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मांग नहीं-अहोभाव, अहोगीत
जन्मों से, हवा के एक झोंके में खुल जायेगा! कोई दृश्य जो तुमने बच्चा मृत होगा या अर्ध-जीवित होगा। कभी न देखा था, दिखायी पड़ जायेगा। ऐसा ही कुछ हुआ है! | तो जो भी यहां घटेगा मेरे निकट तुम्हारे भीतर, तुम उसे घटने दे 'कल जिस क्षण आपने कहा, महावीर ने स्वाधीनता को रहे हो-इतना याद रखना। भूलकर भी यह मत सोचना कि मैंने आत्यंतिक मूल्य दिया, वह किसी और ने नहीं दिया, उस क्षण मैं | कुछ किया। तुमने कुछ होने दिया। अगर यह तुम्हें खयाल रहे आपको निहारता ही रहा। क्या कर दिया आपने?'
तो तुम मालिक रहोगे। तुम जब होने देना चाहोगे तभी हो मैंने कुछ भी नहीं किया। मेरे किये क्या हो सकता है? तुमने | जायेगा। अगर तुम सतत होने देना चाहोगे तो सतत होता रहेगा। कुछ होने दिया। मैंने कुछ किया नहीं। तुमने कुछ होने दिया। लेकिन मालकियत मेरे हाथ में मत दे देना। इस फर्क को ठीक से समझ लेना।
ऐसी भूल अकसर हो जाती है। अकसर, जीवन में हमारा सारा अगर तुमने ऐसा सोचा कि मैंने कुछ कर दिया, तो यह तो तर्क यही है : कोई तुम्हारे पास से गुजरा और तुम्हें नमस्कार न परतंत्रता की नयी जंजीर शुरू हो जायेगी। तब तुम राह देखोगे किया-क्रोध आ गया। अब तुम कहते हो, इस आदमी ने कि मैं कुछ करूं तो हो।
क्रोधित कर दिया। इस आदमी ने कुछ भी नहीं किया। यह इस भ्रांति में मत पड़ना। यह भ्रांति होती है।
उसकी मर्जी नमस्कार करे न करे। हां, एक मौजूदगी बनी, एक तुम एक राह से गुजर रहे हो। एक सुंदर स्त्री दिखायी पड़ी। अवसर बना। उसने नमस्कार नहीं किया। क्रोध तो तुमने होने कुछ हो गया। अब तुम कहते हो, 'इस स्त्री ने कुछ कर दिया।' दिया। इसे दोष दूसरे पर मत देना। इस स्त्री ने कुछ भी नहीं किया। तुम्हारे भीतर ही कुछ हुआ। तुम्हारे भीतर कोई दूसरा कुछ करता नहीं। ऐसा ही समझो कि इसकी मौजूदगी ने सहारा दे दिया। इसने कोई जादू नहीं किया, एक सूखा कुआं हो और हम उसमें एक बालटी डालें, खूब कोई वशीकरण नहीं किया, जैसा लोग समझते हैं। शायद इसे तो खड़खड़ाएं, खूब डुबकी लगवाएं बालटी की, लेकिन कुछ भी न खयाल भी न हो। तुम्हें कुछ हुआ, यह पक्का है। इसकी हो, क्योंकि कुआं सूखा है। बालटी खाली की खाली वापस आ मौजूदगी ने कैटेलेटिक एजेंट का काम किया। शायद इसकी जाए। फिर भरे कुएं में हम बालटी डालें, तो भरकर आ जाये। मौजूदगी में न हो पाता, देर-अबेर होता, लेकिन इसकी मौजूदगी तुम अगर प्रेम से भरे हो तो परिस्थितियां अनुकूल बन जायेंगी में कोई चीज तुम्हारे भीतर झलक गयी; लेकिन जो झलकी है वह | जिनमें तुम्हारा प्रेम उभरकर आ जायेगा। तुम अगर क्रोध से भरे तुम्हारी ही अंतर-दशा है। इसकी मौजूदगी में तुमको झलक हो तो परिस्थितियां अनुकूल बन जायेंगी, जिनमें क्रोध उभरकर मिली प्रेम की, लेकिन प्रेम तुम्हारी भाव-दशा है। तुम्हारे भीतर | आ जायेगा। पड़ा हुआ प्रेम फूट पड़ा। इसकी मौजूदगी अवसर बनी। इसने यह संसार सभी परिस्थितियों का समागम है। यहां सभी कुछ किया नहीं। इसकी मौजूदगी निष्क्रिय अवसर है। परिस्थितियां मौजूद हैं। तुम जिससे भरे हो वही प्रगट होने
ठीक वैसे ही बुद्धपुरुषों की मौजूदगी निष्क्रिय अवसर है। बुद्ध लगेगा। अगर तुम थोड़े शांत, मौन से भर जाओ, तो तुम्हारे या महावीर तुम्हारे भीतर कुछ करते नहीं। नहीं, इतनी हिंसा भी भीतर बहुत कुछ घटेगा, बहुत-से वातायन खुलेंगे। वे न कर सकेंगे। यह भी हिंसा हो जायेगी। असमय में कुछ कर | लेकिन भूलकर भी यह मत कहना कि मैंने कुछ किया। ज्यादा देना ऐसा ही होगा जैसे गर्भपात हो जाये समय के पहले। नहीं वे से ज्यादा इतना ही कहना कि मेरी मौजूदगी में तुमने कुछ होने प्रतीक्षा करेंगे।
दिया। और फिर ये भी कोशिश करना कि मेरी मौजूदगी के बिना सकरात कहता थाः मेरा काम दाई का काम है, मिडवाइफ। भी वह हो जाये, ताकि तुम उसके मालिक बन सको। दाई का काम यह है कि जब बच्चा पैदा होने के करीब हो तब वह मुझे सुन रहे थे, कुछ हुआ-अचानक तुम चौंक गये, अवाक जरा सहारा दे दे। बिना सहारे के भी पैदा हो जायेगा बच्चा। रह गए, चकित! थोड़ा सहारा दे दे। थोड़ी ढाढ़स बंधा दे। थोड़ी हिम्मत बंधा दो। अब ऐसा ही सुबह बैठ जाना, सूरज ऊगते ही, सूरज को लेकिन समय के पहले बच्चे को बहार न निकाल दे, अन्यथा देखना! फिर वैसे ही शांत, मौन उसे देखते रहना। तुम अचानक
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