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MRITARAMIN दर्शन, ज्ञान, चरित्र-और मोक्ष
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लेकिन सुविधा चाहिए।
फिर थोड़ी देर बाद आया। उसे देखकर ही वह कैप्टन थोड़ा तप का अर्थ है : जीवन संघर्षों से गुजरता है, तूफान भी आते परेशान होने लगा। उसने कहा कि 'फिर आ गए! अब क्या हैं, कठिनाइयां भी हैं..-उनको स्वीकार करना। उनको शांत भाव मामला है?' तो मुल्ला ने कहा, 'और सब तो ठीक-ठाक है? से स्वीकार कर लेना, तो तुम्हारे जीवन में धीरे-धीरे शुद्धि और कोई गड़बड़ तो नहीं है ?' उस कैप्टन ने कहा कि इससे निखरेगी। आत्मा प्रगाढ़ होगी। तुम केंद्रित बनोगे, आत्मवान तुम्हें मतलब क्या है ? मुल्ला ने कहा, 'मतलब? फिर बीच में बनोगे। और एक से दूसरी चीज जुड़ी है। श्रद्धा से शुरू करना। मत कहना, जब रुक जाये कि उतरकर धक्के लगाओ!' हृदय से शुरू करना। क्योंकि वहीं तुम्हारे प्राणों का प्राण छिपा बस में बैठने के आदी! आदमी दूध से जल जाये तो छाछ भी है। वही तुम्हारा मंदिर है। और फिर ज्ञान अपने-आप चला फूंक-फूंककर पीने लगता है। तुम्हें दिखायी पड़े, आग जलाती आता है।
है, अनुभव में आ जाये...। आया ही था खयाल कि आंखें छलक पड़ीं
तो तुमने खयाल किया है। अगर कहीं थियेटर में बैठे हो और आंसू किसी की याद से कितने करीब थे।
लोग इतना ही चिल्ला दें, 'आग!' कि भगदड़ मच जाती है। आया ही था खयाल की आंखें छलक पड़ी! खयाल ही उठता | किसी को आग दिखायी नहीं पड़ रही है, किसी ने हो सकता है है, याद ही आती है कि आंखों में आंसू भर जाते हैं।
मजाक ही की हो; लेकिन लोग इतना ही चिल्ला दें, 'आग!' आंसू किसी की याद से कितने करीब थे। जैसे याद के करीब कि भगदड़ मच जाती है। फिर तुम लाख समझाओ कि रुको, आंसू हैं और हृदय में किसी की याद उठी तो आंखें डबडबा कोई सुननेवाला नहीं है। आग शब्द भी घबड़ा देता है। जीवंत आती हैं-ऐसा ही, जहां दर्शन घटा, वहां ज्ञान घटता है। बहुत अनुभव का इतना परिणाम है! करीब है ज्ञान दर्शन के। और जहां ज्ञान घटा, वहां चारित्र्य घटना | तो अगर वासना जला दे तो वासना की तो बात दूर, वासना शुरू हो जाता है। अगर एक ही बात सध जाये-दर्शन-तो | | शब्द भी तुम हाथ में न ले सकोगे। अगर कामवासना ने तुम्हारे सब सध जाता है।
जीवन को दग्ध किया और घाव बना दिये तो कामवासना की तो महावीर ने तीन की बातें कहीं, ताकि तुम्हें पूरा विश्लेषण साफ दूर, कामवासना की जहां चर्चा भी होती है वहां तुम न बैठ हो जाये; अन्यथा दर्शन कहने से भी काम चल जाता। जब तुम्हें सकोगे। कोई अर्थ न रहा। व्यर्थ के लिए कौन बैठता है! और
जाता है कि दरवाजा कहां है, तो फिर तुम दीवाल से व्यर्थ की ही बात नहीं, जले जीवन के दुखद अनुभव हुए, घाव नहीं निकलते। और जब तुम्हें दिखायी पड़ जाता है कि आग हाथ बने-कौन घावों को मांगने जाता है! को जला देती है, अनुभव में आ जाता है, तो फिर तुम हाथ आग लेकिन तुम सुनते हो ब्रह्मचर्य की चर्चा, लोभ पैदा होता है। में नहीं डालते। आग की तो बात दूर, आग की तस्वीर भी रखी वासना की आग अभी दिखाई नहीं पड़ी और ब्रह्मचर्य की चर्चा से हो तो तुम जरा बचकर चलते हो।
| लोभ जगने लगता है-इससे अड़चन खड़ी होती है। इससे मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन पहली दफा समुद्र की यात्रा पर | जीवन में एक भ्रांति आती है।। गया। इसके पहले कभी समुद्र की यात्रा न की थी, जहाज में | महावीर कहते हैं, शुरू करना दर्शन से। दर्शन, ज्ञान, बैठा न था। बस के अलावा और किसी वाहन में बैठा ही न था। चरित्र-यह सम्यक सरणि है। और जीवन को अगर ठीक से जहाज में थोड़ी देर बैठा। उठा, कैप्टन के कमरे में जाकर बोला, पहचानना हो तो जीवन को प्रतिपल जागकर देखते रहना। उसके 'पेट्रोल-वेट्रोल तो भर लिया है?' तो उसने कहा, 'सब भर अतिरिक्त कोई उपाय नहीं है। जो भी है-अगर क्रोध हो रहा है लिया है, तुम फिक्र न करो। बैठो अपनी जगह पर!' थोड़ी देर तो क्रोध को जागकर देखना-वही दर्शन बनेगा। करुणा का बैठा रहा, फिर उठकर पहुंचा, और कहा, 'सुनो जी! शास्त्र मत पढ़ना, क्रोध को गौर से देखना : उसी से करुणा किसी इंजिन-विंजिन तो ठीक है?' कैप्टन थोड़ा झल्लाया। उसने दिन पैदा होगी। कहा कि सब ठीक है, आप अपनी जगह पर बैठिये! लेकिन वह मैं हकीकत-आश्ना हूं हस्तिए-मोहूम का
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