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आत्मा परम आधार है
अगर तुम दस आदमियों के पास गये मिलने और वे दसों प्रसन्न मस्जिद जलाने, या मुसलमानों की भीड़ चली आ रही है हिंदुओं थे, आनंदित थे, तुम उदास थे; लेकिन क्षणभर में तुम भूल जाते का मंदिर तोड़ने-तब एक भला-अच्छा आदमी भी जो नमाज हो कि तुम उदास हो। उन दस आदमियों की प्रसन्न-चित्तता में पढ़ता है, सादा-सीधा है, कभी किसी की हिंसा करने की नहीं तुम भी प्रसन्न हो जाते हो। तुम भी हंसने लगते हो। घड़ीभर | सोची, किसी का मकान जलाने की नहीं सोची-वह भी उस पहले आंखें आंसुओं से भरी थीं, क्या हो गया इतनी जल्दी? भीड़ में चल पड़ता है! वह जो मन के सूक्ष्म परमाणु हैं...दस आदमियों के परमाणु तुमने कभी भीड़ में देखा कि अचानक तुममें गति आ जाती है! निश्चित ही तुमसे ज्यादा मजबूत हैं। तुम्हारा मन अल्पमत में हो | भीड़ अगर उत्साह से है, तो तुम उत्साह से भर जाते हो! भीड़ गया, बहुमत ने हावी कर दिया तुम्हें, इसलिए उदास आदमियों अगर तेजी से चल रही है तो तुम तेजी से दौड़ने लगते हो। भीड़ के पास जाओगे, उदास होने लगोगे।
अगर मकान में आग लगा रही है तो तुम उसमें भी रस लेने लगते तुम कभी गये हो अस्पताल किसी मरीज को देखने? जल्दी हो। बाद में अगर कोई तुमसे पूछेगा, तो तुम कहोगे, 'पता नहीं भागने का मन होता है। बीमार लोग हैं, अस्वस्थ लोग हैं, उदास कैसे यह हो गया! मैंने क्यों साथ दिया!' अगर तुमसे कोई यह लोग हैं, जराजीर्ण लोग हैं उनके पास तुम भी जराजीर्ण होने पूछे कि क्या अकेले तुम यह कर सकते थे, तो तुम निश्चित लगते हो। घबड़ाहट होती है, अकुलाहट होती है, भाग जाने का | कहोगे कि नहीं कर सकता था। अकेले तो मैंने कभी ऐसा नहीं मन होता है।
किया। यह भीड़ में हो गया। भीड़ में तुम्हारा उत्तरदायित्व क्षीण तुमने कभी खयाल किया कि डाक्टर कठोर हो जाता है! होना हो जाता है। बहुमत हावी हो जाता है। मन की तरंगें चारों तरफ ही पड़े, नहीं तो वह मर जाये। अगर डाक्टर कठोर न हो तो जीए से तुम्हें घेर लेती हैं, आंदोलित कर देती हैं। कैसे? चौबीस घंटे उदास, बीमार, रुग्ण...। उसे धीरे-धीरे जो आदमी भीड़ से प्रभावित नहीं होता, वह मन के बाहर हो इतनी कठोरता भीतर बना लेनी पड़ती है कि उसे पता ही नहीं गया। जो आदमी भीड़ से प्रभावित होत चलता, कि कौन उदास है, कौन मर रहा है। ये सब घटनाएं है। इसलिए तो राजनेता रैली निकालते हैं-अपना-अपना साधारण हो जाती हैं। कोई मरीज मर गया तो वह यह नहीं कहता प्रभाव दिखाने के लिए, कि कितने लाख आदमी उनकी रैली में कि कोई आदमी मर गया—कौन-सा बिस्तर खाली हो गया! सम्मिलित थे। उससे लोग प्रभावित होते हैं, निश्चित ही कौन-सा नंबर मर गया! आदमी की बात उठानी ठीक नहीं है, . प्रभावित होते हैं। जिसकी रैली में लाख थे और जिसकी रैली में नंबर ही मरते हैं अस्पताल में। और डाक्टर को नंबर पर ही ध्यान पांच लाख थे, वह जो जनता खड़ी देख रही है चारों तरफ वह रखना जरूरी होता है। उतनी कठोरता जरूरी है, नहीं तो वह मर | पांच लाखवाले से प्रभावित होती है। इसमें कोई गणित नहीं जायेगा। वह जी न सकेगा। उसकी हंसी बिलकुल सूख बिठाना पड़ता। यह अनजान है। वह पांच लाख की भीड़ जायेगी। उसके लिए जीने का कोई उपाय न रह जायेगा। प्रभावित कर देती है।
इसलिए अकसर जब कभी कोई युवक मेरे पास आ जाते हैं, वे अगर किसी राजनेता के चुनाव में हारने की अफवाह भी फैल कहते हैं कि मैं अपनी एक डाक्टर साथिन के साथ विवाह कर | जाये तो वह हार जाता है; जीतने की अफवाह फैल जाये तो वह रहा हूं और युवक भी डाक्टर तो मैं कहता हूं, थोड़े सावधान! जीत जाता है। एक ही डाक्टर ठीक है। दोनों डाक्टर इतने कठोर होंगे कि तुम अंग्रेजी में कहावत है: नथिंग सक्सीड्स लाइक सक्सेस। पिघल न पाओगे; तुम एक-दूसरे से मिल न पाओगे। तो यह सफलता से ज्यादा कोई चीज सफल नहीं होती। बड़ी ठीक है। विवाह व्यवसायिक तो उपयोगी होगा, आर्थिक रूप से उपयोगी क्योंकि जब तुम सफल हो रहे होते हो तो तुम चारों तरफ परमाणु होगा; लेकिन जीवन से इसका कोई संबंध न होगा। फेंकते हो अपनी सफलता के। जब तुम असफल हो रहे होते हो
ध्यान रखना, तुम्हारा मन प्रतिक्षण दूसरे के मनों से आंदोलित तो तुम चारों तरफ परमाणु फेंकते हो अपनी असफलता के। हो रहा है। हिंदुओं की भीड़ चली जा रही है मुसलमानों की असफलता में कौन साथ देता है! जीते के साथ सभी हो लेते हैं,
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