Book Title: Jina Sutra Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 580
________________ जिन सूत्र भाग: 1 मुल्ला नसरुद्दीन के बेटों ने ऐसा कबाड़खाने से | जब जो इतना बड़ा चमत्कार कर सकता है आंख निकालने का, सामान ला-लाकर एक कार बना ली। जब बन गयी कार तो तो हो सकता है आंख देखे! तो वे बेचारे बड़ी देर तक काम में उन्होंने मुल्ला को भी निमंत्रित किया। मुल्ला बैठ गया। वह लगे रहे और देखते रहे, वह टेबल पर से आंख देख रही थी। कोई दस-पांच कदम ही गये होंगे कि कार गिरी एक खाई में, | फिर एक आदमी को होश आया। उसने जाकर एक टोकरी खेत में। मुल्ला चारों खाने चित्त पड़ा है। बेटों ने कहा, कि पापा | उसके ऊपर रख दी और फिर वह आराम करने लगे। उन्होंने डाक्टर को बुला लाएं? उसने आंख खाली। उसने कहा, | कहा, अब तो कोई झंझट नहीं। 'डाक्टर को बुलाने की कोई जरूरत नहीं; पशुओं के डाक्टर को मगर आंख देख ही नहीं सकती; आंख सावयव इकाई है, बुला लाओ।' तो उन्होंने पूछा, 'आपको होश है? आप क्या | अलग होते ही व्यर्थ हो जाती है। हाथ अलग होते ही व्यर्थ हो कह रहे हैं? पशुओं के डाक्टर की क्या जरूरत है?' तो उसने जाता है। कहा, 'अगर मैं आदमी होता तो तुम्हारी इस कार में बैठता? यांत्रिक एकता एक बात है। अगर तुम कार के एक यंत्र को अगर मुझमें इतनी अकल होती...। तुम तो वैटनरी डाक्टर को बाहर निकाल लो, तो भी वह सार्थक है, बाजार में बिक सकता बुला लाओ।' है। क्योंकि वह यंत्र का हिस्सा काम आ सकता है। उसका कोई लोभ तुमसे कह सकता है कि थोड़ा भक्ति से चुन लो, थोड़े उपयोग हो सकता है। हाथ को काटकर बाजार में बेचने जाओ, नारद के सूत्र बड़े प्यारे हैं; थोड़ा महावीर से चुन लो, महावीर के कोई न खरीदेगा; उसका कोई उपयोग नहीं। उसकी इकाई टूट सूत्र बड़े प्यारे हैं। लेकिन 'तुम' चुननेवाले होओगे और 'तुम' | गयी। वह निष्प्राण है। जिन सूत्रों को चुन लोगे वह तुम्हारे अनुकूल होंगे। और तुम उन्हें महावीर का मार्ग आर्गनिक है, सावयव है। उसमें से एक छोड़ दोगे जो तुम्हारे अनुकूल नहीं मालूम होते। संभावना इसकी टुकड़ा मत निकालना; वह काम में न आयेगा। वह मुर्दा है। है कि जिन्हें तुम छोड़ोगे उनसे ही तुम्हारा रूपांतरण होता। और नारद का मार्ग भी सावयव है। सभी मार्ग सावयव हैं। उनमें से जो तुम चुनकर एक कृत्रिम ढांचा बना लोगे...कृत्रिम, याद कुछ निकालना मत। रखना। अंग्रेजी में एक शब्द है : आर्गनिक। एक तो ढांचा होता। इसलिए तो मैं गांधी के प्रयोग का बहुत पक्षपाती नहीं हूं: हैः सावयव। जैसे एक वृक्ष है, वृक्ष एक सावयव ढांचा है, अल्लाह ईश्वर तेरे नाम! इसका मैं पक्षपाती नहीं हूं। क्योंकि आर्गनिक है। जैसे तुम हो, तुम्हारा शरीर एक आर्गनिक ढांचा अल्लाह किसी और सावयव इकाई का हिस्सा है, ईश्वर किसी है। अगर तुम्हारे हाथ को तोड़ दें तो हाथ अलग से न जी और इकाई का हिस्सा है। अल्लाह और ईश्वर को जोड़ देने से न पायेगा; तुम्हारे साथ ही जी सकता था। उसका प्राण तुम्हारी | तो आदमी हिंदू रह जाता, न मुसलमान रह जाता-आदमी बड़ी सावयव एकता में था; अलग होकर मुर्दा हो जायेगा। तुम्हारी | अड़चन और दुविधा में पड़ जाता है। क्योंकि अल्लाह का आंख को बाहर निकाल लें, फिर न देख पायेगी। अपना पूरा मार्ग है; उसे हिंदू मार्ग से कुछ लेने की जरूरत नहीं मुल्ला नसरुद्दीन की एक आंख कांच की है। वह मजदूरों से है। वह पूरा है अपने में-संपूर्ण है। हिंदु मार्ग अपने में पूरा है। काम लेता है तो वहां खड़ा रहता है। एक दिन जरूरी था उसको | उसे अल्लाह और मुसलमान से कुछ लेने की जरूरत नहीं है। जाना। वह रहता है मौजूद, देखता रहता है तो मजदूर काम करते | सभी मार्ग अपने में पूर्ण हैं। सभी मार्ग पहुंचा देते हैं। हैं; चला जाता है तो काम छोड़ देते हैं। तो उसने एक चमत्कार इसलिए मैं तुमसे समझौतावादी बनने को नहीं कहता। अनेक किया...। उसने कहा कि देखो। आंख खींचकर उसने बाहर समझौतावादी अपने को समन्वयवादी कहकर घोषित करते हैं, निकाल ली और उसने कहा, 'यह आंख रखे जा रहा हूं टेबल कि उन्होंने सबका समन्वय कर लिया है। डाक्टर भगवानदास ने पर, यह तुम्हें देखती रहेगी। धोखा देने की कोशिश मत एक किताब लिखी है सब धर्मों के समन्वय पर: द इसेंसियल करना।' मजदूर सकते में भी आ गये, क्योंकि कभी किसी युनिटी आफ आल रिलिजन्स! इस तरह की व्यर्थ किताबें बहुत आदमी को उन्होंने इस तरह आंख निकालते देखा नहीं था। और लिखी गई हैं। वह सब तरफ से कूड़ा-कर्कट इकट्ठा कर लेते हैं। 15701 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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