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नि, ज्ञान, चरित्र-और माक्ष
लेकिन असली मां पैदा न होगी। क्योंकि असली मां तो तभी पैदा चित्त की मालूम पड़ेगी। जिद्दी। हठाग्रही! एकांतवादी! होती है जब बच्चा पैदा होता है।
समझदार आदमी तो समझौतावादी होता है। बुद्धिमान तो सभी जब बच्चा पैदा होता है तो दो चीजों का जन्म होता है-बच्चे | समझौतावादी होते हैं। वे कहते हैं, जहां पूरा न मिलता हो वहां का और मां का। एक तरफ बच्चा पैदा होता है, दूसरी तरफ मां | आधा ले लो। तो मनोवैज्ञानिक उस स्त्री को-जो कहेगी कि पैदा होती है। अभी कल तक जो एक साधारण स्त्री थी, ठीक है, मैं आधा लेने को राजी हूं-कहेगा स्वस्थ है, नार्मल अचानक मां बन जाती है। बच्चे को तुमने गोद में ले लिया तो | है। और यह स्त्री तो आब्सैस्ड है, जो कहती है पूरा लूंगी, नहीं तो बच्चा तो कभी पैदा नहीं हुआ; तुमसे तो पैदा नहीं हुआ। तो मां पूरा दे दूंगी, यह तो पागलपन से भरी है। बनने का धोखा पैदा होता है।
तो उस मनोवैज्ञानिक ने कहा है, अगर आज यह घटना घटे तो विश्वास ऐसा ही है-गोद लिया हुआ सत्य। श्रद्धान, श्रद्धा अमरीका की अदालत बच्चा उसको दे देगी जो आधा लेने को ऐसे है-जन्म दिया हुआ सत्य। और कोई दूसरा तुम्हारे सत्य राजी थी, क्योंकि वह पागल नहीं है। तर्कयुक्त है उसका उत्तर, को कैसे जन्म दे सकेगा!
विचारपूर्ण है। यह कौन-सी समझदारी है कि अगर पूरा न बड़ी पुरानी कहानी है सोलोमन के जीवन में। दो स्त्रियां मिलता हो तो आधा भी छोड़ दो। जितना मिलता हो उतना तो ले सोलोमन की अदालत में आयीं। वे दोनों दावा कर रही थीं एक लो! मध्यमार्ग चुनो। अति पर तो मत जाओ! ही बच्चे का कि वह उसकी मां है। बड़ी कठिनाई थी। कैसे तय जो लोग बुद्धि से चलते हैं, वे होशियारी से चलते हैं। जो किया जाये? सोलोमन ने कहा, ठीक है। एक-एक को पास | श्रद्धान से चलते हैं, वे दीवाने होते हैं। इसलिए तो बुद्धि के लिए बुलाया और कान में कहा कि सुन, तय करना तो मुश्किल हो रहा प्रेम सदा अंधा मालूम होता है। बुद्धि कहती है, थोड़ा सोचो, है। कोई गवाह नहीं, कोई चश्मदीद गवाह नहीं है। तो उचित समझो, विचारो, हिसाब बिठाओ। यही है कि आधा-आधा बच्चा बांट देते हैं। तो जिसका बच्चा | महावीर कह रहे हैं कि ज्ञान से तो मनुष्य केवल जानता है। था वह तो चीख मारकर रो उठी। उसने कहा कि नहीं, ऐसा मत जानना यानी परिचय बाहर-बाहर। हृदय तक बिधती नहीं करना; फिर पूरा ही उसे दे दो। लेकिन जिसका बच्चा नहीं था, बात। श्रद्धा से, दर्शन से बिधती है हृदय तक-रोएं-रोएं में उसने कहा कि ठीक है, न्याययुक्त है, तर्कयुक्त समा जाती है; श्वास-श्वास में प्रविष्ट हो जाती है। इसलिए तुम है-आधा-आधा बांट दो। जो चीख उठी थी। और जिसने ज्ञान को पकड़कर मत बैठे रह जाना।...नाणेण जाणई तर्क का सहारा न लिया था, हृदय का सहारा लिया था, उसने भावे-ज्ञान से तो बस जानना मात्र होता है। 'एक्वेंटेन्स'। कहा कि नहीं-नहीं, फिर उसे ही दे दो; मेरा नहीं है, उसी का है। | ऐसा परिचय बन जाता है।
सोलोमन ने उसी को बेटा दे दिया। हृदय ने गवाही दे दी, | __ जैसे तुमने हिमालय के संबंध में कुछ बातें भूगोल की किताब किसका है!
में पढ़ी हैं—क्या यह जानना वही है जो उसके लिए प्रगट होता यह तो कहानी पुरानी हो गयी।
| है, जिसने हिमालय के दर्शन किए, जिसकी आंखों ने हिमालय एक मनोवैज्ञानिक का जीवन में पढ़ रहा था। उसने इस कहानी | की शीतलता को पीया, जिसकी आंखों ने हिमालय के सौंदर्य को के बाबत चर्चा की है। और उसने लिखा है अगर आज अमरीका अपने में प्रविष्ट होने दिया, जो हिमालय की घाटियों और की किसी अदालत में यह मामला आये और जज तय न कर शिखरों पर घूमा, जिसने हिमालय का स्पर्श किया? क्या यह पाये, तो वह मनोवैज्ञानिक को बुलायेगा। क्योंकि अब तो जानना वही है जो भूगोल की किताब से मिल जाता है? भूगोल अमरीका में मनोवैज्ञानिक से पूछा जाता है कि क्या करना, ये की किताब में तो कोरे कागजों पर स्याही के काले चिह्न हैं और दोनों स्त्रियां दावा करती हैं, इनमें कौन झूठी है? और कुछ भी नहीं। कहां वे स्वर्ण-शिखर! कहां वे बर्फ से ढंके हुए मनोवैज्ञानिक सोलोमन की तरकीब का उपयोग करें, तो जो स्त्री शीतल अछूते, कुंवारे लोक! कहे, कि 'लूंगी तो पूरा, नहीं तो पूरा दे दूंगी', वह थोड़ा रुग्ण आंखें-आंखें ही केवल सत्य को देख सकेंगी। कही-सुनी
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