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भाव से! कुछ भी बचाना मत! रत्तीभर भी मत बचाना। अन्यथा हुआ। अब न पीछे जा सकता हूं न आगे ही बढ़ पाता हूं।' बचाया हुआ ही बाधा हो जायेगी।
__ कहीं मत जाओ! पुराना विश्वास बिखर चुका, अब तुम जल्दी तुम स्वयं के और सत्य के बीच कुछ भी रहस्य मत रखना, मत करना नये विश्वास को बनाने की। क्योंकि डर यह है कि सौ छिपाना मत! तुम सब भांति नग्न हो जाना। तुम सब भांति छोड़ | में से निन्यानबे व्यक्ति, जब उनका पुराना विश्वास बिखरता है देना, फिर चिंता की बात नहीं।
तो नए को फिर पुराने के ही ढांचे में बना लेते हैं। पुराने से मैं, और बज्मे-मै से यूं तिश्नाकाम जाऊं
परिचय होता है। पुराने से पहचान होती है। पुराने के रंग-ढंग गर मैंने की थी तौबा, साकी को क्या हुआ था?
पता होते हैं। पुराने की रूप-रेखा उनके हाथ में होती है। फिर साधारण मधुशालाओं में तो यह हो जाता है।
नये विश्वास को वह मुराने के ढांचे में ही बना लेते हैं। मैं, और बज्मे-मै से यूं तिश्नाकाम जाऊं, कि मैं ऐसा प्यासा पुराना विश्वास बिखर गया है, डरो मत! तुम मत ढालना नये का प्यासा लौट जाऊं मधुशाला से!
| विश्वास को, अन्यथा तुम फिर पुराने सांचे में ढाल लोगे। वही गर मैंने की थी तौबा, साकी को क्या हुआ था? मैंने अगर सांचा तुम जानते हो। तुम चुप रहो। तुम इस बीच की बड़ी बेचैन कसम खायी थी कि न पीऊंगा तो साकी तो भर ही दे सकता था अवस्था में राजी रहो। और तब तुममें श्रद्धा का जन्म होगा। वह पात्र को! साकी तो पिलाने का आग्रह कर सकता था। मेरे तौबा विश्वास नहीं होगी। वह तुम्हारी ढाली हुई न होगी। यही मैं फर्क कर लेने से, मेरे कसम खा लेने से, उसने तो कसम न खायी थी, करता हूं विश्वास और श्रद्धा में। विश्वास है तुम्हारा ढाला वह तो मुझे मना, समझा-बुझा सकता था और जबर्दस्ती करता हुआ; क्योंकि तुम खाली रहने को राजी नहीं, कुछ न कुछ भरने तो हम पी ही लेते।
| को चाहिए। सत्य न सही तो झूठ ही सही। अपना न सही तो साधारण मधशाला में तो ऐसा हो जायेगा कि तुमने अगर तौबा | और का ही सही। देखा हुआ न सही तो सुना हुआ ही सही। की है तो तुम तिश्नाकाम ही वापस जाओगे, प्यासे ही वापस | तुम विश्वास को ढालोगे तो तुम्हारा ही ढाला हुआ विश्वास लौटोगे। लेकिन उस परम की मधुशाला में जिसने छोड़ दिया | होगा। न, यह गृह उद्योग सत्य के जगत में काम न आयेगा। सब, वह कभी तिश्नाकाम नहीं जाता। जिसने पकड़ा सब, वही पुराना गिर गया, सौभाग्य! धन्यभागी हो! अब जल्दी मत तिश्नाकाम जाता है। जिसने सब पकड़ा वह प्यासा रह जाता है। | करो नये को बनाने की। अगर तुम इस खालीपन में थोड़ी देर रह तम पकड़नेवालों की तरफ तो देखो! कैसे प्यासे और कैसे उदास | गए तो नया उतरेगा; वह तुम्हारा बनाया हुआ न होगा।
और कैसे थके और हारे रह गये हैं। तुम जरा छोड़े हुओं की तरफ | धीरे-धीरे तुम पाओगे, तुम्हारे शून्य को किसी प्रकाश ने उतरकर तो देखो! महावीर, बुद्ध-तुम उनको तो देखो, कैसे भर गए भर दिया। तुम तो गर्भ जैसे हो गए और कोई जीवन आया और हैं! प्यास सदा के लिए मिट गयी है, ऐसी गहन तृप्ति हुई है! तुम्हारे गर्भ में प्रविष्ट हो गया। यह तुम्हारा बनाया हुआ पुतला
उसकी मधुशाला से तुम वापिस न आओगे। अगर तुमने सब | नहीं है—यह परमात्मा से आया हुआ जीवन है। छोड़ा तो वह तुम्हें बहुत मनाएगा, बहुत तुम्हें पिलाने का आग्रह श्रद्धा आती है। विश्वास लाया जाता है। विश्वास जबर्दस्ती करेगा। तुम अगर सब उस पर छोड़ दो तो सब हो जाये। है; श्रद्धा नैसर्गिक है; श्रद्धा सहज है। जो आदमी विश्वास के
इसलिए मैं कहता हूं, शून्य हो जाओ। शून्य होने से मेरा अर्थ | बिना रहने के लिए राजी है, उसके जीवन में श्रद्धा उतरती है। यह नहीं है कि तुम ना-कुछ हो जाओ। तुम ना-कुछ हो। शून्य | विश्वास का न होना अविश्वास नहीं है। क्योंकि अविश्वास में तुम्हारा यह ना-कुछपन मिट जायेगा। धूल जम गयी है, उसे तो फिर एक तरह का विश्वास है। कोई मानता है, ईश्वर तुमने संपदा समझा है। शून्य होने में यह धूल हट जाएगी और है-यह भी विश्वास; कोई मानता है ईश्वर नहीं है-यह भी तुम्हारे भीतर की संपदा प्रगट हो जायेगी। शून्य होकर ही तुम विश्वास। 'नहीं' लगा देने से कहीं फर्क पड़ता है ? जो आदमी पूर्ण को पाओगे। दूसरा कोई उपाय नहीं है।
| मानता है ईश्वर नहीं है-यह उसकी धारणा, उसका शास्त्र। कहा है, 'पुराना विश्वास बिखर चुका, नये का जन्म नहीं कोई महावीर को मानता है, कोई मुहम्मद को–कोई मार्क्स को
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