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जिन सूत्र भागः1
अकसर तो ऐसा हुआ है: जब महावीर ने कहा तो वे अकेले, तो पोप को समझ में भी आ रहा था, लेकिन फिर भी उसने जब बुद्ध ने कहा तो वे अकेले।
गैलीलियो को कहा कि तुम क्षमा मांगो। अदालत में घुटने धर्म को छोड दें. विज्ञान को लें। गैलीलियो ने कहा, टेककर गैलीलियो ने क्षमा मांगी लेकिन वह आदमी भी बडा कोपरनिकस ने कहा तो अकेले। आइंस्टीन न कहा तो अकेले। गजब का था। उसने कहा कि मैं क्षमा चाहता हूं। आप कहते हैं,
सारी दुनिया मानती थी सदियों से कि जमीन चपटी है। और शास्त्र कहते हैं तो सूरज ही चक्कर लगाता होगा, पृथ्वी खड़ी जब गैलीलियो ने कहा कि जमीन गोल है तो वह अकेला था। होगी। लेकिन एक बात मैं कहे देता हूं, मेरे कहने से कुछ भी नहीं सारी दुनिया मानती थी सदियों से कि सूरज ऊगता है, डूबता है। होता। लगा तो पृथ्वी ही चक्कर रही है। मेरे कहने से क्या अब भी सभी भाषाएं यही कहती हैं: सूर्यास्त, सूर्योदय; होगा? मैं क्षमा मांगता हूं। मेरा इसमें कुछ हाथ ही नहीं है। मैं सनराइज, सनसेट। गैलीलियो हो चुका, इससे भाषा में अभी थोड़े ही पृथ्वी को चलवा रहा हूं? तो मैं झंझट में नहीं पड़ना फर्क नहीं पड़ा है। तीन सौ साल हो गये, लेकिन भाषा अब भी | चाहता। लेकिन एक बात मैं कहे देता हूं कि मैं क्षमा मांगू या न गलत बोली जा रही है।
मांगू, मैं कहूं या न कहूं—इससे क्या फर्क पड़ता है? गैलीलियो ने कहा, न सूरज ऊगता है न डूबता है-सूरज आदमियत माने या न माने, इससे क्या फर्क पड़ता है ? सूरज चलता ही नहीं। खयाल यह था कि सूरज पृथ्वी के चारों तरफ | खड़ा है पृथ्वी चक्कर लगा रही है। चक्कर लगाता है। दिखता है लगाता हुआ, इसमें कोई शक दुनिया में सत्य को जाननेवाले तो कभी-कभी होते हैं। भीड़ तो नहीं। अब भी खाली आंख से देखो तो लगता है कि चक्कर | असत्य को मानती है। लेकिन हमारे मन में एक धारणा है कि लगा रहा है।
| जिसको बहुत लोग मानते हैं वह ठीक होना चाहिए। इतने लोग असलियत बिलकुल उलटी है : पृथ्वी चक्कर लगा रही है। मानते हैं! और हमारा कोई आत्मविश्वास तो है नहीं। सूरज खड़ा है। लेकिन हम पृथ्वी पर बैठे हैं तो हमको पृथ्वी का तो दूसरों से मत कहना। अन्यथा वे हंसेंगे। उनकी हंसी तुम्हारे चक्कर लगाना तो दिखायी पड़ नहीं सकता। इसलिए सूरज जीवन में जहर हो सकती है। वे तुम्हें पागल समझेंगे। उनका चक्कर लगाता हुआ दिखायी मालूम पड़ता है।
समझना तुम्हें डगमगा सकता है। कभी तुमने खयाल किया? ट्रेन में तुम बैठे हो और दूसरी ट्रेन इसलिए ये बातें तो ऐसी हैं कि जो तुम्हारे ही रास्ते पर चल रहे बगल में खड़ी है। तुम्हारी ट्रेन चलती है तो लगता है दूसरी ट्रेन हैं और जिन्हें कुछ ऐसा होना शुरू हआ हो, उनसे कर लेना; तो चल पड़ी। चौंककर तुम्हें लगता है दूसरी ट्रेन चल रही है। तुम एक दूसरे के लिए सहयोगी बनोगे, सहारा बनोगे, बल दोगे, चलती तुम्हारी है, लेकिन तुम तो अपनी ट्रेन में बैठे हो। तुम भी आत्मबल विकसित होगा। और जितना आत्मबल बढ़ेगा उतनी उसके साथ चल पड़े, इसलिए पता नहीं चलता। दोनों की गति और घटनाएं संभव हो जायेंगी। बराबर है। लेकिन पास की ट्रेन खड़ी है। वह चलती हुई मालूम पड़ती है।
आखिरी प्रश्नः मुझे इतना कुछ मिल रहा था कि उसका गैलीलियो ने कहा है कि सरज खडा है. पथ्वी चलती है। आनंद अंतर में समाता नहीं था। इतना आनंद, इतनी खशी हजारों-हजारों साल से आदमी मानता था : पृथ्वी खड़ी है, सूरज कहां रखं, कैसे सम्हालूं-समझ में नहीं आता। और प्यास चलता है। लेकिन इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता।
भी उतनी ही है। जिनकी कृपा से जीवन की संध्या में मुझे यह गैलीलियो को अदालत में ले जाया गया था। क्योंकि पोप सब मिल रहा है, उनसे पास होते हए भी दूर है। इन दो बातों के खिलाफ था, क्योंकि बाइबिल में तो लिखा है कि पृथ्वी खड़ी है। लिए पागल-सी जी रही थी। कुछ दिनों से सब चुप होने लगा
और धर्मगुरु सदा डरते रहे हैं कि अगर शास्त्र की एक भी बात | है। घंटों बैठी रहती हूं या लेटी रहती हूं। कुछ करने का मन गलत हो जाये तो लोगों में शक पैदा होगा। लोग सोचेंगे जब | नहीं होता। न कुछ बुरा लगता है और न अच्छा। प्रभु, यह एक गलत हो सकती है तो बाकी भी गलत हो सकती हैं। सब क्या हो रहा है?
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