहां इस अंधेरी रात में है। अंधेरा भी फिर उसका ही स्पर्श देगा।
अनुपस्थिति भी जब उसकी उपस्थिति बन जाये तो प्रेम भक्ति बनती है। अनुपस्थिति भी जब उसकी उपस्थिति मालूम पड़ने लगे... क्योंकि अनुपस्थिति भी उसी की है न! उसी से जुड़ी है। तो अनुपस्थिति भी फिर परमात्मा की ही हो गयी, प्रभु की हो गयी, प्रेम की हो गयी ! तो अनुपस्थिति को भरने की कोशिश मत करना । उसको जीना ।
तू
'मेरे दिल में ही नहीं सारी कायनात में है।
और फिर धीरे-धीरे जब दिल में दुख और सुख दोनों क्षणों में वह दिखायी पड़ने लगे तो सारे संसार में भी दिखायी पड़ने लगेगा ।
प्रेमी चाहता क्या है ? प्रेमी चाहता है कि प्रेमी में लीन हो जाये। भक्त चाहता क्या है ? – कि भगवान में डूब जाये तू है मुहीते- बेकरां मैं हूं जरा-सी आबे-जू
!
या मुझे हमकिनार कर, या मुझे बे-किनार कर ! तू है मुहीते - बेकरां - तू है बड़ा सागर! मैं हूं जरा-सी
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